ईश्वर का स्वरूप एवं कार्य प्रणाली क्या हो सकता है
ईश्वर का स्वरूप एवं कार्य प्रणाली क्या हो सकता है? —- उत्तर स्वयं भगवान विष्णु द्वारा ~ प्रज्ञोपनिषद्(प्रथम मण्डल)
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” निराकारत्व हेतोश्च प्रेरणा कर्तुमीश्वर: ।
शरीरिणश्च गृहणामि गति संचालने तत: ॥ — 1.31
(” निराकार होने के कारण मैं प्रेरणा ही भर सकता हूँ । गतिविधियों के लिए शरीरधारियों का आश्रय लेना पड़ता है, इसके लिए वरिष्ठ आत्माएँ चाहिए।”)
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आध्यात्मिक-वैज्ञानिक विश्लेषण —- ईश्वर का सर्वव्यापकत्व गुण आकाशवत् निराकार स्थिति में ही संभव है ।
(तत्सवितुर्)उस सर्वव्यापी ईश्वर को ( वरेण्यं)जो साधक उपासना द्वारा वरण करलेते हैं , तथा (भर्गो देवस्य धीमहि) अपने दोष-दुर्गुणों को हटाकर एवं दैवी गुणोंको धारणकर अपनी पात्रता का विकास कर लेते हैं, (धियो योन: ) उनके अंत:करण को ईश्वर युग सृजन नेतृत्व के लिए (प्रचोदयात्) प्रेरित करते, माध्यमबनाते हैं।अत: इनदिनों युगसृजन के लिए वरिष्ठ आत्माओं ( आत्मपरिष्कार रत ) साधकों की अनिवार्य आवश्यकता ईश्वर को है। जिसे हम पूरा करके जीवन धन्य बना सकते हैं।
—————- पंचकोशी प्रशिक्षक, Panchkoshi Sadhna
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