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समसामयिक दिशा निर्देश: 4 – समीक्षा

समसामयिक दिशा निर्देश: 4 – समीक्षा

समीक्षा
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प्रथम सिमेस्टर की साधना में हमलोग तीन बिन्दु को लेकर चल रहे हैं ——

1. आत्म समीक्षा हेतु —– गायत्री स्मृति
( प्रति सप्ताह एक सूत्र की चलते-फिरते आत्म-समीक्षा —- इसके लिए सूत्र को रटकर याद कर लेना भी आवश्यक है ताकि चलते-फिरते भी मस्तिष्क में वह गूंजता रहे। अपनी समीक्षा होती रहे कि मैं इसमें कहां हूँ। उस दूरी को पाटने के लिए क्या कर रहा हँ। अपने daily routine में रहते हुए न्यूनतम इतना तो अपना ही सकता हूँ। अवश्य करूँगा, आज से करूँगा, और तबतक करुँगा जबतक व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाए।)
प्रथम सूत्र में है कि “ईश्वर सर्वव्यापी है-“— तो हमें उसके अनुशासन में रहनी चाहिए ताकि उनका संरक्षण व कृपा प्राप्त होता रहे।


2. साधनात्मक में — प्रज्ञायोगासन (इसके पूर्व शरीर के जोड़ों का मूवमेंट) + आहार शुद्धि ( सात्विक, सुपाच्य हो तथा पचने भर ही खावें।)

3.दिग्भ्रान्तता निवारण हेतु — प्रज्ञोपनिषद् (पाक्षिक एक सूत्र )

*** जो अपने पर लागू करेंगे वही समाज के मार्गदर्शक शिक्षक बन सकते हैं। और इस क्लासरूम की सार्थकता होगी।

*** इस क्लासरूम के सकारात्मक प्रेरक पोस्ट्स को अपने फ्रेंड सर्किल में अवश्य शेयर करें। ताकि देश भर सकारात्मक चर्चाओं का एक माहौल बने।उनके क्रिटिकल प्रश्नों का हल पर क्लासरूम में मंथन किया जा सकता है।

——- सधन्यवाद, पंचकोशी प्रशिक्षक , Lal Bihari Singh

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