Aatm Vigyan Ki Sadhna Ka Guhya Tatva Gyan
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Aatmanusandhan – Online Global Class – 04 दिसंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
विषय: आत्म-विज्ञान की साधना का गुह्य तत्त्वज्ञान
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
किसी भी वर्ण (faculty) व आश्रम (age group) के व्यक्तित्व (personality) आत्मसाधना/ आत्मानुसंधान में participate कर सकते हैं ।
Time management (समय प्रबंधन) द्वारा हम साधना के लिए पर्याप्त समय निकाल सकते हैं ।
आसक्ति – परिवर्तनशील सत्ता से चिपकाव @ लोभ/ मोह/ अहंकार @ वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता ।
अनासक्ति – अपरिवर्तनशील सत्ता से सायुज्यता @ श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा ।
गायत्री की दो उच्च स्तरीय साधनाएं :-
1. पंचकोश साधना
2. कुण्डलिनी जागरण
नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात् । एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वांस्तस्यैष आत्मा विशते ब्रह्मधाम ॥
यह ‘कमजोर’ की खोज नहीं है । यह बलवान @ प्राणवान (= श्रद्धावान + प्रज्ञावान + निष्ठावान) व्यक्तित्व हेतु है ।
“श्रद्धावान लभते ज्ञानम् ।” विश्वास ज्ञान का वाहन है ।
“ज्ञानेन मुक्ति ।”
अध्यात्म तेज उस्तरे की धार पर चलना है । तन्मात्रा साधना व ग्रन्थि भेदन साधना संयम/ संतुलन/ साम्यता/ सायुज्यता में अप्रतिम भूमिका निभाता है ।
एक आदर्श ‘विद्रोही’ की तरह अकेले खड़े होने का साहस भी होना चाहिए ।
“यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे ।” कुण्डलिनी जागरण/ तन्त्र साधना की आवश्यकता/ अनिवार्यता को समझा जाए ।
परिवर्तनशील संसार के कण कण @ मूल में अपरिवर्तनशील सत्ता विद्यमान है । इनसे सायुज्यता/ तादात्म्य/ एकत्व उपरांत अद्वैत की स्थिति आती है । अतः हमें हर एक तत्त्व से सीखना चाहिए ।
God is omnipresent so nothing is worthless in the universe. If we don’t know how to handle it , we may get its side-effects.
कुण्डलिनी जागरण विशेषांक – explanation with pictures.
एक ही प्राण/ बिजली शरीर के अलग अलग भाग में अलग अलग role play करती है और अलग अलग नामों (5 प्राण – 5 लघुप्राण, मन बुद्धि चित्त अहंकार आदि ) से परिभाषित की जाती है ।
आत्मसाधक परिस्थतियों के दास नहीं प्रत्युत् नियंत्रणकर्ता व स्वामी होते हैं ।
जिज्ञासा समाधान
सांसारिक आकर्षण (तन्मात्राएं)/ विक्षोभ प्राणवान साधक को प्रभावित नहीं करते हैं । संयम/ संतुलन/ साम्यता/ सायुज्यता/ एकत्व/ अद्वैत से बात बनती है ।
कुण्डलिनी जागरण साधना से तीनों शरीर – स्थूल शरीर (Physical body), सुक्ष्म शरीर (Mental body) व कारण शरीर (Emotional body) को उज्जवल बनाया जा सकता है ।
नाद योग – जब ध्वनि भेद समाप्त शांत हो जाए अर्थात उसके मूल अपरिवर्तनशील सत्ता से सायुज्यता बन जाए तो तुरीयातीत अवस्था आती है ।
शुभता (good use) का संधान सायुज्यता में प्रभावी हैं । इस हेतु त्रिपदा गायत्री (ज्ञान, कर्म व भक्ति) साधना की आवश्यकता/ अनिवार्यता है ।
ब्रह्ममुहूर्त में साधना में अनुकूलन होती है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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