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Activities of Brahmi Consciousness under the control of Kundalini

Activities of Brahmi Consciousness under the control of Kundalini

कुण्डलिनी के वशीभूत ब्राह्मी चेतना के क्रियाकलाप

Aatmanusandhan –  Online Global Class –  25 दिसंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

विषय: कुण्डलिनी के वशीभूत ब्राह्मी चेतना के क्रियाकलाप

आत्मानुसंधान में कुण्डलिनी जागरण की भूमिका अहम है ।

गुरूदेव के साहित्य में हर एक व्यक्तित्व अपनी चुनौती/ समस्या/ उलझन का हल पाते हैं @ समस्याएं अनेक, हल एक – अध्यात्म । वे समष्टिगत/ ईश्वरीय/ ब्राह्मी चेतना से सायुज्य/ तदनुरूप/ तादात्म्य के कारण हर एक व्यक्तित्व के मस्तिष्क को पढ़ने में सक्षम… और यही वजह है कि वह वसुधैव कुटुम्बकम के हर एक समस्या के हल को लेखनी/ साहित्य में स्थान दिया ।
रोग दुःख का मूल कारण  – अंतर्द्वंद/ उद्विग्नता (वासना/मोह + तृष्णा/लोभ + अहंता/अहंकार = उद्विग्नता) ।
समाधान : अध्ययन + चिंतनमननमंथन + (वासना + तृष्णा +अहंता @ उद्विग्नता) शांत/ संयमित/ संतुलित + विलय – विसर्जन – एकत्व @ अद्वैत

गायत्री के 2 उच्चस्तरीय साधनाएं (ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी आर्त अर्थी चिंतित भोगी । जो जो शरण तुम्हारी आवें सो सो मनोवांछित फल पावें ।।) :-
1. पंचकोश अनावरण/ जागरण
2. कुण्डलिनी जागरण

पंचाग्नि विद्या/ पंचकुण्डीययज्ञ :-
1. अन्नमयकोश (Physical body) – प्राणाग्नि (समिधा – आसन, उपवास,  तत्त्वशुद्धि व तपश्चर्या),
2. प्राणमयकोश (Etheric body) – जीवाग्नि (समिधा – प्राणायाम,  बन्ध व मुद्रा),
3. मनोमयकोश (Astral body) – योगाग्नि (समिधा – जप, ध्यान,  त्राटक व तन्मात्रा साधना),
4. विज्ञानमयकोश (Cosmic body) – आत्माग्नि (समिधा – सोऽहं, आत्मानुभूति, स्वर संयम व ग्रंथिभेदन),
5. आनंदमयकोश (Causal body) – ब्रह्माग्नि (समिधा – नाद, बिंदु, कला साधना व तुरीय स्थिति) ।
समिधा (पंचकोशी क्रियायोग), अग्नि-प्रदीपनं में सहयोगी

पंचकुण्डीय यज्ञ (कुण्डलिनी जागरण) से ऋद्धि सिद्धि हस्तगत होती हैं । फलस्वरूप ससीम (व्यष्टिगत चेतना @ जीव) का असीम (समष्टिगत चेतना @ शिव) में विलय – विसर्जन – एकत्व (में रूपांतरण) @ अद्वैत ।
सर्वप्रथम पंचकोश जागरण साधना से पांचों शरीर को पंचकुण्डीय यज्ञ हेतु तैयार कर लिया जाए then अग्नि प्रदीप्नं (कुण्डलिनी जागरण) शुरू without any side effects.

भारत भूमि ऋषियों मुनियों का देश …. वेद आर्ष ग्रन्थों में उनके शोध कार्य, सृष्टि संचालन के सुनियोजन में उनका योगदान व (वसुधैव कुटुम्बकम) जनकल्याण को देखा समझा जा सकता है । ना केवल spirituality बल्कि Education, Medical Science (Health management),  Defense, Finance, Manpower management etc. में हम अग्रणी रहें ।

जिज्ञासा समाधान

गायत्री (आत्मिकी @ चेतना) + सावित्री (आत्मभौतिकी @ शक्ति) = सरस्वती (पूर्णता) । गायत्री पंचकोश साधना व सावित्री साधना (कुण्डलिनी जागरण) दोनों को साथ लेकर चलने से समग्र साधना पूर्ण होती है । (प्रसुप्त/ विषयासक्त) व्यष्टि कुण्डलिनी को जगाकर (अग्नि प्रदीप्नं) समष्टिगत कुण्डलिनी में विलयन विसर्जन (अनासक्त/ निष्काम/ निःस्वार्थ प्रेम/ वसुधैव कुटुम्बकम) ।

तन्मात्रा साधना से संसारिक विक्षोभ को प्रभावहीन बनाया जा सकता है ।

choking process से ऊर्जा का मंथन जो चक्रवात पैदा होता है जो विलयन विसर्जन में अहम भूमिका निभाता है ।

Research process में सही विधा का महत्व अहम है जिसमें गुरू शिष्य परंपरा की भूमिका अहम है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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