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Adhyatm Vigyan – 1

Adhyatm Vigyan – 1

PANCHKOSH SADHNA –  Online Global Class – 25 Jul 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

SUBJECT:  अध्यात्म विज्ञान – 1

Broadcasting: आ॰ अमन जी

आ॰ चन्दन प्रियदर्शी जी

अध्यात्म‘ स्वयं में एक समुन्नत विज्ञान है। जनमानस का इसके बाह्य कलेवर में उलझ कर रह जाने से इसका प्राण @ अंतः पक्ष  आत्मिकी उपेक्षित हो गया। फलस्वरूप भटकने भटकाने का क्रम चल पड़ा।
गुरूदेव सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उपास्य ब्रह्म व जीवन देवता की साधना को साथ लेकर चलते हैं जिसे हम ‘अंतरंग परिष्कृत व बहिरंग सुव्यवस्थित’ के  आध्यात्मिक सुत्र से समझ सकते हैं।

प्रकृति परगत अणु सत्ता और तरंग सत्ता की खोज उपलब्धि को ‘विज्ञान’ कहते हैं और चेतना की भावनात्मक विभूतियों के रहस्योद्घाटन एवं उपार्जन उपयोग को ‘अध्यात्म’।

यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे‘ – मानवी काया आत्मविज्ञान की बहुमूल्य प्रयोगशाला। पदार्थ जगत की मूर्धन्य संरचना मनुष्य की काया (human body) है और ब्रह्माण्डीय चेतना के प्रो वैभव का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि मानवी मस्तिष्क है। अतः हम स्वयं पर शोध करके ‘आत्मबोध व तत्त्वबोध’ अर्थात् स्वयं और जगत के बारे में सही सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

लक्ष्य-बोध हेतु पात्रता विकसित करनी होती है‌। इसके दो चरण हैं: १. तप (परिशोधन – संचित कषाय कल्मषों व कुसंस्कारों का – दुष्कर्मों के प्रारब्ध संचय का निराकरण) व २. योग (परिष्करण – श्रेष्ठता का जागरण अभिवर्धन)।

पात्रता‘ विकसित करने हेतु में गुरू @ मार्गदर्शक सत्ता की आवश्यकता ही नहीं वरन् अनिवार्यता भी।

त्रिपदा गायत्री की 3 शक्ति धाराओं ‘ज्ञान, कर्म व भक्ति’ के त्रिवेणी संगम (प्रयागराज) से गुजरकर साधक पूर्णता को प्राप्त करते हैं।
भक्तियोग – आत्मीयता का विस्तार।
ज्ञानयोग – उच्चस्तरीय दूरदर्शिता का नाम है।
कर्मयोग – सादा जीवन उच्च विचार।

अन्तःकरण का परिष्कार – वृत्तियों का शोधन ही समस्त सिद्धियों का राजमार्ग है।
तन्मयता और तत्परता जब एकाग्रता से मिल जाते हैं तो सफलता सुनिश्चित हो जाती है।
असफलताओं में अन्यमनस्कता, अरूचि, उपेक्षा एवं बिखराव ही प्रधान कारण होते हैं।

श्रद्धा – आत्मिक, प्रज्ञा – बौद्धिक और निष्ठा – शारीरिक उत्कृष्टता का नाम है। योगाभ्यास – एकत्व अद्वैत का

साधना‘ और कुछ नहीं अचेतन का परिष्कार एवं ‘स्व’ का उभार है। इसके लिए मन व शरीर दोनों को साधना पड़ता है। मानसिक परिष्कार के लिए ‘योग’ और शारीरिक प्रखरता उभारने के लिए ‘तप’ का आश्रय लेना होता है।

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

अखण्ड ज्योति पत्रिका (दिसंबर 1981 – जनवरी 1987) अध्यात्म विज्ञान की series बतौर गुरूदेव ने लिखी हैं। अध्यात्म – १. अंतरंग परिष्कृत व २. बहिरंग सुव्यवस्थित। पदार्थ जगत पर आत्म सत्ता का नियंत्रण हो एवं आत्मसत्ता परमात्म सत्ता के अनुशासन में हो।

साधना‘ का महत्वपूर्ण पक्ष है – तपश्चर्या। तप का अर्थ है – तपाना। व्यक्ति का सामर्थ्य तपश्चर्या के आधार पर ही उभरती है। तप शरीरगत होता है। इसे व्यवहारिक जीवन में ‘संकल्प निष्ठ‌ संयम’  भी कहा जाता है – १. इन्द्रिय संयम, २. समय संयम, ३. विचार संयम व ४. अर्थ संयम।
आत्मपरिष्कार (आत्मनिरीक्षण, आत्मसुधार, आत्मनिर्माण व आत्मविकास) के प्रयोजन के लिए ४ उपचार – १. स्वाध्याय, २. सत्संग, ३. चिंतन व ४. मनन।

पंचकोश अनावरण (जागरण) हेतु 19 क्रियायोग परिशोधन व परिष्करण की ऐसी समन्वित प्रक्रिया है जो सर्वथा हानिरहित सरल सहज सर्वोपयोगी पंचाग्नि विद्या है। जिसे महाकाल ने सर्वसुलभ बनाया है।

जिज्ञासा समाधान

जड़‘ के भीतर विवेकवान चेतन उपस्थित है अर्थात् इनका मूल ‘चेतन’ है। आत्मस्थित साधक आत्मभाव से पदार्थ जगत पर स्व नियंत्रण रखते हैं।

मन‘ निरंतर विचारों का वाष्पीकरण करता रहता है। मन एकांगी है तो मन की चंचलता भी प्रसिद्ध है। गीताकार कहते हैं ‘मन ही मनुष्य का शत्रु और मन ही मित्र हैं, बन्धन व मोक्ष का कारण भी यही है।’ मन का वश में होने का अर्थ है उसका बुद्धि, विवेक के नियंत्रण में होना @ योगश्चित्तवृत्ति निरोधः।
मन को वश में करने के २ उपाय – १. अभ्यास व २. वैराग्य।  आत्म-भाव @ स्व का उभार – ‘वैराग्य’ है। विषयासक्ति से निकालकर आत्मलक्ष्य प्राप्ति में सहयोगी – जीवनोद्देश्य को सार्थक करने वाली गतिविधियों में प्रवृत्त करने को ही ‘अभ्यास’ कहते हैं।

कर्मकाण्ड का प्राण – ‘आत्मकल्याणाय – लोककल्यणाय’ भाव पक्ष है। अतः कर्मकाण्ड में सन्निहित ज्ञान – विज्ञान को समझना आवश्यक है। संपूर्ण वसुधा को कुटुंब मानने वाले व्यक्तित्व ‘योग’ @ जुड़ने व जोड़ने में संलग्न रहते हैं @ एकत्व अद्वैत। भाव पक्ष रहित कर्मकाण्ड विग्रह @ विक्षोभ का कारण बनते हैं @ भावे विद्यते देवा।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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