Adhyatm Vigyan – 5
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 22 Aug 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
SUBJECT: अध्यात्म विज्ञान-5
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी
आ॰ चन्दन प्रियदर्शी जी (बैंगलोर, कर्नाटक)
तीन ग्रन्थियां – रूद्र ग्रन्थि, विष्णु ग्रन्थि व ब्रह्म ग्रन्थि @ वासना, तृष्णा व अहंता।
‘मुक्ति‘ – त्रिविध ताप (आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक) @ त्रिविध भव बन्धनों (लोभ, मोह व अहंकार) से छुटकारा।
तत्त्व दृष्टि से बंधन मुक्ति – http://literature.awgp.org/book/Tatvdrishti_Se_Bandhan_Mukti/v2.1
सर्वं खल्विदं ब्रह्म– “यह सब ब्रह्म ही है” (छान्दोग्य उपनिषद् ३/१४/१- सामवेद)
ब्रह्म सत्यं – जगत मिथ्या। मिथ्या से तात्पर्य गलत अथवा असत्य नहीं प्रत्युत् परिवर्तनशील सत्ता से है।
सृष्टि निर्माण ‘एकोऽहं बहुस्याम्’ का आध्यात्मिक वैज्ञानिक विश्लेषण। क्वाण्टा फिजिक्स के सुत्रों का आध्यात्मिक विश्लेषण।
श्वेताश्वर उपनिषद् – अणोरणीयान् महतो महीयानात्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः । तमक्रतुः पश्यति वीतशोको धातुः प्रसादान्महिमानमीशम् ॥3-20॥ अर्थात् अणु से भी अणु है और महान् से भी महान् वह आत्मा इस जीव की हृदय गुहा में छिपा हुआ है। सबकी रचना करने वाले विधाता की कृपा से उस संकल्प रहित ईश्वर और उसकी महिमा को जो देख लेता है, वह शोकरहित हो जाता है ॥
दृष्टिकोण (angle of vision) के अनुरूप सत्य तक पहुंच बनती है। पंचकोश साधना परिप्रेक्ष्य में जीव की स्थिति किस कोश में है वह उसके अनुरूप अपनी स्थिति को जानता है तदनुरूप तथ्यों को परखता समझता है। पंचकोश भी आत्मा के आवरण मात्र हैं। अनावरण के पश्चात शाश्वत सत्य की अनुभूति होती है।
द्वैत भाव का रूपांतरण अद्वैत भाव में “ज्ञान, कर्म व भक्ति” के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने से संभव बन पड़ती है।
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
आ॰ चन्दन प्रियदर्शी भैया को आभार।
परमात्मा को ‘सच्चिदानन्द’ कहा गया है जिसमें सृष्टि निर्माण के त्रैतवाद का समस्त तत्त्व चिन्तन समाहित हो गया है। इस स्वरूप में “ईश्वर, जीव व प्रकृति” तीनों की स्थिति का सम्यक् निरूपण है।
सच्चिदानन्द = सत् + चित् + आनन्द; सत् (एग्जिस्टैन्स) – स्थायित्व, चित् (कान्शसनैस) – चेतन व आनन्द (एब्सौल्यूट ब्लिस) – अनन्त उल्लास। ईश्वर इन्हीं विशेषताओं से सम्पन्न है। जब जीवात्मा को अपने सम्बन्ध में भी ऐसी ही अनुभूति होने लगे तो समझना चाहिए कि ब्रह्म और जीवन की एकता बन रही है। आत्मा में परमात्मा का अवतरण हो रहा है।
तन्मात्रा साधना व ग्रन्थि भेदन साधना से ‘वासना, तृष्णा व अहंता’ @ संकीर्ण स्वार्थ का रूपांतरण परमार्थ में किया जा सकता है।
शब्द ब्रह्म, नाद ब्रह्म व बिन्दु साधना से अनन्त आनन्द की प्राप्ति।
आत्मशोधन + परमार्थ।
जिज्ञासा समाधान
शरीरगत भाव में आबद्ध चेतना ‘जीवात्मा‘ कही जाती है।
योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय । सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ भावार्थ : हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है॥48॥
गांठें (संकीर्णता – वासना, तृष्णा व अहंता) आनन्द में breakage डालते हैं। अतः इन्हें फोड़ने @ उलझे को सुलझाने से बात बनती है। विस्तरण ….. से बात बनती है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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