Adhyatmik Kama Vigyan – 3
Aatmanusandhan – Online Global Class – 21 Aug 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: कामक्रीड़ा की उपयोगिता ही नहीं, विभीषिका का भी ध्यान रहे (आध्यात्मिक काम विज्ञान)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
कामनाएं शुभ हों (शुभकामना) । कामना अर्थात् इच्छा/ आकांक्षा । सृष्टि की उत्पत्ति – एकोहम् बहुस्यामः ।
“इच्छा – विचारणा – क्रिया” – शुभेच्छा हो तो आनंद ही आनंद (सदुपयोग) ।
काम विज्ञान (कला) के अंतर्गत प्रजनन विज्ञान (साधु पुत्र जनयः) भी है । Transmutation of sex energy हेतु कुण्डलिनी जागरण आवश्यक है ।
आचार्य शंकर संन्यासी का शरीर छोड़कर परकाया में प्रवेश करके काम के रहस्यों को समझा ।
शिव, शक्ति के बिना शव के समान हैं । नर व नारी – एक समान (अर्द्धनारीश्वर) । नर – पौरूष का तो नारी – सज्जनता का प्रतीक; युगलबंदी से बात बनती है ।
नर (प्राणशक्ति, पौरूष, पराक्रम, क्षमता – कठोरता, बौद्धिक प्रखरता से) उपार्जन करें एवं नारी (मृदुलता, सहृदयता, सहिष्णुता, सज्जनता) सदुपयोग करें । (वैज्ञानिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक) नेतृत्व (दिशा निर्धारण सूत्र) नारी के साथ में रहना चाहिए ।
अंधकार युग में नारी शक्ति को प्रतिबंधित करने से आज हर एक क्षेत्र में विकृतियां नृत्य कर रही हैं । मनुष्य में देवत्व के अवतरण व धरा पर स्वर्ग के अवतरण हेतु नारी जागरण आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी । ‘नर’ की उच्छृंखलता को ‘नारी’ (सूत्रों) की मृदुल भावनाएं ही नियंत्रित कर सकती हैं ।
नर नारी का प्राकृतिक मिलना उपयोगी आवश्यक एवं उल्लासपूर्ण है जिसका परिचय हम गृहस्थाश्रम (गृहस्थ एक तपोवन) से प्राप्त कर सकते हैं ।
नर नारी का सघन सहयोग पवित्र पृष्ठभूमि पर विकसित किया जाए । पवित्र पृष्ठभूमि विकसित करने हेतु उच्छृंखल कामुकता (विकृत वासनात्मक) भरी मनोवृत्तियों को परिष्कृत किया जाए ।
कलाकार वर्ग नारी का सौम्य स्वभाविक चित्रण करें, उसे रमणी, कामिनी अथवा भोग्या रूप में चित्रित ना करें ।
अध्यात्मिक काम विज्ञान के उन तथ्यों को सर्वसमक्ष लाना होगा जिनके आधार पर यौन संबंध की, काम क्रीड़ा की उपयोगिता (सदुपयोग) व विभीषिका (दुरूपयोग) को समझा जा सके, व्यवहार में लाया जा सके ।
जिज्ञासा समाधान
ग्रहित अर्थात् विकृत ।
साधना की शुरुआत अन्नमयकोश क्रियायोग से की जा सकती है । ईश्वर प्राणिधान, स्वाध्याय सत्संग की नियमितता को बनाए रखें ।
(अखंड) आनंद – निरालंब की स्थिति है (तुरीयातीत अवस्था – अद्वैत) ।
आनंद के अतिरेक में भी आंसू निकलते हैं । संत हृदय के आंखों से करूणा के भी आंसू निकलते हैं । संत साधक जन विलाप नहीं करते हैं ।
काम शक्ति का दुरूपयोग विकृत काम वासना के उपचार हेतु Transmutation of Sex Energy आवश्यक है; जिसमें गायत्री की दो उच्चस्तरीय साधनाएं – पंचकोश साधना व कुण्डलिनी जागरण के क्रियायोग प्रभावी हैं ।
इच्छा … आकांक्षा … कामना समानार्थी शब्दों के शब्दार्थ विषय वस्तु के आधार पर भिन्न भिन्न हो सकते हैं । एक ही ‘वक्ता’ के कहे गए शब्दों के अर्थ ‘श्रोताओं’ के स्व मनोभूमि के अनुरूप भिन्न भिन्न हो जाते हैं ।
संयमित/ मर्यादित (ध्यान + धारणा + समाधि) व्यक्तित्व में “IQ + EQ = SQ.” (IQ – intelligent quotient, EQ – emotional quotient, SQ – spritual quotient)
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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