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Adhyatmik Kama Vigyan – 5

Adhyatmik Kama Vigyan – 5

संयम और सुखी परिवार

Aatmanusandhan –  Online Global Class – 04 Sep 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: संयम और सुखी परिवार (अध्यात्मिक काम विज्ञान)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

समष्टि कुण्डलिनी शक्ति – विश्वव्यापार जननी

काम’ शक्ति का संयम (संवर्धन + सदुपयोग) जीवन‌ को स्वर्ग व असंयम/ दुरूपयोग नर्क बना सकता है ।

ऋषियों मुनियों एवं सामाजिक मार्गदर्शक आचार्यों ने ने गृहस्थाश्रम को एक महत्वपूर्ण योग साधना बताया है, अगर उसके लिए आवश्यक तैयारियां ना की जाएं तो लोगों का ना केवल व्यक्तिगत जीवन प्रत्युत् पारिवारिक व सामाजिक व्यवस्थाएं भी लड़खड़ा सकती हैं ।
जीवन के प्रथम 25 वर्ष ब्रह्मचर्य पूर्वक (शील + सदाचार + संयम) रहकर विद्याध्ययन करने और पाठ्यक्रम में धार्मिक, अध्यात्मिक, नैतिक, सांस्कृतिक विषयों के समावेश के पीछे एक मात्र उद्देश्य और रहस्य यही था की आने वाले जीवन और जिम्मेदारियों को वहन करने के लिए शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, चारित्रिक त्रुटि ना रह जाए ।

उदाहरणार्थ नर ‘स्टिकल-बैक’ मछली अपना घर बसाने के लिए बहुत पहले से तैयारी प्रारंभ कर देता है । वो समुद्र में घूम घूम कर ऐसा स्थान ढूंढता है, जहां पानी ना बहुत तेजी से बह रहा हो न बहुत धीरे । जगह शांत एकान्त हो । फिर उस जगह सुन्दर घर बनाता है । फिर वह मादा की खोज में निकलता है । उपयुक्त पत्नी मिलने के बाद उसे घर लाता है । पत्नी गर्भावस्था में आती है व अण्डे देती है । नर मादा को घूमने के लिए भेजते हैं और स्वयं अण्डों की देखभाल करता है, भोजन की व्यवस्था करता है, सुरक्षा करता है । बच्चों के निकलने के उपरांत उन्हें प्रशिक्षण देता है ।
स्टिकल-बैक की तरह मनुष्य का पारिवारिक जीवन भी तैयारी उद्देश्य और सुरूचिपूर्ण होता, पतिव्रत ही नहीं पत्नीव्रत का भी ध्यान रखा गया होता तो सामाजिक जीवन हंसता खिलखिलाता हुआ होता ।
शेरनी, कीवी, कैसोवरी, राही, शुतुरमुर्ग व पेंगुइन आदि पशु पक्षी के पारिवारिक जीवन से हम प्रेरणा ले सकते हैं ।
सर्पासन, मयूरासन, मकरासन, वृश्चिकासन, वृक्षासन, धनुरासन आदि की प्रेरणा पशु, पक्षी, पेड़, जड़ आदि से ली गई हैं ।

संस्कार परंपरा का उद्देश्य सुसंस्कृत जीवन  है

इन्द्रियों को उत्तेजना ने धर पकड़ा तो उनके चंगुल से निकल पाना कठिन ही होता है । विवेकशील व्यक्तित्व संयमित तथा मर्यादित जीवन जीते हैं और असंयम से बचते और अपनी शक्ति, शान्ति और सम्मान सुरक्षित रख पाते हैं ।

गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें संयम सेवा व सहिष्णुता की साधना करनी होती है । 

साधू पुत्र जनयः । आज के संतति कल के राष्ट्रनिर्माता हैं । अतः हमें इनके शिक्षा दीक्षा (प्रशिक्षण) की समुचित व्यवस्था करनी होती है । Family is the first school of any child.

जिज्ञासा समाधान

संतति की शिक्षा दीक्षा मां के गर्भ से ही प्रारंभ हो जाती है । उदाहरणार्थ धीर वीर अभिमन्यु जी ने चक्रव्यूह भेदने की विद्या गर्भ में सीखी थी । अतः गर्भिणी मां के आस पास के वातावरण को दिव्य बना कर रखा जाए, ताकि तेजस्वी संतति विश्ववसुधा को दिये जा सके ।

समय जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है । जीवन के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यथोचित समय पर कार्य (सत्प्रवृत्ति संवर्धनाय दुष्प्रवृत्ति उन्मूलनाय आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्कराय) का माध्यम बनते रहा जाए ।
Regression, depression ना बने, इस हेतु जब जागो तभी सवेरा की राह पर बढ़ चले ।

कामशक्ति संयम हेतु:-
महामुद्रा महाबंधो महावेधश्च खेचरी । उड्यानं मूलबंधश्च बंधो जालंधराभिश्च: ।।
करणी विपरीताख्‍या वज्रोली ‍शक्तिचालनम् । इंद हि मुद्रादशकं जराभरणनाशनम।।
अर्थात – महामुद्रा, महाबंध, महावेधश्च, खेचरी, उड्डीयान बंध, मूलबंध, जालंधर बंध, विपरीत करणी, वज्रोली, शक्ति, चालन – ये दस मुद्राएं जराकरण को नष्ट करने वाली एवं दिव्य ऐश्वर्यों को प्रदान करने वाली हैं।

शीर्षासन की विधा स्थूल शरीर तक ही सीमित नहीं है । उत्कृष्ट चिंतन द्वारा चेतनात्मक शीर्षासन किया जा सकता है ।

(भगवद्गीता) अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे । प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणा: ।। 4.29 ।।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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