Adhyatmik Kama Vigyan – 6
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Aatmanusandhan – Online Global Class – 11 Sep 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: वासना के दुष्परिणाम (अध्यात्मिक काम विज्ञान)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
‘संयम‘ – सदुपयोग (आकर्षण + संवर्धन + विनियोग) तो ‘असंयम‘ – दुरूपयोग का मार्ग प्रशस्त करता है ।
वासना के दुष्परिणाम को प्रजनन ऋतु में नर शील, हाथी, नर बिच्छू, फ्रॉग-फिश, कुत्ते, बिल्ली, साही, सर्प, हिरण, नर गरूड़, एंजिलर मछली, पैराडाइज मछली, एलीगैटर स्नैपर, स्पैरो आदि पशुओं के प्राणांतक स्थितियां उदाहरणार्थ समझाया गया है ।
“मरण बिंदुपातेन जीवन बिंदु धारणम्” सूत्र में:-
1. कामुकता के अमर्यादित चरणों (दुरूपयोग) को मरण का प्रतीक माना गया है, उसमें सर्वनाश ही सन्निहित है ।
2. उद्धत कामविकार, मृत्यु का दूत बनकर सामने आ खड़ा होता है ।
3. कामुकता का बाह्य स्वरूप कितना ही आकर्षक क्यों ना हो, उसके कलेवर में विष और विनाश के अतिरिक्त कुछ नहीं ।
4. मनुष्य की इन्द्रियां अनियंत्रित हों तो मनुष्य का आहार विहार असंयमित हो जाता है । उत्तेजित इन्द्रियों के चंगुल से मुक्त होना कठिन है ।
ज्ञानी व विचारशील व्यक्तित्व पूर्व से ही सतर्क रहते हैं और संयमित तथा मर्यादित जीवन जीते हैं, तभी वे कामविकार से बचते हैं और अपनी शक्ति, शांति व सम्मान सुरक्षित रख पाते हैं ।
5. इन्द्रियजन्य सुखों की स्थिति ऐसी है, जब वे बुलबुलाते हैं, तो मनुष्य यह नहीं समझ पाता कि उनका शरीर से संबंध है, आत्मा से नहीं । वह उन्हें अपना ही स्वजन सहायक समझकर, उनकी तृष्णा बुझाने में लगा रहता है और इस तरह आत्मा को अवनति के गर्त में धकेलता रहता है ।
अनासक्त निष्काम व्यक्तित्व ही बुद्धिमान, विचारशील व आत्मनिष्ठ होता है । संयमित तथा मर्यादित जीवन जीकर मनुष्य शक्तिशाली सामर्थ्यवान भी बनता है तथा सबके सम्मान का पात्र भी ।
काम विज्ञान के इसी परिष्कृत स्वरूप को जनमानस को समझाना युग की आज सबसे बड़ी आवश्यकता है ।
काम शक्ति (मूल ऊर्जा) एक पवित्र ऊर्जा है । दुरूपयोग से अमृत भी विष बन जाता है ।
स्वाध्याय सत्संग ईश्वर प्राणिधान आदि द्वारा उत्कृष्ट चिंतन (ज्ञानयोग), क्रियायोग प्रैक्टिकल द्वारा आदर्श चरित्र (कर्मयोग) एवं इनके एप्लिकेशन द्वारा शालीन व्यवहार (भक्तियोग) का धारक बना जा सकता है ।
जिज्ञासा समाधान
आत्मबोध (अंतरंग परिष्कृत) से स्वयं के स्वरूप व तत्त्वबोध (बहिरंग सुव्यवस्थित) से संसार को समझा जा सकता है ।
मंत्र अर्थात् परामर्श/ सलाह । गायत्री महामंत्र के परामर्श को जीवन में रचाना (ज्ञान), पचाना (कर्म) व बसाना (भक्ति) गायत्री साधना है । गायत्री महाविज्ञान के स्वाध्याय, प्रैक्टिकल व एप्लिकेशन से इसे हृदयंगम किया जा सकता है ।
अध्यात्म, रणछोड़ बनने (समस्याओं/ चुनौतियों में उलझने/ भागने) की नहीं प्रत्युत् रणजीत बनने (सुलझने व सुलझाने) की प्रेरणा देता है ।
गुरू अनुशासन में की गई साधना सफल होती है । रिद्धि सिद्धि का सदुपयोग आत्मकल्याण व लोककल्याण में किया जाए ।
प्रतिकूलता में अचेतन मन में प्रसुप्त कुसंस्कार (वासना, तृष्णा व अहंता) तीव्र गति से जाग्रत हो उठते हैं; फलतः आत्मविस्मृति हो जाती है । अचेतन मन को परिष्कृत कर सुपरचेतन मन से सायुज्यता बिठाई जा सकती है ।
उत्तेजना को दिशा देने के लिए (उर्ध्वगमन हेतु) ध्यानात्मक विधा (ध्यान – धारणा – समाधि) प्रभावी हैं । तन्मात्राओं से चिपकना नहीं है प्रत्युत् उनसे परे जाना है । तभी आगे की यात्रा संभव बन पड़ती है ।
हम जैसा दृढ़ विश्वास रखते हैं; आसपास वैसे ही परिस्थितियां बनती हैं और वैसा ही घटनाएं घटित होने लगती हैं (मनःस्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है) । परिवर्तन का आधार – मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले ।
साधक, साधन व साध्य । प्रारंभिक अवस्था में साधक, साधन का सदुपयोग साध्य से सायुज्यता स्थापित करने हेतु करते हैं । जैसे जैसे tuning बनती जाती है साधन गौण होता जाता है । अंततः साधक की अहंता विराट में लीन हो जाती है – एकत्व @ अद्वैत ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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