Adhyatmik Kama Vigyan – Introduction
Aatmanusandhan – Online Global Class – 07 Aug 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: आध्यात्मिक काम विज्ञान (परिचय)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
आत्मानुसंधान में आध्यात्मिक काम विज्ञान का ज्ञान नितांत आवश्यक । काम अत्यंत पवित्र ऊर्जा है जिससे सृष्टि संचरण की प्रक्रिया अनवरत चल रही है ।
शिव, शक्ति के बिना शव के समान हैं । सत् + चित्त = आनन्द (सच्चिदानन्द) । ज्ञान + कर्म = भक्ति ।
‘संभोग’ को स्थूल शारीरिक संबंधों तक संकीर्ण अर्थ में ना लिया जाए । ‘सम’ अर्थात् ईश्वर जो सर्वव्यापी हैं उनका सहचरत्व/ सायुज्यता/ संयोग ही ‘संभोग’ है ।
अनासक्त कर्मयोग, उच्चस्तरीय काम विज्ञान अनुप्रयोग है । हर एक कर्तव्य में दिव्य प्रेम की अनुभूति (आत्मीयता) ‘संभोग’ है ।
मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणात् – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1983/September/v2.8
पदार्थ + चेतना = प्रकृति । प्राण व रयि, ब्रह्मा व सावित्री, विष्णु व लक्ष्मी, शिव व उमा के युग्म से हम पुरूष व प्रकृति के महामिलन को समझ सकते हैं ।
सृष्टि, आकुंचन – प्राकुंचन एक घर्षण प्रक्रिया पर चल रही है । मांसपेशियों का सिकुड़ना फैलना, फेफड़ों का फूलना पिचकना आदि । कुण्डलिनी जागरण में हम चाकिंग प्रोसेस (आकुंचन प्राकुंचन) करते हैं । मूलाधार व सहस्रार का मिलन दिव्य मैथुनी प्रक्रिया है ।
मूल ऊर्जा, काम ऊर्जा ही है जिसके रूपांतरण उर्ध्वगमन/ उत्थान (सदुपयोग) से बात बनती है और निम्नगामी (दुरूपयोग) से बात बिगड़ती है ।
इन्द्रियां अपने विषयों (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) से संयोग (संभोग) करना चाहती हैं । यह संयमित हो तो उच्चस्तरीय आध्यात्मिक काम विज्ञान एवं असंयमित हो तो आसक्ति (वासना + तृष्णा + अहंता) ।
हम शरीर, विचार, भाव से संयोग/ संभोग करते हुए सबसे परे ‘आत्मा‘ से योग करें । आत्मा का परमात्मा से संयोग ही ‘योग’ है ।
आध्यात्मिक काम शास्त्र का ज्ञान विज्ञान जन जन तक सर्वसुलभ कराया जाए (गुरूदेव का आवाह्न) ।
अध्यात्मिक काम विज्ञान, नर नारी के निर्मल सामीप्य का समर्थन करता है । दृष्टिकोण पवित्र हो तो सामीप्य उत्थान का माध्यम बनते हैं । संतति के जीवन में माता पिता दोनों आवश्यक हैं । एक का भी अभाव प्रगति की पूर्णता में बाधक बन जाते हैं । संपूर्ण सृष्टि निर्मल सामीप्य का समर्थन करती हैं ।
जिज्ञासा समाधान
Meditation के गहराई में जाने हेतु क्रमशः शरीर भाव अंतःकरण चतुष्टय से परे जाकर आत्मानुभूति करनी होती है । मनोमयकोश साधना से ध्यानात्मक अभ्यास को गति देनी होती है । क्रमशः विज्ञानमयकोश व आनंदमयकोश के क्रियायोग लक्ष्य संधान में सहयोगी बनते चले जाते हैं ।
ईश्वर सर्वव्यापी सत्ता हैं । अतः जिस क्षेत्र में किशोर किशोरियों की रूचि है उस क्षेत्र में उन्हें प्रवीण बनने हेतु प्रेरित करें । (मूल ऊर्जा) काम ऊर्जा निपुण, प्रवीण @ excellent की ओर ले जाएं invest (उर्ध्वगमन) होगा, waste (निम्नगामी) नहीं होगा ।
पति – पत्नी दोनों साथ साथ साधना क्षेत्र (प्रगति पथ) पर आगे बढ़ें तो वैवाहिक जीवन बाधक नहीं प्रत्युत् सहयोगी होते हैं । मिलन केवल शारीरिक नहीं हों प्रत्युत् आत्मिक हों । भारतीय संस्कृति में विवाह को आत्मिक मिलन की संज्ञा दी जाती हैं । विवाह में सात फेरों संग सात वचन/ शपथ दिलाई जाती हैं । उन्हें जीवन में रचा पचा बसा लिया जाए तो धन्य धन्य दांपत्य जीवन (गृहस्थाश्रम) ।
कुण्डलिनी जागरण अचूक (रामबाण) उपाय है काम ऊर्जा के रूपांतरण (उर्ध्वगमन) हेतु । दो parameters हैं – सदुपयोग (कल्याण) से बात बनती है और दुरूपयोग से बात बिगड़ती है । मानव जीवन के चार स्तंभ – समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी व बहादुरी । मानव को जन्मजात ईश्वरीय प्रदत्त 4 शक्ति:-
1. इन्द्रिय संयम/ शक्ति
2. समय संयम/ शक्ति
3. विचार संयम/ शक्ति
4. अर्थ संयम/ शक्ति ।
‘संयम = ध्यान+ धारणा+ समाधि‘, हम संयमित संतुलित हों @ समत्वं योग उच्यते ।
ईश्वरीय गुणों के क्रियाकलापों को समझने समझाने हेतु शक्ति के अलग अलग नाम वर्णित हैं । ईश्वर एक हैं @ अद्वैत ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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