Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
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Bandh and Mudra

Bandh and Mudra

बन्ध एवं मुद्रा (प्राणमयकोश)

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 03 दिसंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

विषय: बन्ध एवं मुद्रा (प्राणमयकोश)


Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:-
1. डाॅ॰ सुरेन्द्र पटेल जी (पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार)
2. आ॰ अश्विनी कुमार जी (गोरखपुर, उ॰ प्र॰)

पूर्व कक्षा में हम प्राणमयकोश व प्राणायाम के विषय में जान चुके हैं ।

5 महाप्राण व 5 लघुप्राण से यह उत्तम प्राणमयकोश बना है । (क्रियायोग) प्राणायाम,  बन्ध व मुद्रा के अभ्यास से यह सिद्ध होता है ।

प्राणायाम अंतर्गत क्रिया :-
1. पूरक – श्वास भीतर लेना (breathing in @ inhale)
2. अंतः-कुंभक – श्वास बाहर रोकना (holding breath inside)
3. रेचक – श्वास बाहर छोड़ना (exhale)
4. बाह्य-कुंभक – श्वास बाहर रोकना (holding breath outside)
भावना (योग) – सत्प्रवृत्ति संवर्धन + दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन  + आत्मकल्याण + लोककल्याण + वातावरण परिष्कार @ स्वयं को जानना + धरा को स्वर्ग बनाना @ आत्मबोध + तत्त्वबोध ।

बन्ध एवं मुद्रा – http://literature.awgp.org/book/aasan_pranayam_bandh_mudra_panchakosh_dhyan/v1.5

बन्ध :-
क्रियाNeuromuscular locking process:-
1. मूलबंध – गुदा व जननेंद्रिय के बीच वाले हिस्से को उपर खींचे रखना ।
2. उड्डीयान बंधपेट को अंदर पीठ की तरफ ले जाना ।
3. जालंधर बंधदाढ़ी को कंठ कूप में लगाना ।
4. महाबंध = मूलबंध + उड्डीयान बंध + जालंधर बंध ।
भावना/ उद्देश्य (योग) – प्राण के क्षरण (misuse) को रोकना + प्राण का अभिवर्धन/ संवर्द्धन (development/ progress) + प्राण का विनियोग (good use) @ कुण्डलिनी जागरण  @ त्रिगुणात्मक संतुलन/ साम्यता/ ग्रन्थि भेदन (balanced) ।

अंगुलियों में पंच तत्त्व :-
1. अंगुष्ठ (thumb) – अग्नि (fire)
2. तर्जनी (index finger) – वायु (air)
3. मध्यमा (middlefinger) – आकाश (sky)
4. अनामिका (ring finger) – पृथ्वी (earth)
5. कनिष्ठा (little finger) – जल (water) ।

हस्त मुद्राएं – पुस्तक मुद्रा, ज्ञान मुद्रा,  प्राण मुद्रा, पृथ्वी मुद्रा,  वायु मुद्रा, अपान मुद्रा, शून्य मुद्रा,  आकाश मुद्रा,  सहज शंख मुद्रा, शंख मुद्रा,  जलोदर नाशक मुद्रा, सूर्य मुद्रा, अपानवायु मुद्रा,  वरूण मुद्रा, आदित्य मुद्रा,  लिंग मुद्रा,  ध्यान मुद्रा ।

हठयौगिक मुद्राएं
1. महामुद्रा
2. महाबन्ध मुद्रा
3. महावेध मुद्रा
4. खेचरी मुद्रा
5. उड्डीयान बंध मुद्रा
6. जालंधर बंध मुद्रा
7. मूलबंध मुद्रा
8. विपरीतकरणी मुद्रा
9. वज्रोली मुद्रा
10. शक्तिचालिनी मुद्रा

रोगानुसार मुद्राएं – http://literature.awgp.org/book/aasan_pranayam_bandh_mudra_panchakosh_dhyan/v1.7

Demonstration :-
1. भस्रिका युक्त नाड़ीशोधन प्राणायाम
2. बन्ध
3. हस्त मुद्राएं
4. यौगिक मुद्राएं
5. महाबन्ध + महामुद्रा + महावेध ।
6. विपरीतकरणी मुद्रा ।

जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ शिक्षक बैंच व सभी पार्टिसिपेंट्स को नमन व हार्दिक साभार ।

क्रियायोग अभ्यास आत्मपरिष्कार (आत्मसमीक्षा + आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मविकास) हेतु है । स्वयं की रूचि प्रकृति फैकल्टी व उम्र को ध्यान में रखते हुए क्रियायोग का चुनाव किया जा सकता है ।

क्रियायोग अभ्यास में कॉन्सेप्ट समझें व रिसर्च को प्राथमिकता दें । सिद्ध (लाभान्वित) होने के उपरांत अनुभव युक्त शिक्षण प्रशिक्षण से समाज को लाभान्वित करें ।

चक्रों (शक्ति केन्द्रों) पर भावनात्मक/ ध्यानात्मक शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है ।

जीव (जीवात्मा) = आत्मा + पंचकोश । जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्यात् तुषाभावेन तण्डुलः ।।

साधना की महत्ता साधक व साध्य के मिलन (योग/ एकत्व) में है । साधना से सिद्धि मिलती है । सिद्धि के आसक्ति में ना फंसे प्रत्युत् जीवनोद्येश्य (आत्मबोध + तत्त्वबोध) मे संलग्न रहें ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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