Bandh and Mudra Vigyan (बंध एवं मुद्रा विज्ञान)
🌕 PANCHKOSH SADHNA ~ Online Global Class – 11 Jul 2020 (5:00 am to 06:30 am) – प्रज्ञाकुंज सासाराम – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh @ बाबूजी
🙏ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. बन्ध एवं मुद्रा विज्ञान
📡 Broadcasting. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकुर सक्सेना जी
🌞 आ॰ शरद जी (राजस्थान)
🌸 गायत्री मंजरी – बन्धेन मुद्रयाचैव प्राणायामेन चैव हि। एषः प्राणमयः कोशो यतमानं तु सिद्ध यति।।21।।
बन्ध, मुद्रा और प्राणायाम द्वारा यत्नशील पुरुष को यह प्राणमय कोश सिद्ध होता है।
🌸 बंध के अभ्यास से हम शरीर के विभिन्न अंगों तथा नाड़ियों को नियंत्रित करने में समर्थ एवं विचारों एवं आत्मिक तरंगों को प्रभावित कर चक्रों पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं।
🌸 बंध के प्रकार – १. मूल बंध २. उड्डियान बंध, ३. जालंधर बंध व ४. महाबंध
🌸 मूल बंध – प्राणायाम करते समय गुदा के छिद्रों को सिकोड़कर ऊपर की ओर खींचे रखना मूल-बंध कहलाता है। लाभ:-
👉 अपान स्थिर
👉 वीर्य का अधः प्रभाव रुककर स्थिरता
👉 प्राण का उर्धवगमन
👉 मूलाधार स्थित कुण्डलिनी में चैतन्यता
👉 आँतें बलवान होती हैं, मलावरोध नहीं होता रक्त-संचार की गति ठीक रहती है।
👉 अपान और कूर्म दोनों पर ही मूल-बंध का प्रभाव रहता है। वे जिन तन्तुओं में बिखरे हुए फैले रहते हैं, उनका संकुचन होने से यह बिखरापन एक केन्द्र में एकत्रित होने लगता है।
👉 धैर्य व संघर्ष-शीलता में अभिवृद्धि
💡 अभ्यास सहज व ध्यानपरक हों
🌸 उड्डियान बंध – पेट में स्थित आँतों को पीठ की ओर (उपर) खींचने की क्रिया को उड्डियान बंध कहते हैं। इसे मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला कहा गया है। लाभ:-
👉 दीर्घायु जीवन
👉 आँतों की निष्क्रियता दूर
👉 अन्त्र पुच्छ, जलोदर, पाण्डु यकृत वृद्धि, बहु मूत्र सरीखे उदर तथा मूत्राशय के रोगों को दूर भगाता है।
👉 आमाशय, आँत, जिगर, गुर्दे, मूत्राशय, हृदय फुक्कुस आदि उदर के सभी अंग अवयव बलिष्ठ
👉 नाभि स्थित ‘समान’ और ‘कृकल’ प्राणों से स्थिरता
👉 बात, पित्त व कफ की शुद्धि
👉 आत्मविश्वास/आत्मबल, उमंग – उत्साह में अभिवृद्धि
👉 सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुलता है और स्वाधिष्ठान चक्र में चेतना आने से वह स्वल्प श्रम से ही जागृत होने योग्य हो जाता है। स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करने व विद्युत चुम्बकीय प्रवाहों से वहाँ पर बैठे ऑटोनोमिक संस्थान के नाड़ी गुच्छकों के उत्तेजित होने से सुषुम्ना का प्रसुप्त पड़ा द्वार खुलता है।
🌸 जालंधर बंध – मस्तक को झुकाकर ठोड़ी को कण्ठ-कूप में लगाने को जालंधर-बंध कहते हैं। लाभ:-
👉 श्वास-प्रश्वास क्रिया पर अधिकार
👉 ज्ञान-तन्तु बलवान
👉 १६ स्थान की नाड़ियों पर प्रभाव:- १. पादांगुष्ठ, २. गुल्फ, ३. घुटने, ४. जंघा, ५. सीवनी, ६ . लिंग, ७. नाभि, ८. हदय, ९. ग्रीवा १०. कण्ठ ११. लम्बिका, १२. नासिका, १३. भ्रू, १४. कपाल, १५. मूर्धा और १६. ब्रह्मरंध्र।
👉 अनाहत, विशुद्धि और आज्ञा चक्र तीनों पर प्रभाव
👉 मस्तिष्क शोधन
👉 बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता जागरण
👉 अभिमान का स्वाभिमान में रूपांतरण
👉 नम्रता भरी सज्जनता का विकास
🌸 महाबंध – जब तीनों बंध एक साथ प्रयुक्त करते हैं तो इसे ‘महाबंध’ की स्थिति कहते हैं। लाभ:-
👉 प्राणमय कोश को परिशोधित एवं चक्रों को जागृत करने में सहायक
👉 मानसिक सक्रियता में वृद्धि
👉 अतीन्द्रिय क्षमताएँ जागरण
🌸 मुद्राएँ – शिव संहिता में निम्नांकित मुद्राओं को महाप्रभावी बताया गया है – महामुद्रा, महाबंध, महाबेध, खेचरी, वज्रोली, शक्तिचालिनी, अश्विनी व विपरीतकरणी मुद्रा।
💐 आ॰ भैया ने नाद योग की साधना से सुक्ष्म कर्णेन्द्रियों के विकसित और सहज समाधि की अवस्था में उत्तरोत्तर प्रगति होने के अनमोल अनुभव साझा किया है।
🌸 “महामुद्रा + महाबंध + महाबेध” की क्रिया विधि व लाभ
🌸 विपरीतकरणी मुद्रा @ शीर्षासन की क्रियाविधि व लाभ
🌞 Q & A with Shri LB Singh
🙏 “महामुद्रा + महाबंध + महाबेध” के अभ्यास से:-
👉 शरीर के 72000 नाड़ियों का शोधन
👉 प्राण का उर्धवगमन @ मूलाधार व सहस्रार का मिलन @ काम ऊर्जा का ज्ञान ऊर्जा में रूपांतरण
👉 वासना, तृष्णा व अहंता शांत
👉 चक्रों का जागरण
👉 ग्रंथि भेदन
💡 सहजता का सदैव ध्यान रखें।
🙏 क्रियायोग के अभ्यास का चुनाव सहजता के साथ करें और समय सीमा का निर्धारण अच्छा लगने तक रखें अर्थात् uneasy feel ना हों। उत्तरोत्तर प्रगति होने के बाद अभ्यास ध्यानपरक होते चले जाते हैं।
🙏 योगाभ्यास में cleaning (अपानन्) व healing (प्राणन्) की प्रक्रिया साथ चलती रहती हैं।
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||
🙏Writer: Vishnu Anand 🕉
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