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Benefits of Tatva-Sudhi

Benefits of Tatva-Sudhi

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 28 Nov 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: तत्त्व शुद्धि से आश्चर्यजनक लाभ

Broadcasting. आ॰ अमन जी

आ॰ सुशील त्यागी जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)

“मिट्टी, पानी, हवा, आग व आकाश” का संप्रसार ही सृष्टि है। ‘यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे’ – जिससे यह सृष्टि बनी उससे यह शरीर भी। इनके परिवर्तन से ‘सृजन’ व ‘संहार’ का क्रम चलता है। आयुर्वेद में ‘वात’ का अर्थ है – वायु, ‘पित्त’ – गर्मी व ‘कफ’ – जल के असंतुलन से रोगों की उत्पत्ति व संतुलन से निरोग जीवन की उपलब्धि। 5 तत्त्वों में ‘पृथ्वी’ – स्थिर शरीर का आधार। शरीर का आकार इस तत्त्व पर निर्भर करता है। ‘आकाश’ – का संबंध मन, बुद्धि व इन्द्रियों की सुक्ष्म तन्मात्राओं से है। ‘वायु’ – के असंतुलन से गठिया, लकवा, नस – नाड़ी रोग etc। ‘अग्नि’ – के असंतुलन से फोड़े-फुंसी, Fever, chickenpox, diarrhea, cholera, skin diseases etc.। ‘जल’ – के असंतुलन से जलोदर, Dysentery, बहुमुत्र, diabetes, स्वप्नदोष, cold & cough etc.

‘वेदान्त’ में इन 5 तत्वों को ‘आत्मा’ का आवरण व बन्धन माना गया है। यह परिवर्तनशील जगत 5 तत्त्वों के उड़ने फिरने का खेल मात्र है। अतः हमें परिवर्तनशील जगत का सदुपयोग मात्र करना चाहिए; इनसे चिपका/आसक्त ना हुआ जाए। ‘जल’ तत्त्व में ‘विशिवा’ नामक विद्युत होती है जिससे हमें अपने शरीर को उज्ज्वल बनाना होता है व Oxygen, Nitrogen etc से शरीर को सींचना भी। इसके संतुलन हेतु ऊषापान, घूंट घूंट पानी पीयें, शरीर को रगड़ रगड़ कर नहाना आदि को दैनिक जीवन में सम्मिलित करें। जल चिकित्सा पद्धति जैसे गीले कपड़े की पट्टी, गीले चादर को लपेटना, कटि स्नान, आदि से रोगों का निवारण किया जाता है।
‘अग्नि’ तत्त्व के संतुलन हेतु सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहना, कमरे में धूप का आना, सुबह की धूप संपूर्ण शरीर पर कम कपड़े में लेना आदि। सुर्य की 7 किरणों में Ultraviolet व अल्फा वायलेट किरणें बहुत उपयोगी हैं। रविवार को उपवास रखना भी बल व तेज में अभिवृद्धि करता है।
‘वायु’ तत्त्व के संतुलन हेतु Morning Walk, प्राणायाम, हवन, नाक से सांस लेना, स्वच्छ व हवादार कमरे में रहना आदि को अपने दैनंदिन जीवन में शामिल करें।

आ॰ सुशील त्यागी भैया यामाहा इंडस्ट्रीज में Assistant Manager के पद पर कार्यरत हैं। पंचकोशी क्रियायोग, ऊषापान, मार्निंग वाक, उपवास, अस्वाद व्रत, तुलसी पत्र शोध, फील्ड ड्युटी, कठिन परिश्रम आदि इनके दैनंदिन जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। 57 वर्ष की उम्र में भैया Delhi NCR में COVID-19 Pandemic में अपनी ड्युटी को करते हुए आरोग्य को धारण किया है।

आ॰ सुशील सुमन जी (बैंगलोर, कर्नाटक)

पंच तत्त्वों के अलग-अलग अनुपात में सम्मिश्रण से इस सृष्टि व हमारे शरीर का निर्माण होता है। इन तत्त्वों के अनुपात में असंतुलन होने से शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। स्थूल दिखने वाले पंच तत्त्व के सुक्ष्म रूप में होते हैं। हमारी यात्रा स्थूल से सुक्ष्म की ओर है अतः दोनों पक्षों को ध्यान में रखना है।
‘पृथ्वी’ तत्त्व के संतुलन हेतु स्वच्छ भूमि/ छोटे छोटे घास पर नंगे पांव टहलना, मिट्टी स्नान, मिट्टी पर खेलना, मिट्टी से हाथ मांजना, Gardening, Farming etc अर्थात् मिट्टी के संपर्क में रहना। मिट्टी में विष निवारण की अद्भुत शक्ति होती है।
‘आकाश’ यह पिछले 4 तत्त्वों की अपेक्षा सुक्ष्म व शक्तिशाली है। “बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति व परा” – चारों वाणियां आकाश में तरंग रूप में प्रवाहित होती हैं। शरीर में ‘मन या मस्तिष्क’ (mind) आकाश तत्त्व का प्रतिनिधि है। ‘स्वाध्याय’ (अध्ययन + चिंतन-मनन + निदिध्यासन) से भैया ने तत्त्व-शुद्धि का स्व जीवन में संधान किया है।

प्रश्नोत्तरी सेशन with श्री लाल बिहारी बाबूजी

आ॰ सुशील त्यागी जी की 57 वर्ष में युवावस्था की तरह ओज – तेज का धारण करना, कर्मठता, शारीरिक रोगों को दूर कर आरोग्य को धारण करना व आ॰ सुमन जी की वैज्ञानिक अध्यात्म शोध प्रसन्नता का विषय है।

पंचतत्व – पृथ्वी तत्व का स्वाद मीठा, जल का कसैला, अग्नि का तीखा, वायु का खट्टा और आकाश का खारा होता है। ‘अस्वाद व्रत’ का अर्थ स्वाद को नहीं ग्रहण करने के अर्थ में ना लें। इसमें उस स्वाद को संयमित/ संतुलित करना होता है जिसके चिपकाव/आसक्ति से हमारे शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। “स्वादिष्ट खायें – स्वस्थ रहें”।

अस्वाद व्रत से हमें सर्वप्रथम Over diet से निजात मिलती है। जिस स्वाद से चिपकाव होता है वो ज्यादा ग्रहण कर ली जाती है।

‘सांख्य दर्शन’ में सृष्टि निर्माण में 24 तत्त्वों की बात कही गई हैं 25 वां पुरूष/ आत्मा है। यहां 5 तत्त्वों से सृष्टि निर्माण की बात कही गई हैं। आइए इसे समझें:-
पृथ्वी तत्त्व – 5 कर्मेन्द्रियां, जल तत्त्व – 5 तन्मात्रायें, अग्नि तत्त्व – 5 ज्ञानेन्द्रियां, वायु तत्त्व – 5 प्राण, आकाश तत्त्व – 4 (अंतः करण चतुष्टय) = कुल 24 तत्त्व पंच तत्त्वों का ही derived form हैं।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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