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Bindu Sadhna – 1

Bindu Sadhna – 1

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 16 May 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: बिन्दु साधना – 1

Broadcasting: आ॰ अंकुर जी

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

पंचकोश सूक्ष्म हैं। सूक्ष्म अर्थात् अप्रत्यक्ष – अदृश्य। प्रत्यक्षवादी अध्यात्म विज्ञान ने शरीर संरचना विज्ञान के अनुरूप हम पंचकोशों के प्रभाव क्षेत्र व परिणामों को देखते हुए प्रत्यक्ष शरीर में पंचकोशों की उपस्थिति ~ अन्नमय कोश की चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियों से, प्राणमय कोश की जैव विद्युत संस्थान से , मनोमय कोश की जैव चुम्बकत्व से, विज्ञानमय कोश की न्यूरोह्यूमरल रस स्रावों (स्नायु रसायन ) से एवं आनन्दमय कोश की मस्तिष्क मध्य अवस्थिति रेटिकुलर ऐक्टिवेटिंग सिस्टम रूपी विद्युत् स्फुल्लिंगों के फव्वारे से संगति बिठायी जाती है।

व्यक्ति की सूक्ष्म सत्ता का वर्गीकरण, “स्थूल, सूक्ष्म व कारण” तीन शरीरों में किया जाता रहा है।
आत्मिकी में अन्नमय एवं प्राणमय कोशों का समुच्चय ही स्थूल शरीर है।
मनोमय कोश जैव चुम्बकत्व का भण्डागार है। यह प्रभा मण्डल के रूप में मनुष्य के चारों ओर तेजोवलय का घेरा बनाता है। इसे सूक्ष्म शरीर का पर्यायवाची माना जा सकता है।
कारण शरीर विज्ञानमय कोश व आनन्दमय कोश का सम्मिलित रूप माना जा सकता है। स्नायु समुच्चय के सन्धि स्थलों (सिनेप्सों) से सुषुम्ना, मस्तिष्क व ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम के भिन्न-भिन्न महत्वपूर्ण केन्द्रों पर स्रावित होने वाले स्नायु रसायनों (न्यूरो ह्यूमरल सिक्रीशन्स )एवं थेलेमस मध्य स्थित रेटिकुलर ऐक्टिवेटिंग सिस्टम को क्रमशः विज्ञानमय एवं आनन्दमय कोशों का प्रतीक रूप माना जा सकता है। 

मानवी-चेतना को 5 भागों में विभक्त किया गया हैं जिन्हें पंचकोश कहा जाता है:-
अन्नमय कोश – इन्द्रिय चेतना।
प्राणमय कोश – जीवनी शक्ति।
मनोमय कोश – विचार-बुद्धि।
विज्ञानमय कोश – अचेतन सत्ता व भाव-प्रवाह।
आनन्दमय कोश – आत्मबोध – आत्मजाग्रति।

जब तक हममें नकारात्मकता (poison/ toxins @ 40 चोर – 10 शूल + 6 विकार + 6 उर्मी + 6 भाव + 6 भ्रम + 5 कोश + 1 द्वैत) है तब तक विक्षोभ है। इनसे उपर उठकर ही हम विषयानंद @ खण्डानंद से परे अखण्डानंद का बोधत्व करते हैं। यह immunity का ऐसा layer है जिसे कोई भी भेद नहीं सकता है – अथाह आनंद – शांति @ infinite peace & bliss.

सूक्ष्म से सूक्ष्म और महत् से महत् केन्द्रों पर जाकर बुद्धि की सीमा समाप्त हो जाती है अर्थात् उससे छोटे या बड़े होने की कल्पना नहीं हो सकती, उस केन्द्र को ‘बिन्दु’ कहते हैं। यह बिन्दु ही परमात्मा है। उसी को छोटा से छोटा (अणु) और बड़े से बड़ा (विभु) कहा जाता है।

अणु में विभु। गागर में सागर। यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे। द्रष्टा, दृश्य व दर्शन जिस एक बिन्दु पर मिलते हैं वो साधना बिन्दु साधना कहलाती है जो ‘त्रिकूटी’ पर की जाती है।

मैं मध्य बिन्दु हूं, केन्द्र हूं, सूक्ष्म से सूक्ष्म व स्थूल से स्थूल में मेरी व्यापकता है। लघुता-महत्ता का एकान्त चिंतन ही ‘बिन्दु-साधना’ कहलाता है।

इसकी परिणति को हम दैनंदिन जीवन में आत्मीयता/ unconditional love @ अनासक्त कर्मयोग के रूप में साक्षात्कार कर सकते हैं।

जिज्ञासा समाधान

सभी शिक्षक की mode of teaching होती है। उनके शब्दों के अर्थ उनके शिक्षण के अनुरूप ही प्रकट होते हैं।

प्रारंभिक साधकों के लिए ‘स्वावलंबन’ बिन्दु साधना है। प्राणों के अनावश्यक क्षरण को रोकना, प्राण संवर्द्धन व उनका सुनियोजन – बिन्दु साधना है। एकत्व – बिन्दु साधना है।

गुरूदेव कहते हैं – संसार में जीवित वही हैं जिसका रक्त – गर्म व मस्तिष्क – ठण्डा हो। Cool mind से किये गये कार्य बन्धन कारी नहीं होते हैं। क्रिया, योग तब बनती है जब श्रम (गर्म खून) प्रज्ञा बुद्धि (cool mind) से किये जाते हैं। श्रद्धावान, प्रज्ञावान, श्रमशील व निष्ठावान‌ साधक ही क्रियायोग का वास्तविक अभ्यास करते हैं।

उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। उठो जागो और लक्ष्य का वरण करो। प्राण का जागरण ही महान जागरण है। प्राणमय कोश की साधना में बिन्दु साधना काम-बीज का ज्ञान-बीज में रूपांतरण है।

‘परिवर्तन’ का बीज वही बोते हैं जो मान्यताओं के विरुद्ध अर्थात् धाराओं के विपरीत चलते हैं।
वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या, यदि राह पर बिखरे शूल ना हों। नाविक की धैर्य कुशलता क्या, यदि धारायें प्रतिकूल ना हों।।
गुरूदेव कहते हैं की हम परंपराओं के जगह ‘विवेक’ को महत्व दें।

Duty (कर्म) से ‘वैराग्य’ लेना भारी भूल है। वैराग्य ‘राग’/ आसक्ति/ चिपकाव से लिया जाता है @ अनासक्त कर्मयोग। कर्म, अनासक्त तब हो सकते हैं जब वो ‘ज्ञान’ व ‘भक्ति’ से युक्त हो। सद्ज्ञान + सत्कर्म = सद्भाव @ unconditional love।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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