Brahmbindu Upanishad
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 02 Jan 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: ब्रह्मबिन्दु उपनिषद्
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
भावार्थ वाचन: आ॰ किरण चावला जी (USA)
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
प्राणाकर्षण:-
1. आकर्षण
2. संधारण
3. विनियोग
विनियोग अर्थात् practically application @ सदुपयोग @ अनासक्त कर्मयोग/ ज्ञानयोग/ भक्तियोग। पंचकोसी यज्ञ में पंचाग्नि विनियोग:-
(जाग्रत/ परिष्कृत अन्नमयकोश अर्थात् निरोगिता, दीर्घजीवन व चिरयौवन) प्राणाग्नि का विनियोग जीवाग्नि प्रज्वलित करने में (प्राणमयकोश जागरण),
(जाग्रत प्राणमयकोश अर्थात् ऐश्वर्य, पुरूषार्थ, ओज – तेज़ व यश) जीवाग्नि का विनियोग योगाग्नि प्रज्वलित करने में (मनोमयकोश जागरण),
(जाग्रत मनोमयकोश अर्थात् आकर्षक व्यक्तित्व, धैर्य, मानसिक संतुलन व एकाग्रता – बुद्धिमत्ता) योगाग्नि का विनियोग आत्माग्नि प्रज्वलित करने में (विज्ञानमयकोश जागरण) ,
(जाग्रत विज्ञानमयकोश अर्थात् अतीन्द्रिय क्षमता, दिव्य दृष्टि, दैवीय गुण, सज्जनता व सहृदयता) आत्माग्नि का विनियोग ब्रह्माग्नि प्रज्वलित करने में (आनंदमयकोश जागरण)
(जाग्रत आनंदमयकोश अर्थात् आत्मसाक्षात्कार, ईश्वर दर्शन व अखंडानंद) ब्रह्माग्नि का विनियोग एकत्व/ अद्वैत ।
समर्पण (वासना/ तृष्णा/ अहंता @ उद्विग्नता – शांत) – विलयन – विसर्जन – एकत्व/ अद्वैत ।
“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।” (मन ही सभी मनुष्यों के बन्धन एवं मोक्ष का कारण है ।) मन के 2 प्रकार:-
1. शुद्ध मन (अनासक्त/ निष्काम) – मोक्ष ।
2. अशुद्ध मन (आसक्त) – बन्धन ।
“मन का हृदय में लीन हो जाना ही ज्ञान और मुक्ति है ।”
कठोपनिषद् – यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनि । ज्ञानमात्मनि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि ॥1-III-13॥ भावार्थ: बुद्धिमान वाक् को मन में विलीन करे । मन को ज्ञानात्मा अर्थात बुद्धि में लय करे । ज्ञानात्मा बुद्धि को महत् में विलीन करे और महत्तत्व को उस शान्त आत्मा में लीन करे ॥
चिन्तनीय और अचिन्तनीय – एक @ गुरू व शिष्य – एक @ भक्त व भगवान – एक @ सविता व साधक – एक अर्थात् एकत्व/ अद्वैत (no difference) = ब्रह्मलीन।
Variations – 24 तत्त्व । शक्ति एक – शक्ति धारा अनेक ।
प्रपंच (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) का लय – प्रलय (साम्यता/ एकत्व) @ अद्वैत – वास्तविक ज्ञान (बोधत्व) ।
आत्मा शाश्वत है । जन्म मरण से शरीर आबद्ध है । @ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।२३।।
दो विद्या जानने योग्य:-
1. शब्द ब्रह्म (वेद – शास्त्र ज्ञान)
2. परमब्रह्म (अद्वैत)
अहरह स्वाध्याय = अध्ययन + चिंतन – मनन – मंथन + निदिध्यासन ।
“एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति - एकत्व/ अद्वैत ।”
जिज्ञासा समाधान
परिवर्तनशील सत्ता – क्षर/व्यक्त व अपरिवर्तनशील सत्ता – अक्षर/ अव्यक्त ।
भाव रूप अर्थात् आत्मीयता/ चेतना पक्ष – भावे विद्यते देवा । जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ।
तत्त्व दर्शन/ तत्त्वज्ञान – सदुपयोग का मार्ग प्रशस्त करता है अर्थात् हमें दुरूपयोग/ अति उपयोग का माध्यम नहीं बनने देता है । गुड़ व गोबर दोनों की उपयोगिता अपनी अपनी जगह है । आदर्शों/ गुणों/ सकारात्मकता के सर्वदर्शन से ईश्वर-दर्शन संभव बन पड़ता है । ईश्वर की हर एक रचना – ईश्वरांश, ईश्वरीय कार्य हेतु हैं ।
अन्तःकरण चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) का परिचय – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/October/v2.7
भाव लोक @ आत्मीयता (अनासक्त/ निःस्वार्थ प्रेम) ।
आसक्ति वश (आत्मविस्मृति में) किये गये कार्य, पछतावे का कारण बनते हैं । शांतिकाल में दुष्ट प्रवृत्ति के प्रति ‘उपेक्षा-योग‘ प्रभावशाली है ।
यौगिक क्रिया (क्रियायोग) को क्रिया तक ही सीमित ना रखा जाए प्रत्युत् जीवन लक्ष्य (आत्मबोध + तत्त्वबोध = परमात्म बोध) में प्रयुक्त किया जाए ।
प्रतिप्रसवन – “अन्नमयकोश की आत्मा – प्राणमयकोश, प्राणमयकोश की आत्मा – मनोमयकोश, मनोमयकोश की आत्मा – विज्ञानमयकोश, विज्ञानमयकोश की आत्मा – आनंदमयकोश, आनंदमयकोश की आत्मा – आत्मा व आत्मा की आत्मा – परमात्मा । @ प्रत्यक्ष से अपरोक्ष @ व्यक्त से अव्यक्त @ चिन्तनीय से अचिन्तनीय ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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