Brahmvidyopnishad-1
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 12 Dec 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: ब्रह्मविद्योपनिषद् – 1 (श्लोक १-४०)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
भावार्थ वाचन: आ॰ किरण चावला जी (USA)
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
विश्वगुरु भारत – सोने की चिड़िया अर्थात् ऋषि मनिषी आत्मिकी व भौतिकी (विद्यां च अविद्यां च/ परा – अपरा) दोनों क्षेत्रों में समृद्ध @ तेन त्यक्तेन भुंजीथा ।
ब्राह्मी चेतना का क्षेत्र असीम, अनन्त, अद्भुत एवं अगोचर हैं, उसका अवगाहन महाप्रज्ञा के द्वारा ही संभव है। अध्यात्म विज्ञानी “श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा” के त्रिविध क्षेत्रों का अवगाहन करते हैं और देवमानव स्तर के विभुतिवान बनते हैं।
श्रद्धा अग्नि समिधा समिधयते। अथर्ववेद में एक मंत्र आता है – “अग्ने समिध महर्षि बृहते जातवेदसे स में श्रद्धाँ मेघाँ च जातवेदः प्रयच्छतु॥” (19/64/15)
अर्थात्− “हे यज्ञाग्ने! तू महान और सब उत्तम पदार्थों को प्राप्त कराने वाला है। अतः मैं मेरे अंदर श्रद्धापूर्वक समिधा प्रदान करता हूँ। तू कृपाकर मुझे श्रद्धा और मेधा प्रदान कर।” प्रज्ञा – इसी प्रकार ऋग्वेद का ऋषि एक स्थान पर कहते हैं – “इमं यज्ञं मेधावन्तं कृधीः” (प्रभो! हमारे इस यज्ञ को मेधावान बना दो) तथा “जातवेदो मेधाँ अस्मासु धेहि (हे यज्ञाग्ने! तू हमारे अन्दर मेधा को धारण करा)।”
जीवन यज्ञ/ आत्मसाधना @ पंचकोश साधना अर्थात् पंचाग्नि विद्या:-
अन्नमयकोश (क्रियायोग – आसन, उपवास, तत्त्व शुद्धि व तपश्चर्या) – प्राणाग्नि
अन्नमयकोश की आत्मा – प्राणमयकोश (क्रियायोग – प्राणायाम, बंध व मुद्रा) – जीवाग्नि
प्राणमयकोश की आत्मा – मनोमयकोश (क्रियायोग – जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना) – योगाग्नि
मनोमयकोश की आत्मा – विज्ञानमयकोश (क्रियायोग – सोऽहम, आत्मानुभूति, स्वर संयम व ग्रन्थि भेदन ) – आत्माग्नि
विज्ञानमयकोश की आत्मा – आनंदमयकोश (क्रियायोग – नाद, बिन्दु, कला साधना व तुरीयास्थिति ) – ब्रह्माग्नि ।
आत्मा की आत्मा परमात्मा ।
हंसयोग (सोऽहम साधना – विज्ञानमयकोश) – आत्मसाधक, गुरू के शिक्षण-प्रशिक्षण/ उपदेश/ मार्गदर्शन में साधना करते हुए आत्मा द्वारा आत्मा का साक्षात्कार करते हैं ।
जिज्ञासा समाधान
भारतीय दर्शन सार्वभौम दर्शन हैं । यह सुक्ष्मातिसुक्ष्म व महती से भी महती में सन्निहित है । यह जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है ।
“गुरू करो जान के – पानी पीयो छान के ।” विवेक युक्त श्रद्धा हमें अंधभक्ति/ अंधानुकरण/ भेड़ चाल से बचाती हैं । जब योग्य गुरू को समर्पित हो जाते हैं तो पूर्ण रूपेण समर्पित एकनिष्ठ हो लक्ष्य का बोधत्व (उपासना समर्पण योग) करें ।
श्रुति अर्थात् उपनिषद् । उप – सामीप्येन, नि – नितरां, प्राम्नुवन्ति परं ब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद् अर्थात् जिस विद्या के द्वारा परब्रह्म का सामीप्य एवं तादातम्य (योग) प्राप्त किया जा सके, वह उपनिषद् है।
जिज्ञासा समाधान में गुरू की चुप्पी (silence) शिष्य को अथक प्रयास/ अनुसंधान (research) का निर्देश देती है ।
शांत मन अर्थात् “वासना – शांत, तृष्णा – शांत, अहंता – शांत व उद्विगनता – शांत।”
जड़ता @ स्थिरता – gravity. ऊर्जा को जड़, चेतना को विवेक की संज्ञा दी जाती है । विवेक युक्त ऊर्जा; जहां ऊर्जा dominant हो उसे ‘सावित्री‘ व जहां चेतना dominant हो ‘गायत्री‘ कह दिया जाता है ।
तत्सवितुर्वरेण्यं – भगवान दत्तात्रेय जी के 24 गुरू को हम ज्ञानात्मक प्रकाश के सर्वत्र उपलब्ध रहने के अर्थों में ले सकते हैं (सार्वभौम – गायत्री वा इदं सर्वं) । हमारा दृष्टिकोण विवेक युक्त ग्रहणशक्ति से परिपूर्ण हो तो हम सभी से सीखते हुए अंतिम लक्ष्य को पा सकते हैं ।
स्वाध्याय = अध्ययन + चिंतन – मनन – मंथन + निदिध्यासन । जो पुस्तक पठन पाठन में प्रवीण नहीं हैं वो देख सुन कर (सत्संग से) ज्ञान अर्जित करते हैं । जीव हेतु मुक्ति/ मोक्ष – ईश्वर प्रदत्त जन्मसिद्ध अधिकार है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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