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Brahmvidyopnishad-3

Brahmvidyopnishad-3

ब्रह्मविद्योपनिषद् – 3 (मंत्र सं॰ 81-110)

PANCHKO.SH SADHNA –  Online Global Class –  26 Dec 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  ब्रह्मविद्योपनिषद् – 3 (श्लोक ८१-११०)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

भावार्थ वाचन: आ॰ किरण चावला जी (USA)

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

स्वयं व संसार का यथावत पूर्ण ज्ञान – विज्ञान । विज्ञानमय कोश प्रबुद्ध होने हेतु:-
1. सोऽहं साधना
2. आत्मानुभूति योग
3. स्वर संयम
4. ग्रन्थि-भेद

गुरूदेव की रचना – “मैं क्या हूं?” (Who am I ?)  गागर में सागर है । ब्रह्मोपनिषद् (मंत्र सं॰ ८१ – ११०) से बोधत्व उपरांत आत्मसाधक की आत्म-स्थिति को सुबोध बनाया गया है ।

बृहदारण्यक उपनिषद् – न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवत्य् आत्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवत्य् आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो । मैत्रेय्य् आत्मनो वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेनेद सर्वं विदितम् ॥ भावार्थ: सबके के प्रयोजन के लिए सब प्रिय नहीं होते, अपने ही प्रयोजन के लिए सब प्रिय होते हैं । अरी मैत्रेयी ! यह आत्मा ही दर्शनीय, श्रवणीय, मननीय और ध्यान किये जाने योग्य है । हे मैत्रेयी ! इस आत्मा के दर्शन, श्रवण, मनन एवं विज्ञान से इस सबका ज्ञान हो जाता है ।
रामचरितमानस – सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥ – सोऽहं साधना उच्चस्तरीय ध्यान साधना है । जिसकी निरंतरता हमें लक्ष्य तक ले जा सकती है ।

प्रारब्ध‘ की पहुंच शरीर (पंचकोश – आत्मा के 5 आवरण) तक है; आत्मा तक नहीं ।  गीताकार कहते हैं – नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।२३।।

शाश्वत सत्यएकत्व/ अद्वैत । शक्ति – एक, शक्ति धारायें – अनेक (२४ तत्त्व) @ एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति । अर्थात् , सत्य एक है: जिसे बुद्धिमान विभिन्न नामों से बुलाते हैं।

जिज्ञासा समाधान

अध्यात्म में ‘सविता’ शब्द का अर्थ तेजस्वी/ प्रकाशवान । परमात्मा की अनंत शक्तियों में तेजस्वी शक्तियां – सविता कही जाती हैं ।
सविता सर्वभूतानां सर्वभावश्चसूयते । स्रजनात्प्रेरणाच्चैव सविता तेन चोच्यते ।। – समस्त प्राणियों को उत्पन्न और सर्व भावों के उत्पादक हैं । उत्पन्न करने से और प्रेरक होने से सविता कही जाती हैं । @ तत्सवितुर्वरेण्यं । 

प्रतिप्रसवन में समर्पण, विलय – विसर्जन की प्रक्रिया द्वारा एकत्व/ अद्वैत ।

साक्षी चैतन्य भावेण कर्म बंधनकारी नहीं होते @ योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

Demonstrationसोऽहं साधना ध्यान प्रणाली । क्रियायोग उपरांत स्वाध्याय को प्राथमिकता दी जा सकती है । ब्रह्म मुहूर्त/ संध्याकाल में प्राण की सुषुम्ना में सहज स्थिति होने से स्वाध्याय व क्रियायोग आदि के प्रभाव में वृद्धि होती है ।

कर्तव्य-कर्म का त्याग नहीं किया जाता प्रत्युत् आसक्ति को त्याज्य करने का निर्देश है @ कर्मण्येवाधिकारस्ते …।

सोऽहम साधना के practical के रूप में आत्मीयता का प्रसार “वसुधैव कुटुंबकम्” @ प्रेम, सेवा, सहकारिता आदि रूपेण किया जा सकता है ।

अध्यात्म की अनिवार्य शर्त – अनासक्त प्रेम @ आत्मीयता ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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