Chakra Science
PANCHKOSH SADHNA – Gupt Navratri Sadhna – Online Global Class – 16 Jul 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
SUBJECT: CHAKRA SCIENCE
Broadcasting: आ॰ नितिन जी
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
‘तंत्र साधना‘ का सीधा संबंध ‘चेतना’ @ चित्त शक्ति से है। इसका उद्देश्य पंचकोश अनावरण और कुण्डलिनी जागरण उन्नयन है। विशुद्ध चित्त से peace & bliss लभ्य होते हैं। System को ही तंत्र कहते हैं। System for controlling and coordination.
कुण्डलिनी जागरण को प्राण के उर्ध्वगमन अर्थात् प्राण विद्युत (प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि, आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि) के जागरण से समझ सकते हैं। पंचकोशी साधना व कुण्डलिनी जागरण का समन्वय साधना को समग्र रूप प्रदान करते हैं। फलतः साधक का व्यक्तित्व चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी अर्थात् ‘उत्कृष्ट चिंतन आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार’ के रूप में परिलक्षित होते हैं।
सुषुम्ना संस्थान में अवस्थित 6 चक्र:
1. मूलाधार चक्र – तत्त्व पृथ्वी। रंग – पीला। तन्मात्रा – गंध। ध्वनि – लं। भूलोक। स्थान मल मूत्रों के छिद्र मध्य। प्रतीकात्मक जीव – कच्छप (अलंकारिक)। आध्यात्मिक उपलब्धि – शम (शान्ति – उद्वेगों का शमन)।
2. स्वाधिष्ठान चक्र – तत्त्व जल। रंग – सफेद। तन्मात्रा – रस। ध्वनि – वं। भुवः लोक। स्थान पेडू के सीध। प्रतीकात्मक जीव – मत्स्य (अलंकारिक)। आध्यात्मिक उपलब्धि – दम (इन्द्रिय निग्रह)।
3. मणिपुर चक्र – तत्त्व अग्नि। रंग – लाल। तन्मात्रा – रूप। ध्वनि – रं। स्वः लोक। स्थान नाभि के सीध। आध्यात्मिक उपलब्धि – उपरति (विषयों से निवृत्ति)।
4. अनाहत चक्र – तत्त्व वायु। रंग – धूम्र। तन्मात्रा – स्पर्श। ध्वनि – यं। महः लोक। स्थान हृदय के सीध। प्रतीकात्मक जीव – हिरण (अलंकारिक)। आध्यात्मिक उपलब्धि – तितीक्षा (धैर्यपूर्वक प्रतिकूलताओं को सहन करना)।
5. विशुद्धि चक्र – तत्त्व आकाश। रंग – नीला। तन्मात्रा – शब्द। ध्वनि – हं। जनः लोक। स्थान कंठ मूल के सीध। प्रतीकात्मक जीव – हाथी (अलंकारिक)। आध्यात्मिक उपलब्धि – श्रद्धा (सन्मार्ग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता @ निष्ठा – विश्वास)।
6. आज्ञा चक्र – तपः लोक। ध्वनि – ॐ। रंग – श्वेत। स्थान – भृकुटियों के मध्य। आध्यात्मिक उपलब्धि – समाधान (वासना, तृष्णा व अहंता – शांत)।
सहस्रार चक्र – सत्य लोक। आकृति सहस्र दल कमल। रंग – स्वर्णिम। मस्तिष्क मध्य Reticular activating system से इसकी संगति बैठती है। आध्यात्मिक उपलब्धि – अखंडानंद।
आध्यात्मिक वैज्ञानिक विश्लेषण PPT
सहस्रार चक्र की साधना से चिन्तन को उत्कृष्ट और मूलाधार चक्र से आचरण को आदर्श बनाया जाता है। चक्र वेधन से साधक का चिंतन – उत्कृष्ट, चरित्र – आदर्श/ प्रखर और परिणीति शालीन व्यवहार के रूप में देखी जा सकती हैं। चक्रों के अवरोध – वासना, तृष्णा, अहंता व उद्विग्नता तो अनुदान – peace & bliss (शम, दम, उपरति, तितीक्षा, श्रद्धा, समाधान व अखंडानंद)।
जिज्ञासा समाधान
विचारों को electric magnetic radiations के रूप में समझा जा सकता है। सुक्ष्मता में शक्ति बढ़ती जाती हैं। वाणी – बैखरी से प्रभावी मध्यमा, मध्यमा से प्रभावी परा एवं परा से प्रभावी पश्यन्ती हैं। तीन अन्तःकरण रूपी गुफा में छिपी रहती है चौथी बैखरी ही बोलने में प्रयुक्त होती है।
‘वासना, तृष्णा व अहंता‘ तीन गांठें फोड़ने (ग्रंथि भेदन) के पश्चात ही उद्विग्नता शांत (भावातीत – भाव समाधि) लभ्य होते हैं। ससीम (संकीर्ण स्वार्थपरता – आसक्ति) से असीम (परमार्थ @ अनासक्त @ निःस्वार्थ प्रेम @ आत्मीय) की यात्रा है। व्यष्टि भाव को समष्टि भाव में समर्पण – विलय – विसर्जन से बात बनती है।
‘चित्त‘ को मन व बुद्धि के मिश्रण के रूप में समझ सकते हैं। इसे आदत, अभ्यास, स्वभाव व संस्कार आदि के रूप में भी समझा जा सकता है। मन के आसक्ति के अनुरूप बुद्धि के निर्णय क्षमता से गुजरकर जो कार्य बारंबार किये जाते हैं वो हमारे आचरण @ व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं। गायत्री साधना से चित्त परिष्कृत हो जाता है। अंतरंग परिष्कृत व बहिरंग सुव्यवस्थित – अध्यात्म है। समस्याएं अनेक, समाधान एक – अध्यात्म।
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन। यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूँ स्वाम्॥1-II-23॥ अर्थात् यह आत्मा न प्रवचन से, न बुद्धि से और न बहुत सुनने से ही प्राप्त हो सकता है । जिसको यह स्वीकार कर लेता है उसके द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है । उसके प्रति वह आत्मा अपने स्वरुप को प्रकट कर देता है ॥२३॥
जप – ध्यान @ तप – योग आदि की पूर्णता ‘सायुज्य’ (श्रद्धा – निष्ठा, समर्पण – विलय विसर्जन) में है। श्रद्धावान् लभते ज्ञानं। श्रद्धया सत्य माप्यते।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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