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Chetan Achetan and Superchetan Man

Chetan Achetan and Superchetan Man

चेतन, अचेतन व सुपरचेतन मन

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class –  19 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: चेतन, अचेतन व सुपरचेतन मन

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ गोकुल मुन्द्रा जी (जयपुर, राजस्थान)

मनको विचार व भावना से समझा जा सकता है । वशवर्ती, शांत – संतुलित व प्रसन्न @ शुद्ध मन – मित्र तो अनियंत्रित, अशांत – असंतुलित व अप्रसन्न @ अशुद्ध मन – शत्रु; अर्थात् मनुष्य ही स्वयं का मित्र व शत्रु होता है ।
मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं प्रत्युत् स्वयं के भाग्य का निर्माता, नियंत्रणकर्ता व स्वामी है ।

चेतन मन और उसका सुनियोजन – http://literature.awgp.org/book/chetan_Achetan_Super_Chetan/v1.1

चेतन मन वह है, जिसे हम जानते हैं। इसके आधार पर हम अपने सारे कार्य करते हैं। दृश्य जगत का व्यवहार चेतन मन  के सहारे चलता है । यह हमारे मन की जाग्रत अवस्था है। विचारों के स्तर पर जितने भी द्वंद्व, निर्णय या संदेह पैदा होते हैं, वे चेतन मन की ही देन हैं। यही मन सोचता – विचारता है।

चेतन मन संचालित होता है अचेतन क्षमता (अचेतन + सुपरचेतन मन) से ।

शरीर की निर्वाह व्यवस्था को यथा क्रम सुसंचालित बनाये रहने का काम मस्तिष्क के पिछले भाग में अवस्थित अचेतन क्षमता चलाती रहती है, विशिष्ट शक्तियों से भरा पूरा है। सामान्यतया वह कुम्भकरण जैसी गहन निद्रा में पड़ा रहता है। यदि उसे जागृत होने का अवसर मिल जाये तो व्यक्तित्व को देवोपम बनाने से लेकर चमत्कारी सिद्ध पुरुषों जैसे अलौकिक स्तर के ज्ञान और कर्म का परिचय दे सकता है। विज्ञानमय कोश की जागरण साधना इसी दिव्य चेतना का समुन्नत बनाने की प्रक्रिया का नाम है।

मानवीय व्यक्तित्व के तीन पक्ष ‘भावना, विचारणा व व्यवहार’ के आधार पर मन को 3 तीन परतों में विभक्त किया जा सकता है :
1. चेतन मन (Conscious Mind) –  भौतिक जानकारी संग्रह करने वाले चेतन  मस्तिष्क । यह  स्थूल शरीर को प्रभावित करता है और व्यवहार (क्रिया तंत्र) रूपेण परिलक्षित होता है ।
2. अचेतन मन (Sub Conscious Mind) – ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम को प्रभावित करने वाले अचेतन मन । यह सुक्ष्म शरीर को प्रभावित करता है और विचारणा (विचार तंत्र) के रूप में परिलक्षित होता है ।
3.‌ सुपरचेतन मन (Super Consciousness Mind) – अतीन्द्रिय मस्तिष्क । यह कारण शरीर को प्रभावित करता है और भावना प्रधान है । जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ।

तीन शरीर (स्थूल, सुक्ष्म व कारण) की साधना से चेतन, अचेतन व सुपरचेतन मन  तक पहुंच बनाई जा सकती है ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

मनुष्यों में चेतना का केन्द्र ‘मन’ माना गया है । उसके वश में होने से महान् अन्तः शक्ति पैदा होती है ।
ध्यान, त्राटक, तन्मात्रा व जप की साधना से मनोमय कोश अत्यंत उज्जवल हो जाता है ।

चेतन, अचेतन व‌ सुपर चेतन मन, व्यक्तित्व में ‘चिंतन, चरित्र व व्यवहार’ रूपेण परिलक्षित होते हैं ।
1. ज्ञानयोग से चिंतन – उत्कृष्ट
2. कर्मयोग से चरित्र – आदर्श
3. भक्तियोग से व्यवहार – शालीन
गायत्री साधक (त्रिपदा – ज्ञान, कर्म व भक्ति) चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी होते हैं । स्थूल शरीर – कर्मयोग, सुक्ष्म शरीर – ज्ञानयोग व कारण शरीर – भक्तियोग से सधता है ।

तन्मात्रा साधना से संसार की परिवर्तनशीलता को समझा जा सकता है और संसार में रहते हुए अनासक्त भाव से जीवन लक्ष्य का संधान कर सकते हैं ।

बालक को अबोध कहने का अर्थ उनके conscious mind अर्थात् दृश्य जगत में व्यवहार को लेकर है । उनका Sub conscious mind & super conscious mind – active रहता है । गर्भावस्था में ही ज्ञान ग्रहण करने के उदाहरणों से समझा जा सकता है । बालक के भाव पक्ष को छूकर उन्हें प्रभावित किया जा सकता है ।

निःस्वार्थ प्रेम (unconditional love) – विपरीत परिस्थितियों (मन के विपरीत/ प्रतिकूल – शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) में मन को शांत रखता है ।
वासना (लोभ) – शांत + तृष्णा (मोह) – शांत + अहंता (अहंकार) – शांत = उद्विग्नता – शांत ।

व्यवहार जगत की क्रिया की बारंबार पुनरावृत्ति धीरे धीरे आदत, स्वभाव व संस्कार में परिणत होती है ।
तन्मात्रा साधना से क्रिया में आसक्ति नहीं होती अर्थात् कर्म – अनासक्त होते हैं । फलस्वरूप क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं होती है । @ योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ।।2.48।।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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