Chetan Achetan and Superchetan Man – 1
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 30 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: चेतन, अचेतन एवं सुपरचेतन मन – 1 (चेतन एवं अचेतन मन का परिचय एवं परिष्कार)
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच:
1. आ॰ अंकुर सक्सैना जी (Engineer, गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
2. आ॰ अमन कुमार जी (गुरूग्राम, हरियाणा)
‘मन‘ की इच्छा के अनुरूप ‘इन्द्रियां‘ (पंच ज्ञानेन्द्रियां + पंच कर्मेंद्रियां) कार्यरत हो जाती हैं । अर्थात् जिसमें हमारा मन लगता है हम उस कार्य के प्रति उन्मुख हो जाते हैं । इच्छा/ चाह जब ‘आसक्ति’ बन जाती है तो (अनुकूलता में) ‘राग‘ व (प्रतिकूलता में) ‘द्वेष‘ की मनःस्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
अंतःकरण चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/October/v2.7
चेतन/ जाग्रत मन (Conscious Mind) – ‘इच्छा, ज्ञान व क्रिया’ का धारण तथा उनके सहारे आवश्यक व्यवस्थाएं बनाते रहना ।
अचेतन मन (Subconscious mind): कार्य – आकुंचन-प्रकुँचन, श्वास, प्रश्वास, निमेष-उन्मेष, पाचन-विसर्जन, रक्ताभिषरण, क्षुधा-पिपासा, निद्रा-जागृति जैसी व्यवस्था का संचालक । हमारी आदतें व आस्थाएं भी यहीं जड़े जमाये बैठी रहती हैं और अविज्ञात रूप से जीवन-क्रम का परोक्ष संचालन करती रहती है ।
अचेतन का परिष्कार ही अध्यात्म भाषा में आत्म-निर्माण, आत्म-साक्षात्कार, आत्म-बोध, आत्मोद्धार आदि नामों से पुकारा जाता है ।
विचार भावनाओं को उत्कृष्ट बनाने हेतु ‘मनोमयकोश साधना’ के 4 साधन हैं:-
1. ध्यान
2. जप
3. त्राटक
4. तन्मात्रा साधना ।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत – http://literature.awgp.org/book/man_ke_hare_har_hai_man_ke_jeete_jeet/v1.1
चेतन अचेतन व सुपरचेतन मन – http://literature.awgp.org/book/chetan_Achetan_Super_Chetan/v1.1
मनोभूमि को उर्वर बनाने हेतु आत्मसाधक को कुशल कृषक की भांति अवांछनीयता (खर पतवार) आदि को हटाना पड़ता है । स्वाध्याय (अध्ययन/ जप + चिंतन मनन मंथन + निदिध्यासन) सत्संग आदि के पैने दृढ़ संकल्प शक्ति से उसकी निड़ाई गुड़ाई (ploughing) करनी होती है । विधेयात्मक चिंतन का बीज बोना होता है (sowing) । श्रद्धा/ ईश्वर प्राणिधान से उसकी सिंचाई (irrigation) करती रहनी होती है । क्रियायोग/ सत्कर्म अच्छे उर्वरक (manure) की भूमिका में होते हैं । तन्मात्रा साधना से आसक्ति से निवृत्ति होती है (फंगस पेस्ट कंट्रोल) । जब ‘आत्मकल्याण’ की फसल लहलहा उठती है तो उसका नियोजन ‘लोककल्याण’ में किया जाता है (harvesting) । @ “आत्मपरिष्कार = आत्मसमीक्षा + आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मविकास ।”
अंतःकरण – मन, बुद्धि चित्त व अहंकार का सम्मिलित रूप है । इनकी परिष्कृत अवस्था इनकी साम्यावस्था/ एकत्व/ अद्वैत है । जिस हेतु हम सभी प्रयासरत हैं । जिसके लिए हमें ‘उपासना, साधना व अराधना‘ की त्रिवेणी संगम में डुबकी लगानी होती है अर्थात् जीना होता है । ‘वर्णाश्रम‘ (age & faculty) बाधक नहीं हैं वरन् ‘आसक्ति‘ (वासना + तृष्णा + अहंता) बाधक होती हैं ।
गुरू कृपा (आत्मप्रकाश/ अखंड ज्योति) में सारे भ्रम भेद भाव का नाश होता है और अपने मूल स्वरूप का बोधत्व होता है (आत्मस्थित) ।
अचेतन का परिष्कार ही परम लक्ष्य – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1976/November/v2.8 ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ अंकुर जी व आ॰ अमन जी को विषय वस्तु पर अत्यंत सार्थक प्रकाश डालने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।
‘ध्यान‘ की गहराइयों में जाकर अचेतन मन की सफाई की जाती है । अतः अचेतन मन के परिष्करण हेतु ध्यानात्मक विधा (meditational practice) को प्राथमिकता दी जाती है । साथ ही साथ अपने जीवन में धर्म धारणा (धर्म के 10 लक्षणों – “सत्य + विवेक, संयम + कर्तव्य, अनुशासन + व्रत धारण, सज्जनता + पराक्रम, सहकार + परमार्थ) @ पंचकोश साधना का practical किया जाए ।
अंतःकरण चतुष्टय – मन, बुद्धि चित्त व अहंकार का सम्मिलित स्वरूप । यहां चेतना की वह स्थिति ‘मन‘ है जो विचार/ कल्पना/ इच्छा करता है एवं ‘चित्त‘ जहां आदतें, अनुभव, स्वभाव, जन्म जन्मान्तरों के संचित व्यक्तित्व आदि store रहती हैं । ‘मन’ एवं ‘बुद्धि’ के सम्मिलित स्वरूप को ‘चित्त’ समझ सकते हैं । चेतना एक है, कार्यप्रणाली को स्थिति अनुरूप समझने समझाने के लिए पारिभाषिक शब्द दिये गये हैं ।
सुपर चेतन मन – समष्टि मन ।
मानसिक जप – मानसिक से तात्पर्य है चेतनात्मक आयाम ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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