Cosmic Body and Atmanubhuti Yoga
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PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 21 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच:-
1. आ॰ अनिरुद्ध चौहान जी (बैंगलोर, कर्नाटक)
2. आ॰ गोकुल मुन्द्रा जी (कलकत्ता, प॰ बंगाल)
विषय: विज्ञानमयकोश व आत्मानुभूति योग
‘जीव‘ (आत्मा) 5 आवरणों को धारण करता है, वे ही कोश कहलाते हैं । गायत्री के 5 मुख – पंचकोश
1. अन्नमयकोश (Physicalbody)
2. प्राणमयकोश (Etheric body)
3. मनोमयकोश (Astral body)
4. विज्ञानमयकोश (Cosmic body)
5. आनंदमयकोश (Causal body)
जीव चेतना (जीवात्मा) की पंच आवरण में स्थिति :-
1. अन्नमयकोश में शरीर संबंधी भेद (स्त्री – पुरूष, मनुष्य – पशु, मोटा – पतला, पहलवान- कमजोर, काला – गोरा आदि) को पहचानता है ।
2. प्राणमयकोश में गुणों (शिल्पी, संगीतकार, वैज्ञानिक, मूर्ख, कायर, शुरवीर, लेखक, वक्ता, धनी, गरीब आदि) के आधार पर अपनत्व का बोध होता है ।
3. मनोमयकोश में मन की मान्यता स्वभाव के आधार पर (लोभी, दंभी, चोर, उदार, विषयी, संयमी, नास्तिक, आस्तिक, स्वार्थी, परमार्थी, दयालु, निष्ठुर, आदि) होती है ।
4. विज्ञानमयकोश में “मैं आत्मा हूँ ” ।
5. आनंदमयकोश में सहज समाधि (मिलन – विलयन – विसर्जन @ योग @ एकत्व @ अद्वैत) ।
संसार का और स्वयं का ठीक ठीक और पूर्ण ज्ञान होने को ही विज्ञानवेत्ताओं ने विज्ञान (विशेष ज्ञान) कहा है ।
स्वयं के संबंध में तात्त्विक मान्यता स्थिर करना और उसकी पूर्ण अनुभूति, self realization – यही विज्ञान का उद्देश्य है ।
विज्ञान की मनोभूमि में हम यह अनुभव करते हैं कि “मैं शरीर नहीं, वस्तुतः आत्मा ही हूँ । ” – यह मनोभूमि विज्ञानमयकोश है ।
आत्मा का चौथा आवरण, गायत्री का चौथा मुख, आत्मोन्नति की चतुर्थ भूमिका, विज्ञानमयकोश दिव्य/ उज्जवल/ प्रबुद्ध/ अनावरण/ बेधने हेतु 4 क्रियायोग :-
1. सोऽहं साधना
2. आत्मानुभूति योग
3. स्वर संयम
4. ग्रन्थि भेदन
आत्मानुभूति योग के चरण:-
शिथिलासन, स्थिर शरीर – शांत चित्त (वासना – शांत, तृष्णा – शांत, अहंता – शांत, उद्विग्नता – शांत):
– शरीर भाव से उपर/ परे/ सुक्ष्म में जाना (अनावरण/ बेधन/ उज्जवल)
– गुणों से उपर/ परे/ सुक्ष्म में जाना (अनावरण/ बेधन/ उज्जवल)
– स्वभाव से उपर/ परे/ सुक्ष्म में जाना (अनावरण/ बेधन/ उज्जवल)
भाव समाधि:
– अजर, अमर, शुद्ध, बुद्ध, चेतन, पवित्र ईश्वरीय अंश आत्मा हूँ (सूर्य)
– सत् चित्त आनन्द स्वरूप आत्मा हूँ
जब यह भावना आत्मसात (चरित्र चिंतन व व्यवहार) हो जाए तो जाग्रत समाधि/ जीवनमुक्त अवस्था ।
जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ अनिरुद्ध चौहान जी, आ॰ गोकुल मुन्द्रा जी व सभी पार्टिसिपेंट्स को नमन व आभार ।
विज्ञानमयकोश अनावरण में तात्त्विक दृष्टि (ईश्वर का साकार स्वरूप – संसार @ तत्त्वबोध) विकसित की जाए एवं निखिल आकाश में स्वयं को सूर्य की तरह प्रकाशमान अनुभव करें (आत्मबोध)।
अमावस्या – शांत, मौनी अमावस्या – शिथलीकरण का अभ्यास …
शिथलीकरण – वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता – शांत, मन – शांत, चित्त – शांत, भाव समाधि) ।
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ॥ – चित्त अर्थात् अन्त:करण की वृत्तियों का निरोध/ संयम, योग है । “संयम = ध्यान + धारणा + समाधि ।”
शरीर का जन्म – प्रसवन तो मरण – प्रतिप्रसवन @ हर सुबह नया जन्म व हर रात नया मौत – आत्मबोध व तत्त्वबोध ।
आर्त अर्थी चिंतित भोगी का प्राण निम्नगामी …
ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी का प्राण उर्ध्वगामी …
शरीर छोड़ने के उपरांत अशरीरी योनियां …. ब्रजत ब्रह्मलोकं तक की यात्रा है ।
आत्मीयता/ प्रेम का व्यवहारिक अर्थ है स्वयं व संसार को due respect @ संतुलन @ संयम । प्यार = दुलार + फटकार; सत्प्रवृत्ति संवर्धन हेतु दुलार तो दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन हेतु – फटकार @ युग्म/ जोड़ा/ योग है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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