Curiosity Solution – 02 Jan 2024
मुक्तिकोपनिषद् (दुर्लभ) में … मन ही सकंल्पमय है, संकल्प का मनन करके इस मनस तत्व को शुष्क कर डालो, जिससे कि यह संसार रूपी बाधक भी रसहीन होकर शुष्क हो जाए, अपने मन के निग्रह करने का एक ही उपाय है कि यह निश्चित करना कि मन का अभ्युदय ही उसका पतन है, का क्या अर्थ है?
- निरालम्बोपनिषद् – संकल्प ही बंधन।
- संकल्प ही मन है, मन दिखता नही, Brain – मन नही है।
- Brain, मन का एक उपकरण मात्र है जिसे मन माध्यम बनाता है।
- मन आकाश की तरह सर्वव्यापी व आकाश से भी सूक्ष्म तत्व है, आकाश का आकाशत्व मन के कारण ही है।
- प्राणायाम इसके Toxines को साफ करने के लिए किया जाता है।
- विचार ने जो कंपन निकाला, वही आकाश बना देगा तो मन ही आकाश की उत्पत्ति का कारण हैं
- अभी मन यह भूल गया है कि वह सब हमारे भीतर है।
- मन तब तक भागता रहेगा जब तक उसके सही रहस्य (यर्थात ज्ञान) को न जान ले।
- विज्ञानमय कोश में वह स्थिति आएगी तथा वही मनोमय कोश को शान्त करेगा।
- ठंडा = अपान
- गर्म = प्राण
- इन्ही दोनों का Balance प्रत्येक को करना है।
- तरंगें ही घनीभूत होकर वस्तु बन गई।
- मन का अभ्युदय = मन का जन्म लेना।
- अभ्युदय से मन का पतन होता है।
- विज्ञानमय कोश में मनोमय का पतन होगा, अगर मन का अंत / शांत करना है तो विज्ञानमय कोश में मन जाए।
- आत्म अहम् = शिवोहम = सोऽहं।
- जीवो अहम् = आत्मा का पतन।
- केवल मान्यताओं का अंतर है।
व्रजसूचिकोपनिषद् में बाह्मण न जात है , न धर्म है, न वर्ण है, न जीव है तो है क्या?
- यहा बाह्मण शब्द एक विभूति के रूप में है।
- विभूति -> आत्मिकी के रूप में यहा आया है।
- विभूति बह्यतेज है।
- प्रत्येक जीवो के हृदय में वही एक ईश्वर है।
- जाति विशेष को बाह्मण कहना सांस्कृतिक पतन है
- जो ज्ञानी हो, विभूति हो तथा अपनी तपस्या से प्राप्त शक्तियो का सदुपयोग करे , वह बाह्मण है।
- जन्म से ही यदि कोई बाह्मण होता तो जनेऊ संस्कार का क्या महत्व है।
- गायंत्री महाविज्ञान में आया है कि जन्म से प्रत्येक शुद्र होता है।
- श्रृंगी ऋषि ST थे, जाति बाह्मण नहीं, प्रत्येक जातियों से ऋषि मुनि निकले थे।
- सभी के भीतर एक ही आत्म तत्व है, जाति किसी चमड़ की/ आत्मा की नही होती जैसे इंजीनियर जाति, चिकित्सक जाति , वकील जाति ..।
निर्वाणोपनिषद् में …परीक्षा ही उनका आचरण है, कुण्डलिनी ही उनका बंध है का क्या अर्थ है?
- निर्वाण का अर्थ अतिंम कक्षा है।
- रूप, रस, गंध, शब्द, स्पर्श के वाण अगर प्रभावित न करे तो निर्वाण पा लिए।
- अलिंगी को संन्यासी कहा गया है।
- आत्मा की कामना करता है।
- कुण्डलिनी ही बंद -> जागरण की क्रिया को बंध कहा जाता है।
- सन्यासी ये सब मन से करेगा।
- हर क्षण नया संसार बन रहा है , ज्ञान का कभी कोई अंत नहीं होता।
- शरीर जब तक है तब तक योग (जोड़ने की प्रक्रिया) करना पड़ेगा।
क्या 84 लाख योनियों में गुजरना आत्मिक परिशोधन के लिए अनिवार्य है कृपया स्पष्ट करे?
- आत्मिक के लिए ना सही परन्तु कामना करोगे तो अवश्य नई योनि शरीर मिलेगा।
- प्रत्येक अपना भगवान अपने शरीर के अनुरूप बनाता है, जैसे मेढ़क, बडे मेढ़क को अपने भगवान के रूप में देखता है।
- शरीर कामनाओं की पूर्ति के लिए मिले है।
- सब शरीर सुविधा भर के लिए है, आत्मज्ञान ही सर्वोपरि है।
ध्यान योग के द्वारा समस्त नाडियों का छेदन किया जा सकता है परन्तु सुषुम्ना का छेदन नही किया जा सकता का क्या अर्थ है?
- सुषुम्ना कोई वस्तु नही है।
- सुषुम्ना चिदाकाश है , आकाश को कौन छेदेगा।
- सुषुम्ना कोई धागा नही।
- ईड़ा पिंगला का छेदन कर सकते है, सुषुम्ना Neutral है उसकी व्याख्या भी नही हो सकती।
कोशिताकोपनिषद् में आया है कि वह ऐसे श्रेष्ठ कृत्य उन्हीं से करवाता है, जिसे वह उर्ध्व की तरफ ले जाना चाहता है और जिसे वह इन श्रेष्ठ लोगों की अपेक्षा नीचे ले जाना चाहता है , उससे वह अशुभ कार्य करवाता है तो वया हम द्रष्टा बनकर देखते रहें?
- अशुभ इसलिए करवाता है क्योकि उस जीव की स्वंय की इच्छा होती है, जिसकी चोरी की इच्छा हो तो वह वैसी परिस्थिति उसके सामने बना देता है।
- जिसकी जैसी भाव है या कामना हो उसे उस दिशा में प्रेरित करता है।
- ईश्वर हर अवस्था में केवल कल्याण ही करते है, ईश्वर बहुत दयालु है जिसकी जैसी कामना हो, उसको उस दिशा में ले जाता है।
- आत्मा को इससे कुछ लेना देना नहीं वह पूर्णतः निर्लिप्त है।
- ईश्वर दयालु है, जीवों के लिए उनके अनुरूप संसार बना दिया।
- कामनाएं ही पदार्थ जगत को उत्पन्न करती है।
ईड़ा व पिंगला भी सूक्ष्म नाड़ियां है तो उनका छेदन किस प्रकार संभव है?
- उनके स्वभाव के विपरीत करने से उनका छेदन संभव है (गुण का गुण में/से परिवर्तन)।
- सुष्मना Neutral है इसलिए उसका छेदन संभव नहीं।
84 लाख योनियों में जो वृत्तियाँ होती है, उन्हे ज्ञान के माध्यम से मिटाना भी क्या 84 लाख योनियों में जाने का फलस्वरूप हो सकता है?
- कामनाएं ही योनियों में ले जाती है।
- कामनाएं ही बंधन का कारण है।
- परमात्मा के साथ जुड़ जाएगे तो प्रत्येक योनियों में घूम सकेंगे।
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