Dakshin Margi Tantra Sadhna
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Aatmanusandhan – Online Global Class – 26 June 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: दक्षिणमार्गी तंत्र साधना श्रेयस्कर
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
सार्वभौम लक्ष्य (universal goal) – अथाह शांति एवं आनंद (infinite peace & bliss) ।
‘श्रेय’ और ‘प्रेय’ मार्ग में आत्मसाधक (विचारशील/ धीर व्यक्तित्व) विवेक युक्त मनन चिंतन मंथन करता है । ज्ञानी व्यक्तित्व प्रेय की अपेक्षा श्रेय का ही वरण करता है, किन्तु मन्दबुद्धि व्यक्तित्व अपने श्रेय की प्राप्ति एवं उसको बनाये रखने (योग- क्षेम) की अपेक्षा प्रेय का चयन करता है।
आत्म-भौतिकी (वैज्ञानिक अध्यात्मवाद) से ‘भारत’ (ज्ञान/ चेतना पक्ष में) विश्वगुरू एवं (भौतिक क्षेत्र में) सोने की चीड़ियाँ (समृद्ध) थी ।
दक्षिणमार्गी तंत्र साधना (श्रेय – निरापद), वाममार्गी तंत्र साधना (प्रेय) से श्रेयस्कर हैं । अतः बुद्धिमान जन दक्षिणमार्गी तंत्र साधना का वरण करते हैं ।
दक्षिणमार्गी श्रेयस्कर तंत्र साधना (गायत्री पंचकोशी साधना + कुण्डलिनी जागरण) से आत्मसाधक वह आत्मशक्ति प्राप्त होती है साधक ‘अज्ञान, अभाव व अशक्ति’ (त्रिविध ताप/ दुःख) दूर/ मुक्त/ शांत होते हैं ।
गायत्री की महिमा – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/July/v2.5
‘तंत्र’ अर्थात् एक system और हम सभी इस बात को जानते हैं समझते हैं और व्यवहार में लाते हैं i.e. हमें systematic way में कार्य करना चाहिए । फिर तंत्र मार्ग (systematic way) से डरने की क्या आवश्यकता है!? उपलब्धियों का सदुपयोग (good use) किया जाए ।
जिज्ञासा समाधान
वाममार्गी (भौतिकी) – शरीर प्रधान (मैं शरीर हूँ – आत्मा गौण) और दक्षिणमार्गी (आत्म-भौतिकी) – आत्मिकता प्रधान (मैं आत्मा हूँ शरीर मेरा वाहन है – हम शरीर को आत्मा का मंदिर मानकर आरोग्य द्वारा उसकी रक्षा करेंगे) ।
गायत्री की दो उच्चस्तरीय साधनाएं – पंचकोश साधना व कुण्डलिनी जागरण । युग संक्रमण काल में युग प्रवाह को मोड़ने हेतु विशेष बल/ ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिस हेतु कुण्डलिनी जागरण (व्यष्टि कुण्डलिनी का समष्टि कुण्डलिनी से योग) की आवश्यकता होती है ।
‘अंधकार‘ का अस्तित्व ‘प्रकाश’ के अभाव में है । अतः प्रकाश (आत्मज्योति/ अखंड ज्योति) से अंधकार (अज्ञान/ अशक्ति/ अभाव) को दूर करें ।
“यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे ।” शरीर को भगवान का मंदिर मानकर आत्मसंयम व नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे ।
(मैत्रेय्युपनिषद्) देहो देवालयः प्रोक्तः स जीवः केवल:शिवः । त्यजेदज्ञान निर्माल्यं सोऽहं-भावेन पूजयेत् ॥ भावार्थ: शरीर देवालय है तथा उसमें रहने वाला जीव ही केवल शिव (परमात्मा) है। अतः अज्ञान रूप निर्माल्य (पुरानी/ बासी माला की तरह से) छोड़ देना चाहिए एवं सोऽहं भावना से उसकी पूजा करनी चाहिए ॥
‘साधना और उसकी सिद्धि‘ – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1962/October/v2.6
संसार रूपी क्रीड़ांगन में टीम मैच खेलती है (देवासुर संग्राम) । खेल से ही गति (संसरण) है परिवर्तनशील है @ सृजन, पोषण व संहार (परिवर्तन) का क्रम है ।
दक्षिणमार्गी तंत्र साधना के पंच मकारों में मद्य का अर्थ – सहस्रार का रस है ।
सब ईश्वर के हैं और ईश्वर सबके हैं @ सर्व खल्विदं ब्रह्म ।
‘तंत्र’ का संबंध अपरा प्रकृति से है । सावित्री साधना आत्म-भौतिकी से संबंधित है । गायत्री विशुद्ध आत्मिकी परक (चेतना) है ।
“वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति ।” यह ठीक उसी प्रकार है जैसे surgeon रोग दुःख को दूर भगाने के लिए surgery का सहारा लेते हैं । उद्देश्य – जीवन (peace & bliss) को कायम रखना है ।
पंचकोश के पंचाग्नि/ प्राण/ विद्युत – प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि, आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि को प्रज्वलित करने हेतु 19 पंचकोशी क्रियायोग हैं । जिसके नियमित, सहज, सजग व रूचिपूर्ण अभ्यास से आरोग्य की रक्षा की जा सकती है ।
‘कुकर्मी‘ का विपत्ति में कोई मित्र नहीं होता है । हमारा जीवन स्वार्थ के लिए नहीं वरन् परमार्थ के लिए होगा ।
IQ + EQ = SQ. (IQ – intelligent quotient, EQ – emotional quotient & SQ – spritual quotient).
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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