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Devi Upanishad – 1

Devi Upanishad – 1

PANCHKOSH SADHNA – Gupt Navratri Sadhna – Online Global Class – 12 Jul 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

SUBJECT:  DEVI UPANISHAD – 1

Broadcasting: आ॰ नितिन जी

भावार्थ वाचनआ॰ किरण चावला जी (USA)

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

सविता सर्वभूतानां सर्व भावश्च सूयते।  स्रजनात्प्रेरणाच्चैव सविता तेनचोच्यते।। भावार्थ: समस्त प्राणियों को उत्पन्न करने वाला है और सर्व भावों का उत्पादक है। उत्पन्न करने  से तथा प्रेरक होने से सविता नाम कहा गया है।
 
समस्त देवगण देवी के समक्ष उपस्थित होकर प्रार्थना करते हुए बोले- ‘हे महादेवि ! आप कौन हैं? कृपा करके बताने का अनुग्रह करें।’ तदनन्तर उन (देवी) ने उत्तर दिया- ‘हे देवों ! मैं ब्रह्म स्वरूपा हूँ। मेरे द्वारा ही यह प्रकृति-पुरुषात्मक विश्व प्रादुर्भूत हुआ है। यह मुझसे शून्य तथा  अशून्य है। मैं ही आनन्दस्वरूपा एवं आनन्दरहिता हूँ। मैं विज्ञानमयी एवं विज्ञानविहीना हूँ। निश्चय ही मैं जानने योग्य ब्रह्म एवं ब्रह्म से भी परे हूँ। ऐसा ही अथर्ववेद का यह मंत्र है’॥१-२॥

मैं ही पञ्चीकृत और अपञ्चीकृत महाभूत भी हूँ। दृष्टिगोचर होने वाला सम्पूर्ण विश्व भी मैं ही हूँ। वेद एवं अवेद  भी मैं हूँ। विद्या और अविद्या भी मैं ही हूँ। अजा और अनजा भी मैं ही हूँ। ऊर्ध्व एवं अधः और अगल-बगल भी मैं ही हूँ। मैं रुद्रों एवं वसुओं के रूप में सर्वत्र सञ्चरणशील हूँ। मैं आदित्यों एवं विश्वेदेवों के रूप में सर्वत्र विचरण किया करती हूँ। मैं ही मित्र तथा वरुण का, इन्द्र एवं अग्नि का तथा दोनों अश्विनीकुमारों का सदैव पालन – पोषण किया करती हूँ। मैं ही सोम, पूषा, त्वष्टा एवं भग को भी धारण करती हूँ। मैं ही त्रिलोकी को आक्रान्त करने के लक्ष्य-प्राप्ति हेतु विस्तीर्ण पादक्षेप करने वाले भगवान् विष्णु, ब्रह्मदेव एवं प्रजापति को भी धारण करती हूँ। मैं ही देवताओं को हवि पहुँचाने तथा सावधानी पूर्वक सोमाभिषव करने वाले यजमान के निमित्त हविर्द्रव्यों से सम्पन्न धन को धारण करती हूँ। मैं ही सम्पूर्ण विश्व की अधीश्वरी, उपासकों के लिए धन-प्रदान करने वाली, ज्ञानवती और यजन करने योग्य देवों में प्रमुख हूँ। मैं ही इस विश्व के पितास्वरूप सर्वाधिष्ठानरूप परमात्मा को प्रकट करती हूँ॥३-६॥

देव्युपनिषद् सभी प्राणियों के हृदय कमल और अप्तत्त्व में मेरा निवास स्थान निहित है। जो मनुष्य ऐसा जानता है, वह देवी पद  को प्राप्त करता है। इसके पश्चात् देवों ने पुनः निवेदन किया-हे महादेवि ! आपको नमस्कार है। महान् प्रख्यात पुरुषों को भी स्वकर्तव्य पथ पर आरूढ़ करने वाली कल्याणमयी महादेवी को सादर नमन-वन्दन है। प्रकृति-स्वरूपा एवं भद्रा अर्थात् कल्याणमयी देवी को प्रणाम है। हम उन महान् देवी को नियमपूर्वक प्रणाम करते हैं॥७-८॥

उन अग्नि के सदृश वर्ण वाली, तप से प्रकाशित, दीप्तिमती एवं कर्मफल के प्राप्ति हेतु हम माँ भगवती दुर्गा देवी की शरण प्राप्त करते हैं। आप मेरे अज्ञानान्धकार को पूर्णतया नष्ट करें। प्राण रूपी देवताओं ने जिस प्रकाशमती ‘वैखरी’ वाणी को प्रकट किया, उस विविध रूपों वाली ‘वैखरी’ वाणी को सभी प्राणी बोलते हैं। कामधेनु के समान आनन्दमयी एवं अन्न और बल प्रदान करने वाली वाणी स्वरूपिणी माँ भगवती श्रेष्ठ एवं महान् स्तुतियों से प्रसन्न होकर हमारे समक्ष पधारें॥९-१०॥

कालरात्रि, वेदों द्वारा स्तुत, वैष्णवी शक्ति, स्कन्दमाता, सरस्वती, देवों की माता अदिति और दक्ष कन्या आदि रूपों में पापों को विनष्ट करने वाली एवं कल्याणमयी भगवती को हम नमस्कार करते हैं। हम माता महालक्ष्मी को जानते हुए सतत उन सर्वसिद्धिदात्री देवी को हृदय में धारण करते हैं, वे देवी हमें  प्रेरित करें॥११-१२॥

हे दक्ष! जो आपकी कन्या अदिति हैं, वे प्रसूता होने के पश्चात् स्तुत्य हैं एवं उन्होंने कल्याणकारी अमृतत्व गुणों से युक्त देवों को प्रादुर्भूत किया है। यह काम, योनि, वज्रपाणि, कामकलागुहा, वर्ण, वायु, अभ्र, इन्द्र, पुनः गुहा, वर्ण और माया आदि से विशिष्ट-रूपा या सर्वत्र गमनशीला या ऐश्वर्यरूपा ब्रह्मस्वरूपिणी एवं ‘आदि’ मूल विद्या है॥१३-१४॥

ये जगन्माता विश्व को सम्मोहित करने वाली परमात्मशक्ति हैं। ये पाश, अंकुश, बाण एवं धनुष को धारण करती हैं तथा यही श्रीमहाविद्या के नाम से जानी जाती हैं। जो मनुष्य इस प्रकार से इन्हें जानता है, वह शोक से मुक्त हो जाता है। हे भगवती ! आपको प्रणाम है। हे माता ! आप हमारी पूरी तरह से रक्षा करें॥१५-१७॥

देव (सुर) वर्ग शक्ति संसाधनों good use तो दानव (असुर) misuse/ overuse का माध्यम बनते हैं।

सुंदरता (सकारात्मकता) अथवा कुरूपता (नकारात्मकता) हमारे दृष्टिकोण (angle of vision) पर निर्भर करता है। “आकांक्षा – विचारणा – क्रिया” का क्रम जो जैसा सोचता है वैसा करता है और जैसा करता है वैसा बन जाता है। अतः आत्मसाधक/ सूर्योपासक/ शाक्य/ गायत्री साधक – उत्कृष्ट चिंतन, आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार के धारक होते हैं।

शक्ति‘ सभी प्रकार के दुर्गति को दूर करती हैं अतः इनका एक नाम ‘दुर्गा’ भी है। दुख के 3 कारण – अज्ञान, अशक्ति व अभाव। इन तीनों कारणों को जो जिस सीमा तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा वह उतना ही सुखी बन सकेगा। अज्ञान को ज्ञान से, अभाव को समृद्धि से, अशक्तता (निर्बलता) को सामर्थ्य से दूर किया जा सकता है।

वाणी‘ शक्ति हैं इसके सदुपयोग (good use) से हम देवत्व अवतरण व संवर्धन का माध्यम बन सकते हैं। (बैखरी) वाणी ऐसी बोलिए, मन का आपा खोये। औरों को शीतल करे, आपहू शीतल होये।।

जिज्ञासा समाधान

श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा व श्रम” – साधक के mandatory QR हैं जो लक्ष्य बोध सुनिश्चित करती हैं। प्रथम आधार श्रद्धा – विश्वास हैं। 

प्राण‘ का जागरण महा जागरण है। गायत्री पंचकोशी साधना/ आत्मसाधना से शरीर के अंदर प्रसुप्त शक्तियों को जाग्रत किया जा सकता है। यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे। कुण्डलिनी जागरण साधना से स्वयं को powerhouse बनाया जा सकता है।

प्रसुता‘ अर्थात् शक्तियों के प्रसवन से ही साकार ब्रह्म (अखिल ब्रह्माण्ड) उपास्य हैं। आदि शक्ति – समस्त शक्ति धाराओं की जननी हैं जो सृष्टि संचालन में सहयोगी हैं।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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