Durga Science (दुर्गा साइंस)
PANCHKOSH SADHNA नवरात्रि साधना सत्र – Online Global Class – 25 Oct 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: दुर्गा साइंस
Broadcasting. आ॰ नितिन आहुजा जी
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ (जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं …..)
“जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते” – शक्तिस्वरूपा सजल श्रद्धा से ओत प्रोत ‘कन्या’ समूह द्वारा अद्भुत गायन अप्रतिम वंदन।
एक बार ऋषियों के सभा (conference) में पुलस्त्य ऋषि ने कात्यायन ऋषि से भारतीय संस्कृति के आधारस्तम्भ के विषय में पूछा।
“गुरू, गायत्री, गंगा, गौ व गीता” भारतीय भारतीय संस्कृति के 5 आधारभूत स्तंभ हैं।
‘मानव‘ मनन शक्ति के धारक मननशील मनुष्य – चेतनात्मक उन्नयन/अवनयन के आधार पर देवमानव, नरपशु व नरपिशाच आदि कहे जाते हैं। जो मानव केवल पेट भरने व प्रजनन आदि तक सीमित हों – ‘नरपशु‘, जो अन्य के कष्टों/ पीड़ा का माध्यम बनते हैं – ‘नरपिशाच‘ एवं जो अपने लिए कठोरता व दुसरों के लिए उदारता का आचरण रखते हैं – ‘देवमानव‘।
भारतीय संस्कृति में ‘पर्व-त्यौहार‘ आध्यात्मिकता का प्रतिरूप है। ‘पर्व’ – समष्टि (समूह) रूप में लोकहितार्थ है और व्यष्टि (व्यक्तिगत) रूप में मानवीय विकास का आधार स्तम्भ है।
यह समाजिक ‘समरसता’/ सद्भावना/ आत्मीयता के साथ जनमानस में ‘हर्षोल्लास‘ का संचार करते हैं। यह समष्टि कल्याण के साथ ही साथ व्यष्टि कल्याण का माध्यम बनते हैं।
हर एक पर्व-त्यौहार के एक औचित्य/ आदर्श होते हैं। जिनके जैसे होने का संकल्प लिया जाता है, प्रेरणा को धारण किया जाता है।
‘विजयादशमी – पर्व’ – अनीति पर नीति के सफलता का प्रतीक है। मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों @ ‘रावण‘ को नहीं प्रत्युत उसके सद्विचारों व सत्कर्मों @ ‘राम’ को मानेंगे।
अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
‘दुर्गा‘ – दुर्गतिनाशिनी हैं। यह ‘श्रेय व प्रेय’/ ‘आत्मिकी व भौतिकी’ दोनों मार्गों में सफलता देती हैं।
नव दुर्गा नौ नामों से जानी जाती हैं। ‘नवरात्रि पर्व’ – ‘शक्ति-पर्व’ है। ‘ब्राह्मी’ शक्ति – ‘गायत्री’ ‘त्रिपदा’ हैं जो तीन शक्ति धाराएं ‘सरस्वती, लक्ष्मी व दुर्गा’ के नाम से जानी जाती हैं।
‘गायत्री‘ – वेदमाता, देवमाता, विश्वमाता आदि नामों से वंदनीय हैं। संपूर्ण विश्व की एक भाषा है वो ‘प्रेम‘। ‘आत्मा की भाषा – आत्मीयता‘।
‘वासना‘ व ‘तृष्णा‘ को गुरूदेव ने – ‘मधु’ व ‘कैटभ’ असुर की संज्ञा दी है। वासना – मधु (honey) की तरह मीठी होती है। तृष्णा के तीन रूप – लोकेषणा (संसार में प्रसिद्धि प्राप्त करने की तृष्णा ), वित्तेषणा (धन का लोभ ) व पुत्रेषणा (संतान की आसक्ति।)
‘सत्य‘/ ब्रह्म/ आत्मा – परमात्मा के साधकों को ‘वासना – तृष्णा’ को जीतना होता है रूपांतरण करना होता है – ज्ञानेन मुक्ति।
प्रश्नोत्तरी सेशन
एक संगठन की आत्मा/ शक्ति – ‘एकता’ है और ‘अनेकता में एकता’ @ अद्वैत – भारतीय संस्कृति तत्त्व दर्शन है।
‘ढेर जोगी मठ का उजाड़’ @ लबादा ओढ़े अर्थात् अपनी अपनी डफ़ली बजाना, राग अलापना @ विषमता।
‘पर्व-त्योहार‘ के आत्म-दर्शन को पर्व के देवता @ आदर्शों – प्रेम/ सरसता/ सद्भावना/ हर्षोल्लास आदि से समझ सकते हैं।
राग – द्वेष, सुख – दुःख, शरीरगत भेदत्व – विकार कहे गए हैं। संसार के हर परिवर्तनशील सत्ता में एक अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता (अद्वैत) विद्यमान है – वही शाश्वत है।
‘उमंग व उल्लास’ को बनाए रखने हेतु नवीनता (नयापन) आवश्यक है @ परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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