आध्यात्मिक प्राण विज्ञान का वैज्ञानिक परिचय
🌕 𝐏𝐀𝐍𝐂𝐇𝐊𝐎𝐒𝐇 𝐒𝐀𝐃𝐇𝐍𝐀 ~ 𝐎𝐧𝐥𝐢𝐧𝐞 𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐥𝐚𝐬𝐬 – 13 𝐉𝐮𝐧𝐞 𝟐𝟎𝟐𝟎 (𝟓:𝟎𝟎 𝐚𝐦 𝐭𝐨 𝟔:𝟑𝟎 𝐚𝐦) – 𝗣𝗿𝗮𝗴𝘆𝗮𝗸𝘂𝗻𝗷 𝗦𝗮𝘀𝗮𝗿𝗮𝗺 – प्रशिक्षक 𝗦𝗵𝗿𝗲𝗲 𝗟𝗮𝗹 𝗕𝗶𝗵𝗮𝗿𝗶 𝗦𝗶𝗻𝗴𝗵 @ बाबूजी
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
📽 Please refer to the recorded video.
📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. प्राणमयकोश (Etheric Body)
📡 𝗕𝗿𝗼𝗮𝗱𝗰𝗮𝘀𝘁𝗶𝗻𝗴. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकूर सक्सेना जी
🌞 आ० शरद निगम जी (चित्तौड़गढ़, राजस्थान). सभी के हित (चेतनात्मक उन्नयन) की शुभकामना करते हुए गायत्री मंत्र के साथ आदरणीय ने कक्षा का शुभारंभ किया:-
✍ अनुभव शेयरिंग. वर्ष 2003 में गायत्री महामंत्र की दीक्षा ली व साधनारत् हुए; साधना चल रही थी किंतु साधना में प्राण का अभाव प्रतीत होता था|
वर्ष 2015 में गायत्री पंचकोशी साधना के video को देखकर प्रभावित हुए और Shri LB Singh @ बाबूजी के मार्गदर्शन में पंचकोशी साधना शुरू की|
पंचकोशी साधना से समग्र स्वास्थय को पाया है| निरोगी काया, निर्मल मन, बुद्धिमत्ता, कार्य कुशलता व आत्मीयता जैसे दैवीय गुणों में उत्तरोत्तर अभिवृद्धि हो रही है|
💡 मानवीय काया (human body) में प्राण-शक्ति के different roles हैं जिनके आधार पर उनके नामकरण (naming) भी अलग हैं और गुण धर्म की भिन्नता भी बताई जाती है। इस पृथकता (seperation) के मूल में एकता (oneness) विद्यमान है। प्राण अनेक नहीं हैं वरन् उसके विभिन्न प्रयोजनों (different purposes) में व्यवहार पद्धति पृथक हैं।
📖 गायत्री मंजरी. कैलाश पर्वत पर आदियोगी शिव अपनी शक्ति पार्वती जी के जिज्ञासा समाधान में कहते हैं:-
ऐश्वर्य पुरुषार्थश्च तेज ओजो यशस्तथा। प्राणशक्त्या तु वर्धन्ते लोकानामित्यसंशयम्।19।
प्राण शक्ति से मनुष्यों का ऐश्वर्य, पुरुषार्थ, तेज, ओज, एवं यश निश्चय से बढ़ते हैं।
पंचभिस्तु महाप्राणैर्लघुप्राणैश्च पंचभिः|
एतै प्राणमयः कोशों जातो दशभिरुत्तमः।20।
पांच महा प्राण और पांच लघु प्राण इन दस से उत्तम प्राणमय कोश बना है।
🌸 मानव शरीर में प्राण को 10 भागों (5 प्राण + 5 उप प्राण) में विभक्त माना गया हैं। 5 मुख्य प्राण हैं – अपान, समान, प्राण, उदान एवं व्यान। 5 उपप्राण हैं – कूर्म, कृकल, नाग, देवदत्त, नाग एवं धनंजय| 5 उप प्राण इन्हीं 5 प्रमुखों (मुख्य प्राण) के साथ उसी तरह जुड़े हुए हैं जैसे Ministers के साथ Secretary रहते हैं:-
👉 ‘अपान + कूर्म‘ – अपान का कार्य शरीर के विभिन्न मार्गों से निकलने वाले मलों का निष्कासन, स्थान गुदा (anus), रंग – नारंगी व प्रभावित चक्र मूलाधार हैं|
कूर्म नेत्रों के क्रिया-कलाप जैसे कार्यों के लिये उत्तरदायी|
Body के हर एक cell में रस परिपाक के दौरान तथा पुरानी कोशिकाओं के विखंडन से जो मल बहता है उसके लिए भी विद्युत रासायनिक (इलेक्ट्रो कैमिकल) क्रियाएं उत्तरदायी है। प्राण विज्ञान में इसे ‘अपान’ की प्रक्रिया कहा गया है।
अपान व कूर्म पुरूष व महिलाओं में काम शक्ति हेतु उत्तरदायी हैं|
👉 ‘समान + कृकल‘ – समान का कार्य अन्न से लेकर रस-रक्त और सप्त धातुओं का परिपाक करना, स्थान – नाभि, रंग – हरा व प्रभावित चक्र मणिपुर हैं|
कृकल भूख-प्यास जैसे कार्यों के लिये उत्तरदायी| पाचन केवल आंतों में नहीं वरन् हर एक body cell में होता है। हर सैल अपने उपयुक्त आहार खींचता है तथा उसे ताप ऊर्जा में बदलता है। ताप ऊर्जा भी हर समय सारे शरीर में लगातार पैदा होती है और संचरित होती रहती है। उसके लिए रसों को हर सैल तक पहुंचाया जाता है। यह प्रक्रिया जिस प्राण ऊर्जा के सहारे चलती है उसे भारतीय प्राणवेत्ताओं ने ‘समान’ कहा है।
👉 ‘प्राण + नाग‘ – प्राण का कार्य श्वास-प्रश्वास क्रिया का सम्पादन, स्थान – छाती (heart), रंग – पीला व प्रभावित चक्र अनाहत हैं|
नाग – वायु सञ्चार, डकार, हिचकी, गुदा वायु जैसे कार्यों के लिये उत्तरदायी।
👉 ‘उदान + देवदत्त‘ – उदान का कार्य है आकर्षण ग्रहण करना, अन्न-जल, श्वास, शिक्षा आदि जो कुछ बाहर से ग्रहण किया जाता है वह ग्रहण प्रक्रिया इसी के द्वारा सम्पन्न होती है, स्थान कण्ठ, रंग – बैगनी तथा चक्र विशुद्धि है।
देवदत्त – जंभाई, अंगड़ाई जैसे कार्यों के लिये उत्तरदायी|
👉 ‘व्यान + धनंजय‘ – व्यान का कार्य रक्त आदि का संचार, स्थानान्तरण, स्थान सम्पूर्ण शरीर, रंग – गुलाबी और चक्र सहस्रार है।
धनञ्जय को हर अवयव की सफाई जैसे कार्यों का उत्तरदायी बताया गया है| आत्म साक्षात्कार/ ब्रह्म साक्षात्कार का केन्द्र|
🌸 नाड़ी – शरीरगत ऊर्जा धाराओं के प्रवाह मार्ग (channel) को नाड़ी कहते हैं । दो या दो से अधिक नाड़ियों के मिलन स्थल को उनकी प्रभावोत्पादकता व संख्याओं के हिसाब से संधि स्थल, मर्म स्थल, चक्र आदि कहते है। इन्हें नसें न समझना चाहिए, स्पष्टतः यह प्राण वायु के आवागमन-मार्ग हैं। नाभि में इसी प्रकार की एक नाड़ी कुंडली के आकार में है, जिसमें से “इडा, पिंगला सुषुम्ना, गांधारी, हस्त जिह्वा, पूषा, यशस्वनी, अलंबुषा, कुहू व शंखिनी” १० प्रमुख हैं|
मेरुदण्ड के शक्ति प्रवाह में तीन धाराएँ बहती हैं, जिन्हें ‘इड़ा (पैरासिम्पैथेटिक सिस्टम), पिंगला (सिम्पैथेटिक सिस्टम), व सुषुम्ना (हाईपोथेलेमस)’ कहा जाता है।
पीनियल और ‘पिट्यूटरी मस्तिष्क में ही अवस्थित रहते हैं, इन दोनों को मिलाने वाली शृंखला ही हाइपोथेलेमस है। इसे सहस्रार चक्र (रेटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम) भी कहा गया है।
🌸 बन्धेन मुद्रयाचैव प्राणायामेन चैव हि। एषः प्राणमयः कोशो यतमानं तु सिद्ध यति ।21।
बन्ध, मुद्रा और प्राणायाम द्वारा यत्नशील पुरुष को यह प्राणमय कोश सिद्ध होता है।
🌸 प्राणमयकोश परिष्कार के निम्नांकित साधनों पर भैया ने गहन शोधात्मक प्रकाश डाला है:-
👉 प्राणायाम – नाड़ीशोधन, चंद्रभेदन, सूर्यभेदन, अनुलोम विलोम, ईड़ा चालन, पिंग्ला चालन, सोहं साधना व प्राणाकर्षण प्राणायाम|
प्राणायाम का उद्देश्य प्राण शक्ति को विस्तार (आयाम) देना होता है जिसमें विश्वव्यापी महा प्राण को यथेष्ट मात्रा में प्राण खींचकर सदुपयोग (आत्मकल्याण व लोककल्याण) करते हैं|
👉 बन्ध (neuromuscular bond) – मूल बन्ध, उड्डियान बन्ध, जालंधर बन्ध व महाबन्ध|
बन्ध – प्राण शक्ति के क्षरण (leakage) को रोकती है जिससे प्राण शक्ति के शोधन (cleaning) व संवर्धन (healing) में मदद मिलती है|
👉 मुद्रा – महामुद्रा, खेचरी मुद्रा, शाम्भवी मुद्रा, शक्तिचालिनी मुद्रा व अश्विनी मुद्रा|
व्यष्टि सत्ता का समष्टि सत्ता से मिलन में मुद्राओं की भूमिका अहम है| यह चेतनात्मक उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|
💐 अनुभव शेयरिंग
🌞 आ० घनश्याम जी ने पंचकोशी क्रियायोग से स्वस्थ शरीर व व्यवस्थित जीवन अर्थात् सांसारिकी व आत्मिकी दोनों क्षेत्रों में क्रमशः उन्नति कर रहे हैं| शीर्षासन ने इन्हें महती लाभ पहूँचाया है|
🌞 आ० नवीन माली जी ने पंचकोशी क्रियायोग से जीवन लक्ष्य आत्म साक्षात्कार/ परमात्म साक्षात्कार की ओर अग्रसर हैं| आदरणीय ने प्राणायाम के गहन अभ्यास द्वारा विचारों के भटकाव को रोका और शांत चित्त का संधान किया|
🌞 आ० श्याम जी ने पंचकोशी क्रियायोग के अभ्यास से शरीर के रोगों का समूल नाश किया और APMB का अभ्यास सहजता से करते हुए उत्तरोत्तर प्रगति कर रहे हैं|
🌞 𝗤 & 𝗔 𝘄𝗶𝘁𝗵 @LBSingh
🙏 प्राणायाम के चुनाव में अपने शरीर के गुणों का स्व मूल्यांकन करना नितांत आवश्यक है| अभ्यास से आपकी सहजता में अभिवृद्धि होनी चाहिये|
प्राण शक्ति क्रमशः पंचकोशों में रूपांतरित होती चली जाती हैं और अंततः एक ही सत्ता का साक्षात्कार होता है; क्योंकि दूसरी कोई सत्ता है ही नहीं @ एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति|
युगऋषि प्रणीत प्राणाकर्षण प्राणायाम युगानुकूल सरल सहज व अत्यंत प्रभावी है|
🙏 किसी भी क्रियायोग के practice में कितना समय देना है इसका मूल्यांकन स्वयं को करना होता है|
Practice में सहजता व लक्ष्य (बोधत्व) का सदैव ध्यान रखें|
🙏 वासना, तृष्णा, अहंता आदि भी cough (चिपकाव) के प्रकार हैं ‘महामुद्रा + महाबंध + महाबेध‘ का अभ्यास इनके निष्कासन (cleaning) मे प्रभावी हैं|
🙏 सोहं साधना में प्राणमय कोश का स्वरूप सबसे अधिक स्पष्टता से जैवीय विद्युत (Bio electricity) के रूप में समझा जा सकता है।
🙏 गुरूदेव कहते हैं “भीम की तरह खाओ और हनुमान की तरह काम करो“|
भीम की तरह खाओ अर्थात् सात्विक भोजन पर्याप्त मात्रा में लिये जायें, योग – व्यायाम आदि से प्राण शक्ति का संवर्धन किया जाये तथा हनुमान की तरह काम करो अर्थात् बिना प्रमाद के पूर्ण श्रद्धा व निष्ठा के साथ जीवन लक्ष्य का संधान करो|
🙏 कामवासना पर नियंत्रण हेतु कुण्डलिनी जागरण की साधना महत्वपूर्ण है|
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||
🙏𝗪𝗿𝗶𝘁𝗲𝗿: 𝗩𝗶𝘀𝗵𝗻𝘂 𝗔𝗻𝗮𝗻𝗱 🕉
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