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Gayatri Geeta

Gayatri Geeta

गायत्री गीता

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 20 Nov 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: गायत्री गीता (अन्नमयकोश)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

https://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v2.154

आ॰ शैली अग्रवाल जी (पंचकुला, हरियाणा)

1st मंत्र भावार्थ (ॐ) – ईशावास्यं इदं सर्वं । ईशानुशासनं स्वीकरोमि । जैसी करनी वैसी भरनी । As you sow so you reap. जो बटोरोगे वहीं बांटोगे; और जो बांटोगे वही with interest लौट कर आयेगा ।

2nd मंत्र भावार्थ (भूः – प्राणस्वरूप) – गायत्री वा इदं सर्वं । नर व नारी एक समान । जाति वंश सब एक समान ‌। आत्मीयता । समत्व @ एकत्व ।

3rd मंत्र भावार्थ (भुवः – कर्मयोग – दुःखनाशक) – कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ (भावार्थ : तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो॥47॥) । अनासक्त कर्म @ निःस्वार्थ प्रेम ।

4th मंत्र भावार्थ (स्वः – संतुलित मनः स्थिति – सुखस्वरूप): योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय । सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ (भावार्थ : हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, उसके पूर्ण होने और न होने में तथा उसके फल में समभाव रहने का नाम ‘समत्व’ है।) ही योग कहलाता है॥48॥ @ मनोमयकोश जागरण (जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना) ।

5th मंत्र भावार्थ (तत् – तत्त्वज्ञान): एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति । संसार की परिवर्तनशीलता के रहस्य को समझना ।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।। (इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकता ।) @ विज्ञानमयकोश जागरण (सोऽहं साधना, आत्मानुभूति योग ग्रन्थि भेदन व स्वर संयम) ।

6th मंत्र भावार्थ (सवितु: – तेजस्वी): आत्मबल के धनी बनें । ज्ञान, कर्म व भक्ति की त्रिवेणी संगम में नित्य स्नान (आत्मसात) करें । आठ बलों – स्वास्थ्य, विद्या, धन, चतुरता, संगठन, यश, साहस व सत्य) के धारक बनें @ पंचकोश जागरण ।

7th मंत्र भावार्थ (वरेण्यं – श्रेष्ठता @ आदर्शों को धारण करना): ईश्वर आदर्शों के समुच्चय हैं । ईशावास्यं इदं सर्वं । अतएव सर्वत्र ईश्वर @ आदर्शों को देखने (रूप), सुनने (शब्द), ग्रहण करने (रस, गंध व स्पर्श) के क्रम को अपनाया जाए @ तन्मात्रा साधना ।

आ॰ मीना शर्मा जी (नई दिल्ली)

8th मंत्र भावार्थ (भर्गो – निष्पाप): नीर क्षीर का विवेक । आत्मानुशासन । आत्मजगत का पदार्थ जगत पर नियंत्रण । @ अनासक्त भाव ।

9th मंत्र भावार्थ (देवस्य – देवत्व): निःस्वार्थ प्रेम @ आत्मीयता @ सियाराम मय सब जग जानी @ वसुधैव कुटुंबकम् सेवा @ परमार्थ भक्तियोग । आनंदमयकोश जागरण ।

10th मंत्र भावार्थ (धीमहि – पवित्रता): अंतः व बाह्य शुचिता को धारण करें @ पवित्रीकरणं । आत्मीय संपदा – आत्मीयता @ अनासक्त प्रेम ।

11th मंत्र भावार्थ (धियो – सद्बुद्धि): विवेकवान @ प्रज्ञा को धारण करें @ ज्ञानयोग ।

12th मंत्र भावार्थ (यो नः – लोकसेवा/ परमार्थ/ आत्महित): तेते पांव पसारिए जेते लांबी सौर (मितव्ययिता ~ सादा जीवन – उच्च विचार) । अपने लिए कठोरता अन्यों के प्रति उदारता (सहयोग, सहकारिता) @ वसुधैव कुटुंबकम् ।

13th मंत्र भावार्थ (प्रचोदयात् – सन्मार्ग की प्रेरणा): प्रेरणास्रोत बनें व प्रसार का माध्यम बनें । गुरूदेव कहते हैं हमारे बच्चे चलते फिरते (जीवंत) शक्तिपीठ बनें ।

14th मंत्र भावार्थ (गायत्री गीता हृदयंगम – मोक्ष @ मुक्ति @ तीनों दुःख का नाश): गायत्री-गीता को भली प्रकार के जानने अर्थात् जीने वाले सभी प्रकार के दुःखों से निवृत्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं । जीना अर्थात् सोच का कर्म व कर्म का आचरण में जीवंत हो जाना।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी‘)

आ॰ शैली अग्रवाल दीदी व आ॰ मीना शर्मा दीदी जी को हार्दिक साभार । दोनों आत्मसाधिकाएं – तपस्विनी हैं । अपनी duties को करते हुए गुरूदेव के शिक्षण के मर्म को अपने अनुभवों से सर्वसमक्ष रखने हेतु दोनों दीदी को कोटिशः धन्यवाद व प्रेम ।

अनासक्त प्रेम (ज्ञानयोग @ कर्मयोग @ भक्तियोग) को उद्देश्य – रहित के अर्थ में ना लिया जाए । लक्ष्य सोद्देश्य होते हैं । फल के प्रति आसक्ति (सफलता/ असफलता) से उपर उठना होता है । Sportsman spirit के उदाहरण से समझा जा सकता है । एक खिलाड़ी जीतने के उद्देश्य से खेलता है । असफल (हारने) उपरांत दुगुनी मेहनत से सफल होने हेतु प्रयास करता है ।
गुरूदेव कहते हैं कि असफलता केवल यह दर्शाती है कि सफलता का प्रयास पूर्ण मनोयोग से नहीं किया गया ।
असफलताएं – सफलता की ओर बढ़ने के लिए आवश्यक अनुभव प्रदान करती हैं ।

सजल श्रद्धा – प्रखर प्रज्ञा । योग की आत्मा – आत्मीयता/ प्रेम है । अतः प्रेम करना ना भूलें @ भावे विद्यते देवा ।

चरण वंदना @ विनम्रता – समग्र समर्पण । जिन पेड़ों पर फल लगते हैं वे झुक जाते हैं । विद्यां ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्॥

गायत्री महामंत्र का practical गायत्री पंचकोशी साधना है । Theory, practical and application @ “उपासना, साधना व अराधना’ @ ज्ञानयोग, कर्मयोग व भक्तियोग’ @ आकांक्षा, विचारणा व क्रिया’ ये क्रमशः सोपान हैं । अतः लक्ष्य संधान तक नित्य बढ़ता रहा जाए @ चरैवेति चरैवेति मूल मंत्र है अपना ।

Give respect – take respect. बुजुर्ग – सम्मान व बच्चे – प्यार दुलार के अधिकारी हैं । अक्खड़ता (ग्रन्थि) – आत्मीयता का ह्रास करती हैं ।

सभी (108) उपनिषद् में हमें कुछ ना कुछ ना ऐसा मिल जाता है जो हमारे जीवन लक्ष्य (आत्मबोध व‌ तत्त्वबोध) में अप्रतिम भूमिका निभाता है । प्रेरणाओं को धारण करने व प्रसार का माध्यम बनने में भी उपनिषद् स्वाध्याय की भूमिका अहम है ।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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