Gayatri Geeta
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 14 May 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: गायत्री गीता
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक गण:
1. आ॰ मीना शर्मा जी (दिल्ली)
2. आ॰ अमन कुमार जी (गुरूग्राम, हरियाणा)
गीता में उन सुत्रों का संग्रह है जिससे हमारे जीवन के समस्त दुःख (३ कारण – अज्ञान, अशक्ति व अभाव) दूर होते हैं अर्थात् हमारा जीवन सुखी (अखंड आनंद का स्रोत – श्री + समृद्धि + सफलता) बनता है । त्रिताप (दैहिक, दैविक व भौतिक कष्ट) शांत होते हैं अर्थात् ‘मुक्ति‘ (मोक्ष) का मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों ही दृष्टिकोण से गायत्री का सन्देश बहुत ही अर्थपूर्ण है । इसके स्वाध्याय (अध्ययन + चिंतन मनन + निदिध्यासन) से हम जीवन को कृतार्थ कर सकते हैं ।
गायत्री गीता (गायत्री महाविज्ञान) – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v2.154
1. ‘ॐ‘ – ब्रह्म का सर्वश्रेष्ठ नाम … । “भूः (शरीर) भुवः (संसार) व स्वः (आत्मा) तीनों लोकों में व्याप्त ॐ ब्रह्म को जानने वाला वास्तव में ज्ञानी है ।
2. ‘भूः‘ – प्राण स्वरूप (गायत्री वा इदं सर्वं ।) @ समानता @ आत्मविश्वास @ आत्मवत् सर्वभूतेषु … ।
3. ‘भुवः‘ – दुःखनाशक (कर्मयोग @ अनासक्त कर्म @ कर्मण्येवाधिकारस्ते) … ।
4. ‘स्वः‘ – सुख स्वरूप/ स्थिरता (शांत व प्रसन्न मन) @ “वासना – शांत + तृष्णा – शांत + अहंता – शांत finally उद्विग्नता – शांत ….. ।”
5. ‘तत्‘ – निर्भयता/ जीवन विज्ञान/ तत्त्वदर्शी (मैं आत्मा हूं, शरीर मेरा वाहन है ) …. ।
6. ‘सवितुः‘ – तेजस्वी (शक्ति संचय – ओजस्, तेजस् व वर्चस् को धारण करें) … ।
7. ‘वरेण्यं‘ – श्रेष्ठता (प्रगति पथ पर अग्रसर रहें …. ।
8. ‘भर्गो‘ – पापनाशक (निष्पाप) @ तप से निर्मलता; सदुपयोग का माध्यम बनें व दुरूपयोग से बचा जाए … @ सत्प्रवृत्ति संवर्धनाय दुष्प्रवृत्ति उन्मूलनाय आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्काराये …. ।
9. ‘देवस्य‘ – देवत्व (अमरता) सकारात्मक दृष्टिकोण (दिव्य दृष्टि – जो संभव बन पड़ता है प्रज्ञा बुद्धि से), सेवा भाव, सहकारिता, सहिष्णुता, सज्जनता, सहृदयता @ अंतरंग परिष्कृत + बहिरंग सुव्यवस्थित … ।
10. ‘धीमहि‘ – पवित्रता/ सद्गुण (निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥) … ।
11. ‘धियो‘ – प्रज्ञावान् (बुद्धिमत्ता)/ विवेक – स्वाध्याय सत्संग आदि का जीवन में समावेश … ।
12. ‘यो नः‘ – संयम (इन्द्रिय संयम + समय संयम + विचार संयम + आर्थिक संयम); समस्त शक्तियां व साधन (24 तत्त्व) ईश्वर प्रदत्त हैं उसके दुरूपयोग (missuse) से बचें @ सादा जीवन + उच्च विचार @ वसुधैव कुटुंबकम् @ Unconditional love … ।
13. ‘प्रचोदयात्‘ – प्रेरणा/ सेवा (उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत) @ चलता फिरता शक्तिपीठ (संत, सुधारक, शहीद) बनें (आत्मनिर्माणी ही विश्वनिर्माणी होते हैं) …. ।
14. ‘गायत्री गीता‘ को जीने वाले (उत्कृष्ट चिंतन + आदर्श चरित्र + शालीन व्यवहार के धारक) सब प्रकार के दुःखों से छूट कर सदा आनन्दमग्न रहता है ।
जिज्ञासा समाधान (श्री अमन कुमार जी)
त्रिगुणात्मक (सत्व, तम व रज) प्रकृति है । अतः प्रकृति में रमण करने हेतु त्रिगुणात्मिका समायोजन की आवश्यकता होती है । महापुरूषों के आचरण के प्रति हमें स्थूल दृष्टि की जगह सुक्ष्म दृष्टि को प्राथमिकता देनी चाहिए । @ सविता सर्वभूतानां सर्व भावश्च सूयते ।
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ।।3.28।। भावार्थ: गुणकर्मविभाग के तत्त्व को जाननेवाला, “सभी गुण ही गुणों में बरतते है” ऐसा समझकर आसक्त नहीं होता ।
“ज्ञान (उपासना) + कर्म (साधना) + भक्ति (अराधना)” – गायत्री साधना से अनासक्त जीवन जीया जा सकता है ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
‘मन‘ को शुद्ध (शांत व प्रसन्न) रखने हेतु मनोमयकोश जागरण के क्रियायोग (जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना) प्रभावी हैं ।
विज्ञानमयकोश जागरण (आत्मबोध + तत्त्वबोध) से अन्तःकरण, विशुद्ध चित्त की स्थिति होती है जिसमें आत्म – परमात्म एकाकार की स्थिति बन जाती है ।
आत्मपरिष्कार (आत्मसमीक्षा + आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मविकास) की यात्रा जन्म जन्मान्तरों तक चलती है ।
श्रद्धा दृष्टि (प्रांजल दृष्टिकोण/ विवेक) के धारक बनें । गायत्री का वाहन ‘हंस’ (नीर क्षीर विवेकी) है । अतः गायत्री साधक प्रज्ञा बुद्धि के धारक बनें । जीवन में सकारात्मकता (ग्रन्थि बेधन) को यथा संभव स्थान दिया जाए व नकारात्मकता (ग्रन्थि) से बचा जाए ।
विज्ञानमयकोश जागरण में ग्रन्थि बेधन साधना से त्रिगुणात्मक साम्यावस्था बनाई जाती है जिससे ‘उद्विग्नता’ – शांत होती है और साधक को बोधत्व होता है – Nothing is useless in the universe. It depends upon us (handlers) that how we handle all तत्त्व .
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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