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Gayatri Ramayan (गायत्री रामायण)

Gayatri Ramayan (गायत्री रामायण)

PANCHKOSH SADHNA ~ Online Global Class – 15 Aug 2020 (5:00 am to 06:30 am) – प्रज्ञाकुंज सासाराम – प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. गायत्री रामायण (मनोमय कोश)

Broadcasting. आ॰ अमन कुमार जी

🌞 आ॰ किरण चावला दीदी (USA)

वाल्मीकि रामायण में 24000 श्लोक हैं। एक-एक हजार श्लोकों के ऊपर गायत्री के एक-एक अक्षर का सम्पुट दिया गया है। इन 24 अक्षरों के आरम्भ वाले 24 श्लोकों को ‘गायत्री रामायण’ कहा जाता है। इन श्लोकों के गर्भ में संकेत रूप में छिपे हुए मर्मों को समझकर, उन्हें हृदयंगम करने वाला मनुष्य, सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण के लाभ प्राप्त कर सकता है।

१. तप और स्वाध्याय करने वाले सर्व प्रधान और मुनियों में श्रेष्ठ नारदजी से तपस्वी वाल्मीकि ने पूछा| (बालकाण्ड 1/1) प्रेरणा: तप और स्वाध्याय की। नारद जिनकी प्ररेणा को रद्द ना किया जा सके।

२. ‘‘यज्ञ नष्ट करने वाले समस्त राक्षसों को रामचन्द्र जी ने मारा। ऋषियों ने उनकी इसी प्रकार पूजा की, जिस प्रकार पहले असुर-विजय करने पर इन्द्र की हुई थी।’’ (बालकाण्ड 30/24) प्रेरणा: १. यज्ञ नष्ट करने वालों को राक्षस मारना, २. राक्षसों को मारना & ३. राक्षसों को मारने के लिये विवेकशीलों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना।
ऋषि याज्ञवल्क्य जी की प्ररेणा – आत्म समीक्षा आत्मसुधार व आत्म विकास।

३. ‘‘राम के साथ विश्वामित्र ने जनक की बातें सुनीं और रामचन्द्र से कहा—वत्स! धनुष को देखो।’’ (बालकाण्ड 67/12) प्रेरणा: कठिनाइयों को देखकर हमें झिझकना, डरना या घबराना नहीं चाहिये वरन् दृढ़तापूर्वक उनको हल करने के लिए अग्रसर होना चाहिये।

४. ‘‘राजा के शयनागार तक वे (सुमन्त) चले गये। वहां उनके वंश की प्रशंसा की।’’ (अयोध्याकाण्ड 15/19-2)
प्रेरणा: इस श्लोक में प्रशंसा के महत्व का वर्णन है। यह एक शस्त्र है, जिसके उपयोग द्वारा बुरे और भले दोनों प्रकार के परिणाम निकल सकते हैं।

५. ‘‘वनवास के दिनों को गिनकर, पति के साथ जाने वाली सीता को, श्वसुर ने वस्त्र-आभूषण दिये।’’ (अयोध्याकाण्ड 40/14) प्रेरणा: भविष्य में आने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखकर, उनके लिये समुचित तैयारी करना।

६. ‘‘राजा सत्य है, धर्म है, कुलवानों का कुल है, माता-पिता के तुल्य है और मनुष्यों का हितकारी है।’’ (अयोध्याकाण्ड 67/34) प्रेरणा: सुराज्य की प्रशंसा, श्रेष्ठता बताकर सुराज्य द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करने का प्रोत्साहन है। सत्य @ श्रेय मार्ग, धर्म @ सत्य, सदाचार, शील, संयम, कुल @ मर्यादा/ जीवन चरित्र, माता – पिता @ प्रथम पाठशाला, स्वावलंबन।

७. ‘‘भरत ने उसी क्षण, जटाधारी राम को उस कुटीर में बैठा देखा। (अयोध्याकाण्ड 99/25)
प्रेरणा: विवेकवान् व्यक्ति अपने दृष्टिकोण को भरत-सा, अपने अन्तःकरण को सरलतामयी कुटिया-सा बना ले, तब उसे जटाधारी राम के दर्शन होंगे।

८. ‘‘हे महामति! यदि तुमको अगस्त्य के दर्शन की इच्छा है, तो आज ही जाने की सोचो।’’ (अरण्यकाण्ड 11/43)
प्रेरणा: जो करना अभीष्ट है, उसके लिये विलम्ब न लगा कर, समय को बर्बाद न करके, वर्तमान में ही उसके लिये प्रयत्न आरम्भ कर देना चाहिये।

९. ‘‘भरत को, आपको और मेरी सासों को यह दिव्य मृगरूपी खिलौना विस्मित करेगा, यदि वह जीवित न पकड़ा जा सके, तो भी इसका चर्म बड़ा ही सुन्दर होगा।’’ (अरण्यकाण्ड 43/18) प्रेरणा: ‘पूरा या कुछ नहीं’ की दुराग्रह भरी नीति के स्थान पर ‘जितना मिले उसे लो और अधिक के लिये कोशिश करो’ @ अर्जन तप

१०. ‘‘हे राघव! तुम यहां से शीघ्र महाबली सुग्रीव के पास जाओ और आज ही उसे अपना मित्र बनाओ।’’ (अरण्यकाण्ड 72/17) प्रेरणा: बलवान् (आत्मबल व आत्मज्ञान के धनी व्यक्तित्व) को अपना मित्र बनाने में देर न करने की शिक्षा यहां दी गयी है।

११. ‘‘देश काल को समझो। प्रिय – अप्रिय को तथा सुख – दुःख को सहकर सुग्रीव के अधीन रहो।’’ (किष्किन्धाकाण्ड 22/20) प्रेरणा: प्रिय – अप्रिय में, सुख – दुःख में मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिये, वरन् मन को एकरस कर अपनी मानसिक स्वस्थता का परिचय देना चाहिये।

१२. ‘‘निष्पाप, सिद्ध, तपस्वियों को प्रणाम करना और उनसे विनयपूर्वक सीता का पता पूछना।’’ (किष्किन्धाकाण्ड 43/32, 33) प्रेरणा: आत्म-ज्ञानी गुरु के लक्षण और शिष्य की पूछने की शैली का आधार।

१३. ‘‘कपिश्रेष्ठ महातेजस्वी हनुमान ने पराक्रम से कामरूपिणी लंका को जीता।’’ (सुन्दरकाण्ड 4/1)
प्रेरणा: हनुमान जी की भांति हम सबको वासना रूपिणी लंका जीतने का प्रयत्न करना चाहिये।
आ॰ दीदी ने कड़ी भूख पर भोजन का स्वादिष्ट होना, कठिन परिश्रम पर गहरी नींद का आना और चारित्रिक सदाचार, शील, संयम के माध्यम से ब्रह्मचर्य @ अभेद दुर्ग के माध्यम से समझाया।

१४. ‘‘देवता, गन्धर्व, सिद्ध तथा ऋषिगण धन्य हैं, जो मेरे राजीव-लोचन, वीर राम को देखते हैं।’’ (सुन्दरकाण्ड 26/39)
प्रेरणा: जिनके दिव्य नेत्र खुल गये हैं, उनको अपने भीतर बाहर चारों ओर जर्रे-जर्रे में परमात्मा के दर्शन होते रहते हैं

१५. ‘‘वे उस समय कपि का मंगल करती थीं, इसलिये विशालाक्षी सीता ने अग्नि की स्तुति की।’’ (सुन्दरकाण्ड 53/26, 27) प्रेरणा: अग्नि @ तेजस्विता @ यज्ञ की महत्ता। यज्ञ @ श्रेष्ठ कर्म।

१६. ‘‘तीनों कालों में हितकारी, सप्रमाण, कोमल और अर्थयुक्त विभीषण के वचन सुनकर रावण को बड़ा क्रोध आया और उसने कहा।’’ (युद्धकाण्ड 10/27)
प्रेरणा: ‘अन्धे के आगे रोवे अपने नयना खोवे’’।

१७. ‘‘राक्षस-श्रेष्ठ धर्मात्मा विभीषण आ रहे हैं, वे ही लंका के शत्रुहीन राज्य का उपयोग करेंगे।’’ (युद्धकाण्ड 41/68)
प्रेरणा: विभीषण की भांति न्यायपूर्ण दृष्टि रखकर हम सर्वप्रिय और सभी के हृदयों पर शासन कर सकते हैं।

१८.‘‘जो रावण वज्रपात तथा अग्नि के प्रहार से विचलित नहीं हुआ था, वह राम के बाणों से आहत होकर बहुत दुःखी हुआ और उसने बाण चलाये।’’ (युद्धकाण्ड 59/139)
प्रेरणा: अहंकारियों को याद रखना चाहिये कि उनसे भी बलवान् कोई सत्ता मौजूद है और उसके एक प्रहार में सारी अकड़ ढीली हो सकती है।

१९. ‘‘जिसके पराक्रम से राक्षसों की मृत्यु हुई, उस अनामय वीर राम को धन्य है।’’ (युद्धकाण्ड 72/11)
प्रेरणा: उस वीर पुरुष का पराक्रम धन्य है, जो स्वयं निष्पाप रहता है और कषाय – कल्मषों को मार भगाता है।

२०. ‘‘महात्मा राम ने दिव्य गन्धर्वास्त्र के द्वारा राक्षसों को मोहित कर दिया था, इसी से वे सेना को नष्ट करने वाले राम को नहीं देख सकते थे।’’ (युद्धकाण्ड 93/26)
प्रेरणा: अज्ञानी लोग कष्टों का कारण सांसारिक परिस्थितियों को समझते हैं, पर वस्तुतः स्थिति यह है कि उनका पाप ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है।

२१. ‘‘देवता और ब्राह्मणों को प्रणाम करके सीता ने हाथ जोड़कर अग्नि के समीप जाकर कहा।’’
प्रेरणा: छल, कपट, असत्य की वाणी उन्हीं के मुख से निकलती है, जो ईश्वर से दूर रहते हैं।

२२. “पर्वत के कांपने से शिवगण भी कांप गये और पार्वती भी महादेव से लिपट गयीं।’’ (उत्तरकाण्ड 16/26)
प्रेरणा: संसार में जितने भी व्यक्तिगत या सामूहिक परिवर्तन होते हैं, उनका मूल कारण दृष्टिकोण का, आधार का परिवर्तन है। भवानी शंकरो श्रद्धा विश्वास रुपिणौ।

२३. ‘‘वानरराज! स्त्री, पुत्र, नगर, राष्ट्र, भोग, वस्त्र, भोजन यह हमारी अविभक्त सम्पत्ति होगी।’’ (उत्तरकाण्ड 34/41)
प्रेरणा: ईश्वर प्रदत्त जितनी भी सामग्री इस संसार में है, उस पर मानव प्राणियों का समान रूप से अधिकार है।

२४. ‘‘जिस रात्रि में शत्रुघ्न वाल्मीकि आश्रम की पर्णशाला में गये, उसी रात्रि में सीता ने दो पुत्रों को उत्पन्न किया।’’ (उत्तरकाण्ड 66/1) प्रेरणा: जिस दिन शत्रु का नाश करने वाला प्रेम – लोभ के महलों को छोड़कर ऋषि भावना की प्रतीक त्याग रूपी पर्णशाला में पहुंचता है, उसी में आत्मा रूपी सीता, दो पुत्र उत्पन्न करती है। (1) लव अर्थात् ज्ञान। (2) कुश अर्थात् कर्म।
🙏 आत्मोन्नति की दो उपलब्धि – सद्ज्ञानसत्कर्म जिस जीवात्मा प्राप्त होते हैं; उसके अखंड आनन्द की सीमा कौन निर्धारित कर सकता है। परमानन्द ही गायत्री की सिद्धि।

🌞 आ॰ अमन भैया (गुरूग्राम हरियाणा).

कठिनाई के मूल/कारण में ही समाधान छिपा होता है।
सादगीपूर्ण जीवन व्यक्तित्व – विवेक के धारक होते हैं। बल पूर्वक दमन की जगह ज्ञान रूपी संयम को स्थान देना विवेकपूर्ण है।
समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारीबहादुरी – जीवन का अभिन्न अंग।

श्री विष्णु आनन्द

आज स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हम गायत्री रामायण की प्रेरणाओं को हृदयंगम कर स्वयं को “वासना – तृष्णा – अहंता” @ त्रिविध दुःखों की गुलामी से मुक्त कर सकते हैं।

आध्यात्मिक स्वतंत्रता. अंग्रेजों से आजादी हमें १५ अगस्त १९४७ को मिल गई। किंतु रूढ़िवादी मानसिकता और जटिलताओं से हम मुक्ति नहीं मिली।
अराध्य गुरूसत्ता महाप्राज्ञ वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी ने मानव जीवन की पूर्ण स्वतंत्रता अर्थात् आत्म बोध व परमार्थ का मार्ग प्रशस्त करने का बीड़ा उठाया।
कब तक यूं ही परतंत्रता/ पूर्वाग्रह/ अंध मान्यताओं के बंधन में बंध कर पीढ़ी दर पीढ़ी अंधानुकरण करते रहें !?
गुरुदेव ने कहा परंपराओं की जगह विवेक को महत्त्व दें
विगत कुछ दिनों से पंचकोश साधकों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्तित्व के धारकों द्वारा गायत्री परिवार से बहिष्कृत और गुरू कृपा से वंचित होने की धमकियों/ गीदड़ भभकियों का दौर चल पड़ा है। स्मरण रहे अराध्य गुरूसत्ता ने सभी एकलव्यों को अंगुठा लौटाने की बात कही है और महान तप से गायत्री साधना को हर एक झोपड़ी व खोपड़ी तक पहूंचाया है।

बचपन की एक घटना स्मरण हो आती है जिसमें महिलाओं को गायत्री यज्ञ करता देख एक व्यक्ति अपनी स्वार्थ रूपी दुकान बंद होने की आशंका से भय दिखाने हेतु यूं कहता है की “मैं कान में गायत्री फूंक दूं तो सभी पागल हो जायेंगे”।
स्वराज्य अर्थात् अध्यात्म (स्वयं पर अधिकार/नियंत्रण) हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
अध्यात्म पर कापीराइट/बंधन की चाह रखने वाले अहंकारियों को यह सदैव स्मरण रखना चाहिए की यह ईश्वर प्रदत्त सर्वसुलभ सर्व समर्थ अनुदान/ वरदान है।
गुरुदेव ने सदैव जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्रीयता आदि भेद भाव से परे – पूर्ण स्वराज्य अर्थात् मनुष्य में देवत्व का अवतरण और धरा पर स्वर्ग के अवतरण का लक्ष्य रखा।
मैं स्वयं को धन्य मानता हूं की ऐसे गुरुसत्ता, बाबूजी जैसे प्रशिक्षक, आप सभी आत्मीय परिजन और स्व जनों परिवार मिला जहां पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी मानसिकता से परे अध्यात्म को ना केवल जानने समझने का प्रत्युत् जीने हेतु सर्वथा अनुकूल वातावरण मिला। रोम रोम कृतज्ञ हैं इस स्वतंत्रता का।

गायत्री रामायण के २४ श्लोकों में समाविष्ट प्रेरणाओं के सार संक्षेप का एक प्रयास मात्र: १. तपस्वाध्याय, २. असुरत्व उन्मूलन/ अंतरंग परिष्कृत – बहिरंग सुव्यवस्थित ३. साहस/ आत्मबल, ४. प्रशंसा, ५. पुण्य संचय, ६. राष्ट्रीयता, ७. विवेक बुद्धि/प्रज्ञा, ८. तत्परता, ९. नियमित व निरंतर प्रयास, १०. मैत्रीवत्, ११. स्थित प्रज्ञता १२. आत्म ज्ञानी गुरु – विनम्र शिष्य, १३. ब्रह्मचर्य (शील, सदाचार व संयम), १४. प्रज्ञा जागरण से सर्वत्र परमात्म दर्शन, १५. ओजस् , तेजस् व वर्चस्, १६. सुसंगती, १७. न्याय पूर्ण दृष्टि १८. समर्पण/ निरहंकारिता, १९. पराक्रम, २०. ज्ञान, २१. उपासना, २२. तत्त्व दर्शन, २३. समानता, २४. सद्ज्ञानसत्कर्म
अध्यात्म अर्थात् “आत्म बोधत्व – सद्ज्ञान और परमार्थ – सत्कर्म” – में ही मानव जीवन की सार्थकता सन्निहित।

🌞 श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी (प्रश्नोत्तरी)

🙏 पूज्य गुरुदेव ने राष्ट्र धर्म को जीवन का अभिन्न अंग रखा। स्वतंत्रता सेनानी रहे और जन जन को ना केवल शारीरिक तौर पर स्वतंत्र वरन् मानसिक स्वतंत्रता @ त्रिविध तापों से मुक्ति हेतु मार्ग प्रशस्त करते आ रहे हैं।

🙏 ब्राह्मण के लक्षण – तपस्वी, आत्मज्ञानी, तत्त्व ज्ञानी और जन जन तक ज्ञान को सुलभ करायें।

🙏 अज्ञानता का विरोध ज्ञान से, अभाव का सत्कर्म से, अनीति का आत्मबल से। मैत्री, करूणा, मुदिताउपेक्षा अध्यात्मिक संघर्ष के शस्त्र हैं। ईशानुशासन और प्रकृति के नियमों/ विधि व्यवस्था में सहयोग से उत्पन्न विवेक रूपी ज्ञान का प्रकाश हमारा मार्ग प्रशस्त करती है।

🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||

🙏Writer: Vishnu Anand 🕉

 

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