Gayatri Ramayan
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 03 Jul 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
SUBJECT: गायत्री रामायण
Broadcasting: आ॰ नितिन आहूजा जी
आ॰ किरण चावला (USA)
वाल्मीकि रामायण में 24000 श्लोक हैं। हर एक हजार श्लोक पर गायत्री मंत्र के एक अक्षर का संपुट है।
1. गायत्री रामायण का प्रथम श्लोक हमें तपस्वी और स्वाध्यायशील होने का सदुपदेश देता है।
2. १. यज्ञ नष्ट करने वाले को राक्षस मानना २. राक्षसों को मारना, ३. राक्षसों को मारने के लिए विवेकशीलों द्वारा प्रोत्साहित करना।
3. कठिनाइयों को देख कर झिझकना, डरना या घबराना नहीं चाहिए वरन उनको हल करने के लिए अग्रसर होना चाहिए।
4. प्रशंसा स्वच्छ चादर है और निन्दा चिथड़ा।
5. हमें शुभ कर्म करते रहना चाहिए ताकि हमारा भविष्य उज्जवल हो।
6. राज्य भक्ति का अर्थ है – देशभक्ति, समाज भक्ति।
7. विवेकवान व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण भरत सा, अन्तःकरण को सरलतामयी कुटिया सा बना लें तब जटाधारी राम के दर्शन होंगे।
8. वर्तमान सबसे मूल्यवान समय है। इसे किंचित मात्र व्यर्थ ना गंवाना चाहिए।
9. जितना मिले उसे लो और अधिक के लिए कोशिश करो।
10. जिसे जिस क्षेत्र में लाभान्वित होना है, उसे उसी क्षेत्र में अपने से बलवान् शक्तियों संग यथाशीघ्र मैत्री स्थापित कर लेनी चाहिए।
11. प्रिय-अप्रिय, सुख-दुख में मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए, वरन् मन को एकरस कर अपनी मानसिक स्वस्थता का परिचय देना चाहिए।
12. आत्मज्ञान के शिक्षक में तीन गुण होने चाहिए – १. निष्पाप, २. अनुभव सिद्ध व ३. तपस्वी।
13. हनुमान जी के भांति हम सबको वासना रूपिणी लंका को जीतने का प्रयत्न करना चाहिए @ ब्रह्मचर्य।
14. जिनके दिव्य नेत्र खुल गये हैं उनको अपने भीतर बाहर चारों ओर ज़र्रे ज़र्रे में परमात्मा के दर्शन होते हैं।
15. अग्नि, जीवन शक्ति को भी कहते हैं। जीवन शक्ति में अभिवृद्धि मंगलमय है।
16. जो लोग मदोन्मत होते हैं वो दूसरों की उचित बातों को नहीं समझते। शठे शाठ्यं समाचरेत्।
17. विभीषण की भांति न्यायपूर्ण दृष्टि रखकर हम सर्वप्रिय रह सकते हैं और उनके हृदयों पर शासन कर सकते हैं।
18. ईश्वर न्यायकारी निष्पक्ष हैं अतः हमें ईश्वरीय कोप व दैवी दण्ड का ध्यान रखते हुए अपने आचरण को ठीक रखना चाहिए @ आदर्श चरित्र।
19. उस वीर पुरुष का पराक्रम धन्य है जो स्वयं निष्पाप रहता है और कषाय कल्मषों को मार भगाता है।
20. पाप ही मानव का सबसे बड़ा शत्रु होता है।
21. छल, कपट, असत्य की वाणी उन्हीं के मुख से निकलती है जो ईश्वर से दूर रहते हैं।
22. इच्छा/ आकांक्षा – विचारणा – क्रिया। दृष्टिकोण परिष्कृत होना महान परिवर्तन है।
23. समाजवाद के सिद्धांत का सुत्र – ईश्वर प्रदत्त जितनी भी सामग्री इस संसार में है, उस पर मानव प्राणियों का समान रूप से अधिकार है।
24. जिस दिन प्रेम – लोभ रूपी महल (वासना, तृष्णा व अहंता) को छोड़कर ऋषि भावना प्रतीक त्याग रूपी पर्णशाला (निःस्वार्थ प्रेम/ आत्मीयता/ सद्भावना) में पहुंचता है, उसी में ‘आत्मा’ रूपी सीता 2 पुत्र उत्पन्न करती हैं – १. लव रूपी ज्ञान, २. कुश अर्थात् कर्म।
तप व योग (उपासना, साधना व अराधना) के समन्वित प्रयास से सीता रूपी ‘आत्मा’ की गोदी सद्ज्ञान व सत्कर्म रूपी दो पूत्रों से भर जाती है। जिसके जीवंत स्वरूप को हम व्यक्तित्व में “उत्कृष्ट चिंतन, प्रखर चरित्र व शालीन व्यवहार” के रूप में देख सकते हैं।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
शक्ति/ संसाधन good use का माध्यम हों तो सुर/देव वर्ग का और misuse/ overuse का माध्यम बने तो असुर/राक्षस वर्ग का प्रतिनिधित्व करतीं हैं।
गायत्री त्रिपदा (ज्ञान, कर्म व भक्ति) हैं। आदर्श भक्त, उत्कृष्ट चिंतन, प्रखर चरित्र व शालीन व्यवहार के धारक होते हैं। “ज्ञानयोग, कर्मयोग व भक्तियोग” भिन्न-भिन्न नहीं हैं प्रत्युत् परस्पर पूरक हैं।
आत्मा का गुण/प्रकाश – आत्मीयता/सद्भावना में सद्ज्ञान व सत्कर्म परिपुष्ट होते हैं। vice versa सद्ज्ञान, सत्कर्म में मूर्त होते हैं और उपलब्धि सद्भावना के रूप में होती है।
धारणे इति धर्मः। @ सार्वभौम धर्म की व्याख्या धर्म के सार तत्त्व १० लक्षण (5 युग्म – १. सत्य व विवेक, २. संयम व कर्तव्य, ३. मर्यादा पालन व अनुशासन निर्वाह, ४. सौजन्य व पराक्रम एवं ५. सहकार व परमार्थ) संपूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक हैं।
धर्मो रक्षति रक्षितः। धर्म मानव जीवन का प्राण है।
धर्म के केवल बाह्य रूप में में उलझ कर अंतरंग पक्ष ‘आत्मीयता’ को गौण करना ही ‘विग्रह’ का कारण है।आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः। वसुधैव कुटुंबकम्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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