Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
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Gayatri Smriti

Gayatri Smriti

गायत्री स्मृति

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 10 दिसंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

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विषय: गायत्री स्मृति

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:-
1. आ० आशीष कुमार गुप्ता जी (गोरखपुर, उ० प्र०)
2. आ० आदित्य जी (नोएडा, एनसीआर)
3. आ० नीलम जी (गुरुग्राम, हरियाणा)

गायत्री विद्या – प्राण विद्या । स्मृति – स्मरणीय । विस्मरण (भुलक्कड़ी) पतन/ दुःख का कारण ।

(तीन लोक) ‘भूः – पृथ्वी @ शरीर, भुवः – पाताल @ संसार व स्वः – स्वर्ग @ आत्मा’ में ‘ऊँ ब्रह्म’ व्याप्त है @ हरि व्यापक सर्वत्र समाना ।’ ऊँ भूर्भुवः स्वः का तत्त्वज्ञान समझ लेने वाला ब्रह्मज्ञानी – जीवनमुक्त
ईश्वरीय पसारे (साकार) इस संसार में ईश्वरीय अनुशासन (आत्मानुशासन) में ईश्वरीय कार्य (कर्तव्य – duties) के संपादन/ निष्पादन का माध्यम बनें ।

वर्ण व्यवस्था (faculty system) अगले चार मंत्र में । मानव के अंदर चारों वर्ण/ शक्ति विद्यमान । रूचि व व्यक्तित्व अनुरूप faculty को join किया जा सकता है ।

तत् –  जिसकी आत्मा (व्यक्तित्व) जितने अंशो में तत्त्वदर्शी, विद्वान व तपस्वी वह उतने ही अंशों में ब्राह्मण । ब्राह्मण (सद्ज्ञान के धनपति) अज्ञान द्वारा उत्पन्न अंधकार को दूर करें ।

– सामर्थ्यवान/ सत्तावान/ प्राणवान लोकरक्षक faculty (क्षत्रिय) पिछड़े के सहायक व रक्षक की भूमिका में रहें @ सत्प्रवृत्ति संवर्धन + दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन ।

वि – (वैश्य) धनबल द्वारा उचित अभाव की पूर्ति । धन-शक्ति द्वारा घमंड व उदण्डता का प्रदर्शन ना करें ।

तु – (श्रमिक) श्रम की महत्ता । कठिन समय में मानव के 4 मित्र – विवेक, धैर्य, साहस व प्रयत्न ।

– मनुष्य की निर्मात्री नारीनारी कासम्मान जहाँ है संस्कृति का उत्थान वहाँ है

रे – निर्मलता का नारी में निवास । यत्रनार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:

णि – प्राकृतिक जीवनशैली (natural lifestyle) @ संयमित आहार विहार @ सादा जीवन – उच्च विचार ।

– सदाचार @ शालीन व्यवहार । संसार में हम ऐसा व्यवहार करें जैसा हम अपने साथ चाहते हैं ।

– cool mind @ दिमाग – ठंडा @ उद्विग्नता (वासना + तृष्णा + अहंता) – शांत ।

गो – मनसा वाचेण कर्मणा एकरूपता व सज्जनता सहकार सहिष्णुता परमार्थ ।

दे – इन्द्रिय संयम @ आत्मनियंत्रण ।

– आंतरिक व बाह्य पवित्रीकरण @ तप

स्य – परमार्थ @ लोककल्याण @ वसुधैव कुटुम्बकम ।

धी – skilled @ multitasking  @ सर्वांगीण विकास ।

– गहणाकर्मणोगतिः (जैसा बोएंगे – वैसा काटेंगे) @ ईश्वरीय अनुशासन को जीवन में धारण करें ।

हि – नीर क्षीर विवेकी @ विवेकी बनें @ प्रज्ञान ब्रह्म @ ज्ञानेन मुक्ति ।

धि – जीवन ऐसा (उज्जवल) हो कि मृत्यु शानदार हो ।

यो – धर्मो रक्षति रक्षितः । धारणे इति धर्मः । good use का माध्यम बनें ।

नः – (आसक्ति) व्यसनों से बचें ।

प्र – उदार बनें व अनुदारता से बचें ।

चो – सत्पुरुषों सज्जनों का संग सत्संग का समावेश  ।

– आत्मदर्शन व आत्मगौरव को आत्मसात कर आत्मोन्नति में निरत रहें ।

यात् – guardians/ leaders अपनी गरिमा के अनुरूप कार्य करें ।

जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

सभी को नमन; शिक्षक बैंच के शिक्षण प्रशिक्षण को देख ब्रह्म-बीज प्रस्फुटित होते दिख रहे हैं @ अपार हर्ष का विषय ।

वर्ण व्यवस्था (faculties/ विभाग) :-
1. Education department – ब्राह्मण वर्ण
2. Defense department – क्षत्रिय वर्ण
3. Commercial department – वैश्य वर्ण
4. Hardworking/ Department of labour- श्रमिक वर्ण  ।

ऊँ भूर्भुवः स्वः – ईश्वरीय सर्वव्यापकता ।

पानी पियो छान के – (तत्त्वदर्शी + विद्वान + तपस्वी) गुरू करो जान के

शुद्ध मनशांत (संतुलित/ नियंत्रित/ संयमित) व प्रसन्न

साधक व साध्य की एकरूपता/ सायुज्यता उपरांत साधन गौण (निर्विकल्प/ निर्बीज ।

आसक्ति (वासना तृष्णा अहंता) negativity (उद्विग्नता) का root cause ।

कुरीति उन्मूलन – हम परंपराओं के जगह विवेक को महत्व दें ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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