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Gayatri Upanishad

Gayatri Upanishad

गायत्री उपनिषद्

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 25 Dec 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: गायत्री उपनिषद्

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ उमा सिंह जी (बैंगलोर कर्नाटक)

वेद‘ (ज्ञान) और ‘छन्द‘ (अनुभव) सविता का वरेण्य हैं ।  तप या ज्ञान अनुभव सिद्ध हो । Theory & Practical साथ साथ चलें ।

विद्वान पुरुष ‘अन्न’ को ही देव का ‘भर्ग’ मानते हैं । भर्ग को शक्ति व अन्न को शक्ति के स्रोत/संसाधन (resources) के अर्थों में ले सकते हैं ।

‘कर्म’ ही वह “धी” तत्त्व है जिसके द्वारा सबको प्रेरणा देता हुआ सविता विचरण करता है । @ धरा पर स्वर्ग का अवतरण (प्रेरणा + प्रोत्साहन + कार्यरत) @ योगः कर्मषु कौशलम् ।

सविता व सावित्री – एक दूसरे से पृथक नहीं प्रत्युत् पूरक हैं, युग्म हैं । सविता – तेजस्वी परमात्मा व सावित्री – परमात्मा की तेजस्विता (शक्ति) । उपनिषद्कार ने विभिन्न उदाहरणों द्वारा इसे सुबोध बनाते हैं ।

परमात्मा की इच्छाशक्ति से सृष्टि उत्पन्न हुई ” एकोऽहं बहुस्याम्” । इसमें 3 वस्तुएं प्रधान हैं:-
1. श्री
2. प्रतिष्ठा
3. आयतन (ज्ञान)
तप के व्रत को धारण कर (तपस्वी ब्राह्मण) अर्थात् सत्य के मार्ग (सन्मार्ग) पर चलकर सत्य में प्रतिष्ठा (बोधत्व) होती है

त्रिपदा सावित्री/गायत्री:-
1. भूः (पृथ्वी लोक) – तत्सवितुर्वरेण्यं (ऋग्वेद – ज्ञानयोग @ उपासना – approached)
2. भुवः (अन्तरिक्ष) – भर्गो देवस्य धीमहि (यजुर्वेद – कर्मयोग @ साधना – digested)
3. स्वः –  धियो यो नः प्रचोदयात् (सामवेद – भक्तियोग @ अराधना – realised).

सावित्री के 3 पाद जानने वाला ब्राह्मण के गुण:-
1. ब्रह्म प्राप्त (approached) – ज्ञानी (चिंतन – उत्कृष्ट),
2. ग्रसित (digested) – कर्मठ/ कर्मयोगी (चरित्र – आदर्श),
3. परामृष्ट (realised) – भक्ति (व्यवहार – शालीन) ।

चरित्र चिंतन व व्यवहार के धनी बनें ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

सविता को वरेण्य करने @ बोधत्व हेतु दो उपाय:-
1. वेद अर्थात् ज्ञान (वेदों की आत्मा – वेदांत @ उपनिषद् का नित्य स्वाध्याय)
2. छन्द @ अनुभव (practical) @ आत्मसाधना (क्रियायोग) ।

आत्मसाधक किसी भी वर्ण (faculty) व आश्रम (age) में हो वो तेजस्वी बनें (बोधत्व) – सूर्य की तरह चमकें (चलता फिरता शक्तिपीठ – प्रेरणास्रोत) और राह दिखायें (प्रेरणा प्रसारण का माध्यम) ।

विज्ञानमयकोश उज्जवल होने के उपरांत कष्ट/ दुःखों का अस्तित्व नहीं रहता । अमरत्व दृष्टिकोण प्राप्त होता है – सत्यं शिवं सुन्दरं ।
अनासक्त साधना (ज्ञानयोग/ कर्मयोग/ भक्तियोग) – आत्मसाधना । आसक्ति (प्रपंच – शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) का विलय विसर्जन @ प्रलय/ एकत्व/ अद्वैत । प्रसवन (एकोऽहम् बहुस्याम्) से सृष्टि उत्पन्न हुई व प्रतिप्रसवन (एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति । @ ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या ।)  – बोधत्व हेतु सभी उपनिषद्कार का सार्वभौम निर्देश – तप कर ।

गायत्री महामंत्र के देवता सविता (आत्मिकी) । सविता की शक्ति – सावित्री (आत्मभौतिकी)

Each and everything has importance. Nothing is useless. Handler should know how to handle tattvas (सांख्य दर्शन). Be a medium of good use and avoid misuse or overuse @ योगस्थः कुरू कर्माणि …… समत्वं योग उच्यते ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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