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Introduction of Annamay Kosh

Introduction of Annamay Kosh

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 07 Nov 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: अन्नमयकोश का परिचय

Broadcasting. आ॰ अमन जी

आ॰ अमन जी (गुरूग्राम, हरियाणा)

एक किसान (farmer) अपनी कृषि (खेती-बाड़ी) को 5 क्रियाओं द्वारा (जोतने, बोने, सींचने, रखाने व काटने) परिपूर्ण कर उसके लाभ को घर तक ले जाते हैं। ठीक वैसे ही ‘आत्मसाक्षात्कार‘ हेतु आत्मा के 5 आवरण ‘पंचकोश’ का अनावरण करना होता है।
मानवी चेतना को 5 भागों में विभक्त किया गया है। इस विभाजन को पंचकोश कहते है। अन्नमय कोश अर्थात् इन्द्रिय चेतना, प्राणमय कोश – जीवनी शक्ति, मनोमय कोश – विचार बुद्धि, विज्ञानमय कोश – अचेतन सत्ता/ भाव प्रवाह, आनन्दमय कोश – आत्म बोध/ आत्म जागृति।
पंचकोश साधना – जैसे प्याज की गांठ में, केले के तने में या कपड़े के ऊपर एक के उपर एक परत होती है। उसी प्रकार आत्मा 5 आवरण (layers) ओढ़े होते हैं जिसे हम पंचकोश कहते हैं। ‘कोश’ क्योंकि इसमें अनंत ‘ऋद्धि-सिद्धि’ भरी होती हैं। इनके कालिमा युक्त होने से हमें ‘आत्म-विस्मृति‘ (भुलक्कड़ी) होती है और हम आत्मा के प्रकाश (आत्मबोध) से वंचित हो जाते हैं। पंचकोश साधना में हम पंचकोश को उज्जवल (transparent) बनाते हैं अर्थात् क्रमशः इन 5 आवरणों का अनावरण करते हैं। पंचकोश साधना के 19 क्रियायोग ‘गलाई व ढलाई’ अर्थात् ‘तप व योग‘ की समन्वित/ उभयपक्षीय प्रक्रिया है।

अन्नमयकोश. मनुष्य के शरीर ‘अन्न’ से बनते हैं। ‘उपत्यिकाओं’ पर स्वास्थय निर्भर करता है। ‘आसन, उपवास, तत्त्व-शुद्धि, व तपश्चर्या’ से अन्नमयकोश की शुद्धि होती है।
Endocrine System – the pituitary gland, the thyroid gland, the parathyroid glands, the thymus, the adrenal glands, pancreas, ovaries and testes के functions और उस पर अन्नमयकोश की साधना के प्रभाव।
अन्नमयकोश के जागरण/ उज्जवल/ अनावरण से ‘निरोग जीवन, दीर्घ जीवनचिरयौवन‘ की उपलब्धि मिलती है।
आसन. Joint movements, 4 प्रभावी आसन – सर्वांगासन, बद्ध-पद्मासन, पाद-हस्तासन व उत्कटासन। 4 महाप्रभावी आसन – पश्चिमोत्तानासन, सर्पासन, धनुरासन व मयुरासन। सूर्य नमस्कार & प्रज्ञा-योगासन के अभ्यास व हर एक posture से शारीरिक-मानसिक लाभ।

उपत्यिकाएं. नाड़ी जाल (72000) देह में ‘नाड़ी गुच्छक’ के रूप में फैला होता है इन्हें अध्यात्मिकी में ‘उपत्यिका‘ कहते हैं। ये उपत्यिकाएँ शरीर में अन्नमयकोश की बंधन ग्रंथियां है। इनकी कई जातियाँ है। जैसे ‘पूषा‘ उपत्यिका की बढ़ोत्तरी हमें अति कामुक बनाती है। ‘कपिला‘ – डर दिल की धड़कन में वृद्धि, आशंका, अस्थिरता व नपुँसकता जैसे रोग पैदा करती है। ‘आमाया‘ – हमें जिद्दी और दुराग्रही बनाती है। ‘उद्गीथ’ की अभिवृद्धि व्यक्ति को संतानहीन बना देती है।
उपवास. पाचक, शोधक, शामक, आनक व पावक। यह नाड़ियों को संशोधित करने का एक सशक्त उपाय है। उपवास के 5 अनिवार्य नियम। – सहज सुलभ briefing।
तत्त्व-शुद्धि. पंचतत्व (क्षिति, जल पावक गगन समीरा) निर्मित इस पंचभौतिक शरीर में तत्त्व शुद्धि के अभ्यास से पंच तत्त्वों को संतुलित कर समग्र स्वास्थ्य को पाया जा सकता है – सहज सुलभ briefing।
तपश्चर्या. 12 युगानुकुल तप ~ ‘अस्वाद, तितीक्षा, कर्षण, उपवास, गव्य कल्प, प्रदातव्य, निष्कासन, साधना, ब्रह्मचर्य, चान्द्रायण, मौन व अर्जन तप’ पर सहज सुलभ briefing.

Q&A with श्री लाल बिहारी बाबूजी

अन्नमयकोश‘ साधना सुत्रों का सहजता से जीवन में समावेश:- ब्रह्ममुहुर्त में जगना (नाइट सिफ्ट की ड्युटी वाले जब जगें तभी सबेरा)। ऊषापान सह स्वाध्याय– जगने के बाद अध्ययन करते हुए घूंट घूंट (sip sip) करके पानी पीयें। 1 hour पंचकोशी १९ क्रियायोग का अभ्यास – क्रियायोग के चुनाव में अपने सहजता व रूचि का ध्यान रखें। ‘ईमानदारी‘ से 1 घंटा क्रियायोग1 घंटा स्वाध्याय का अभ्यास करें तो हर कोई आत्म – परमात्म साक्षात्कार कर सकते हैं।

अपनी हर एक duties को ईश्वरीय कार्य मानें। ईश्वरीय पसारे इस संसार में हम माध्यम हैं। हर एक कार्य को कुशलता पूर्वक अनासक्त भाव से संपादित करें @ “योग: कर्मषु कौशलम्योगस्थः कुरू कर्मणिसमत्वं योग उच्यते।”

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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