Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
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Introduction of Pranmaykosh and Methods of Pranayama

Introduction of Pranmaykosh and Methods of Pranayama

प्राणमयकोश का परिचय एवं प्राणायाम की विधियां

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 26 नवंबर 2022   (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

विषय: प्राणमयकोश का परिचय एवं प्राणायाम की विधियां

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:
1. आ॰ अंबुज शर्मा जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
2. आ॰ निशी शर्मा जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰) एवं
3. आ॰ अमन कुमार जी (गुरूग्राम, हरियाणा)

प्राणमयकोश और उसका विकास – http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.68

प्राणमयकोश की साधना –  http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.73

प्राणमय कोश – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v10.9

आत्मा पर चढ़ा हुआ दूसरा आवरणप्राणमय कोश
अन्नमय कलेवर खाने-पीने काम करने जैसे प्रयोजन हेतु जो ऊर्जा, स्फूर्ति, उमंग कार्य करती है वह ‘प्राण’ है। 
जिसका प्राणमय कोश जितना परिष्कृत/ उज्जवल/ सामर्थ्यवान होगा, वह उतना ही प्रतापी, पराक्रमी, शूरवीर, साहसी होते हैं । प्राण विद्युत की अधिकता ही व्यक्ति को तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी बनाती है।

मानव शरीर में ‘प्राण’ को 10 भागों (5 प्राण + 5 लघु-प्राण) में विभक्त माना जाता है जिनके सम्मिश्रण से उत्तम प्राणमयकोश बना है । http://literature.awgp.org/book/panch_pran_panch_dev/v2.5

प्राणमयकोश उज्जवल/ परिष्करण के 3 साधन :-
1. प्राणायाम
2. बन्ध
3. मुद्रा
उपलब्धि:-
1. ऐश्वर्य
2. पुरूषार्थ
3. ओज – तेज
4. यश

अन्नमयकोश – परिष्कृत (संयमित आहार विहार) प्राणमयकोश परिष्करण का आधार ।

प्राणायाम में (कल्याणकारी) भाव युक्त संकल्प बल से शरीरगत प्राण बल (प्राणमयकोश) को महाप्राण से परिष्कृत संवर्धित किया जाता है । इसमें क्रियाएं :-
1. पूरक (inhale)
2. कुंभक (hold):-
(क) अंतः कुंभक – पूरक के उपरांत भीतर सांस को रोकना (hold breath inside after inhale)
(ख) बाह्य कुंभक – रेचक के उपरांत बाहर सांस को रोकना (hold breath outside after exhale)
3. रेचक (exhale)
दिव्य गुणों को भरें (inhale)
वासना, तृष्णा, अहंता व उद्विग्नता को शांत करें (exhale)
उद्देश्य for holding – आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्कराय ।

विविध प्राणायाम में प्राणाकर्षण का भाव मूल में है विशेष प्राणायाम का चुनाव स्वयं की प्रकृति (सत्, रज व तम) व आवश्यकता (faculty) अनुरूप किया जा सकता है ।

प्राण वायु पर नियंत्रण से मन नियंत्रित होता है । नियंत्रण अर्थात् संतुलन / साम्यता / संयम (ध्यान + धारणा + समाधि)  ।

Demonstration of विविध प्राणायाम:
1. नाड़ी शोधन प्राणायाम,
2. प्राणाकर्षण प्राणायाम,
3. सूर्यभेदन प्राणायाम,
4. सोऽहं प्राणायाम

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’ एवं शिक्षक बैंच)

आ॰ शिक्षक बैंच व सभी पार्टिसिपेंट्स को नमन ।

Snoring (खर्राटों) से निजात पाने हेतु सुपाच्य भोजन, walking/ jogging/ running, body weight control एवं शरीर में गर्मी पैदा करने वाले प्राणायाम व स्वाध्याय को प्राथमिकता दी जा सकती है ।

प्राणाकर्षण प्राणायाम से प्राणायाम की शुरुआत की जा सकती है ।

कुंभक सिद्ध होने से अवांछनीय डकार नियंत्रित हो जाएंगी ।

बन्ध‘ (मूलबंध, उड्डियान, जालंधर व महाबंध) Neuromuscular locking process हैं जिसमें शारीरिक क्रियाएं संग भावनाओं का योग किया जाता है जिससे प्राण का आकर्षण संवर्धन विनियोग संग प्राण का क्षरण रोका जा सके । ये कुंभक के दौरान लगाए जाते हैं ।

देवताओं (दैवीय गुण/ शक्ति) को जो प्रसन्न (आकर्षण – संवर्धन – विनियोग) करें वो मुद्रा हैं ।
महामुद्रा + महाबंध + महाबेध‘ क्रियायोग से मनोवांछित लाभ लिए जा सकते हैं ।

प्राणाकर्षण प्राणायाम से कुंभक में अभिवृद्धि की जा सकती हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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