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Introduction to Etheric Body

Introduction to Etheric Body

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 05 June 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

SUBJECT:  प्राणमय कोश का परिचय

Broadcasting: आ॰ अमन जी

आ॰ विष्णु आनन्द जी (कटिहार, बिहार)

 

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

दो प्रकार की मुद्राएं हैं – हस्त मुद्रायें व यौगिक मुद्राएं। हस्त मुद्राएं – अंगुष्ठ (thumb) – अग्नि, तर्जनी (index finger)  – वायु, मध्यमा (middle finger) – आकाश, अनामिका (ring finger) – पृथ्वी, कनिष्ठा (little finger) – जल। हमारा शरीर पंचतत्व से मिलकर बना है। इनके असंतुलन (घटा बढ़ी) से रोग उत्पन्न होते हैं। उंगलियों की सहायता से विभिन्न मुद्राओं द्वारा इन पंचतत्त्वों को संतुलित कर स्वास्थ्य रक्षा एवं रोग का निवारण किया जा सकता है।  शून्य मुद्रा, लिंग मुद्रा, आदित्य मुद्रा व अपान वायु मुद्रा – तत्काल असर करती है।

ध्यान युक्त जप करें। मन ही मन जप करने से अन्य disturb नहीं होते।

Over diet से बचने के लिए – भोजन को चबा चबाकर खाएं। भूख लगने पर हमेशा स्थूल अन्न पर आश्रित ना रहें; बल्कि पानी, रसाहार का सहारा लिया जा सकता है। चने चबेना को भी खुब चबाकर रसाहार का प्रारूप दे सकते हैं। आहार में जल को अहम स्थान दिया जाए। सुबह का प्रारंभ ऊषापान विद स्वाध्याय हो। पानी गटागट नहीं प्रत्युत् घूंट घूंट पिया जाए। Diet plan में ऋतभोक्, मितभोक् व हितभोक् का ध्यान रखें।

प्राणायाम‘ का स्थान एकांत, स्वच्छ, हवादार व शांत हो तो लाभ में अभिवृद्धि होती हैं।

प्राणाकर्षण प्राणायाम में दोनों नथूनों से सांस भरी व छोड़ी जाती हैं अतः हाथ free रहते हैं। प्राण हर जगह उपलब्ध हैं। हमलोग प्राण के बीच तैर रहे हैं। इसके प्रथम चरण में – cleaning करें। द्वितीय चरण में – will power को बढ़ावे। तृतीय चरण – चक्रों उपचक्रों में दसों प्राण को भरे। चतुर्थ चरण में पंचकोश उज्जवल परिष्कृत।

भस्त्रिका प्राणायाम, सूर्यभेदन प्राणायाम, शीर्षासन, मयूरासन, ‘महामुद्रा + महाबंध + महावेध’ आदि weight loss में प्रभावी हैं। साथ ही साथ पौष्टिक आहार लेते रहें।

महामुद्रा + महाबंध + महावेध’ demo.

पूरक – धीरे धीरे अंदर सांस भरें, अंतः कुंभक – अच्छा लगने तक सांस अंदर रोकें, रेचक – धीरे धीरे सांस छोड़ते हुए खाली करें, बाह्य कुंभक – अच्छा लगने तक बाहर रोकें। त्रिबंध अर्थात् महाबंध – मूल बंध + उड्डियान बंध + जालंधर बंध।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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