Introduction to Vigyanmaykosha and Soham Meditation
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 14 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच:-
1. आ॰ शरद निगम जी (चित्तौरगढ़, राजस्थान)
2. आ॰ पद्मा हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)
विषय: विज्ञानमयकोश का परिचय एवं सोऽहं साधना
आत्मा‘ का चौथा आवरण @ गायत्री का चतुर्थ मुख – विज्ञानमयकोश (Spritual body + Cosmic body) ।
ज्ञान का अभिप्राय है जानकारी । विज्ञान का अभिप्राय है श्रद्धा, धारणा, मान्यता, अनुभूति ।
‘विज्ञान‘ का उद्देश्य – अपने संबंध में तात्त्विक मान्यता (अहं ब्रह्मस्मि @ तत्त्वमसि @ सोऽहं @ सर्व खल्विदं ब्रह्म) को स्थिर करना और उसको पूर्णतया अनुभव करना ।
विज्ञानमयकोश – वह मनोभूमि जिसमें हम यह अनुभव करते हैं कि मैं शरीर नहीं वस्तुतः आत्मा ही हूँ ।
जीव (व्यक्तित्व = चिंतन + चरित्र + व्यवहार) की स्थिति:-
1. अन्नमयकोश – स्त्री – पुरूष, मनुष्य, पशु, मोटा – पतला, पहलवान, काला, गोराई आदि शरीर संबंधी भेद दृष्टिकोण
2. प्राणमयकोश – गुणों के आधार पर भेद दृष्टिकोण
3. मनोमयकोश – मन की मान्यता / स्वभाव के आधार पर भेद दृष्टिकोण
4. विज्ञानमयकोश – शरीर, गुण व स्वभाव से उपर अविनाशी आत्मा हूँ ।
5. आनंदमयकोश – एकत्व @ अद्वैत ।
आत्मज्ञानी दृढ़ विश्वास व पूर्ण श्रद्धा संग अनुभव करता है:
– शरीर मेरा वाहन है ।
– प्राण मेरा अस्त्र है ।
– मन मेरा सेवक है ।
– मैं विशुद्ध हूँ, आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं ।
मनोवृत्ति (दृष्टिकोण) में अंतर :-
1. आर्त अर्थी चिंतित भोगी – अपने शरीर सुख के लिए धन व भोग इकट्ठा करने की योजना को केंद्र में रखकर तदनुरूप विचार व कार्य में संलग्न अर्थात् शरीर प्रधान – आत्मा गौण @ बन्धन ।
2. ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी – स्वयं को आत्मा समझकर (आत्मानुसंधान/ आत्मसाक्षात्कार/ आत्मलाभ/ आत्मप्राप्ति/ आत्मदर्शन) आत्मकल्याण की नीति पर चलता है @ मुक्ति ।
जो जो शरण तुम्हारी आवें सो सो मनोवांछित फल पावें ।।
विज्ञानमयकोश अनावरण के 4 क्रियायोग:-
1. सोऽहं साधना (अजपा जप)
2. आत्मानुभूति योग
3. स्वर संयम
4. ग्रन्थि भेदन
सोऽहं साधना (अजपा जप) practical session by आ॰ शरद निगम जी:
1. जब हम सांस लेते हैं (पूरक @ breath in/ inhale) तो एक सुक्ष्म ध्वनि “सो ….”,
भावना – परमात्म प्रकाश/ ईश्वरीय गुणों का आकर्षण (स्व अध्ययन + मनन + चिंतन + गुरू कॄपा)
2. जितनी देर सांस ठहरती है (स्वभाविक कुंभक @ natural breath pause) एक विराम ध्वनि “अ ऽ ऽ ऽ”
भावना – परिवर्तन/ रूपांतरण
3. जब सांस बाहर निकलती है (रेचक @ breath out) “हं ……”
भावना – जीव भाव को छोड़ना @ भेद दृष्टिकोण से मुक्ति @ अद्वैत ।
‘सो‘ – ब्रह्म का प्रतिबिंब, ‘ऽ‘ – प्रकृति का प्रतिनिधि व ‘हं‘ – जीव का प्रतीक ~ सोऽहं (अजपा जप) में ब्रह्म, प्रकृति व जीव (त्रैत – तीन महाकारण) का सम्मिलन होता है (एक – अद्वैत)
जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
सभी पार्टिसिपेंट्स को नमन व आ॰ पद्मा दीदी व आ॰ शरद भैया को अनुभव युक्त शिक्षण हेतु आभार ।
विज्ञानमयकोशमें साक्षी भाव (तत्त्व दृष्टि – तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥) महत्वपूर्ण है ।
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा । दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा ।। आतम अनुभव सुख सुप्रकासा । तब भव मूल भेद भ्रम नासा ।।
प्राणाकर्षण प्रणायाम:-
1. आकर्षण
2. संधारण
3. विनियोग
विज्ञानमयकोश दिव्य प्रेम (unconditional love @ आत्मीयता) का विस्तार करता है @ वसुधैव कुटुम्बकम ।
Demonstration: “महामुद्रा + महाबन्ध + महावेध” by आ॰ शरद निगम जी @ आ॰ श्री LB Singh Babuji ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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