Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
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Japa and Tratak

Japa and Tratak

जप एवं त्राटक

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 31 दिसंबर 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

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Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:-
1. आ॰ पद्मा हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)
2. आ॰ गायत्री हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)

विषय: जप एवं त्राटक (मनोमयकोश)

गायत्री का तृतीय मुख – मनोमयकोश । मनुष्यों में चेतना का केंद्र – ‘मन’ । मन कल्पनाशील, अति वेगवान एवं निरंतर विचारों का वाष्पीकरण करता रहता है ।
शुद्ध मन के लक्षण:-
1. शांत/ संयमित/ संतुलित/ नियंत्रित
2. प्रसन्न

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥ –  मन ही मनुष्य (जीवात्मा) के बंधन व मोक्ष का कारण,
विषयासक्त मन – बंधन,
अनासक्त/ निष्काम/ शुद्ध मन/ निःस्वार्थ प्रेम – मोक्ष/ मुक्ति
का माध्यम बनता है ।

रोग/ दुःख/ राग – द्वेष/ कलह क्लेश का मूल कारण:-
1. अचिन्त्य चिंतन (negative thoughts)
2. अयोग्य आचरण

मनोमयकोश परिष्कार के 4 साधन :-
1. जप
2. ध्यान
3. त्राटक
4. तन्मात्रा साधना

जप + ध्यान” – उत्कृष्ट चिंतन मनन मंथन निदिध्यासन  ।

जपजो जैसा सोचता है वैसा करता है और जैसा करता है वैसा ही बन जाता है । हमारी सोच को उत्कृष्ट बनाने हेतु हमें सद्विचार/ आत्मिकी/ सलाह/ मंत्र के अध्ययन,  स्मरण (चिंतन मनन मंथन) की आवश्यकता होती है जिसका प्रारंभ ‘जप‘ है । फिर य ध्यान,  त्राटक व तन्मात्रा साधना से  व्यक्तित्व (गुण, कर्म व स्वभाव) में अवतरित (उत्कृष्ट चिंतन, आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार) होता है ।

त्राटक – ध्यान की गहनता (be concentrated) जिसमें हम एकाग्रचित (चित्त – शांत @ concentration) होते हैं । एकाग्रता सफलता हेतु अनिवार्य तत्त्वों में एक है । शांत चित्त (साक्षी भाव – विज्ञानमयकोश) में सांसारिक विक्षोभ प्रभावहीन हो जाते हैं । यह (त्राटक) सकारात्मकता का वह आयाम है जो तन्मात्रा साधना, विज्ञानमय व आनंदमयकोश का आधार सुनिश्चित करता है । हर एक
शब्द में positivity (तत्सवितुर्वरेण्यं) – नाद साधना @ शब्दातीत (अशब्दं) ।
रूप में positivity (तत्सवितुर्वरेण्यं) – बिंदु साधना @ अरूपं ।
रस में positivity (तत्सवितुर्वरेण्यं) – रसो वै सः ।
गंध में positivity (तत्सवितुर्वरेण्यं) – हे राम विकार में ब्रह्म देखो (वशिष्ठरामायण) ।
स्पर्श में positivity (तत्सवितुर्वरेण्यं) – अस्पर्शं ।
……. विलयनविसर्जन– (मिलन – निःस्वार्थ प्रेम) एकत्व @ अद्वैत।

जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

सभी participants को नमन; आ॰ पद्मा दीदी जी व आ॰ गायत्री दीदी जी को शानदार कक्षा हेतु आभार । गायत्री दीदी की (youngesters) प्रतिभा प्रह्लाद, अभिमन्यु, लव – कुश … के समतुल्य जो वरिष्ठों हेतु प्रेरणास्रोत है ।

त्राटक के आयाम में हम शरीर भाव से परे (साक्षी भाव में) चले जाते हैं तो हम attraction/ repulsion से परे हल्के (अनासक्त/ निष्काम/ निःस्वार्थ प्रेम/ आत्मीय/ वसुधैव कुटुम्बकम) हो जाते हैं । अर्थात व्यष्टिगत मन, समष्टिगत मन से मिलन हेतु तत्पर तैयार होता है ।
जीव शरीर धारण के 2 मूल/ महान/ परम उद्देश्य:-
1. स्वयं को जानना @ आत्मिकी @ आत्मबोध (साधन/ उपाय – गायत्री पंचकोश साधना)
2. धरा को स्वर्ग बनाना @ आत्मभौतिकी @ तत्त्वबोध (साधन/ उपाय – सावित्री साधना @ कुण्डलिनी जागरण साधना) ।

सियाराम (ब्रह्म) मय सब जग जानी के चिंतन मनन मंथन निदिध्यासन से लक्ष्य बोध (आत्मबोध + तत्त्वबोध) किया जा सकता है ।

उत्तेजना की पहुंच मनोमयकोश तक है । इसके अनावरण के बाद सत्य के बोधत्व की PhD शुरू होती है ।

कुंभक – physically Neuromuscular locking process है एवं mentally and emotionally प्राण के क्षरण को रोककर विस्तार करना है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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