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Kala Sadhna – Practical

Kala Sadhna – Practical

PANCHKOSH SADHNA –  Online Global Class –  31 Oct 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌।

SUBJECT:  आनन्दमय कोश – कला साधना (Practical)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

आनंदमयकोश के अनावरण (उज्जवल) हेतु 4 साधन (क्रियायोग) –
1. नाद साधना
2. बिन्दु साधना
3. कला साधना
4. तुरीयातीत

विषयासक्ति अर्थात् पंच तन्मात्राओं (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) से आसक्ति, मान्यताओं से आसक्ति (जब संकल्प भी बन्धन बन जाए) आदि से प्राप्त विषयानंद time being (परिवर्तनशील) होते हैं । अतः आनंदमयकोश क्रियायोग अभ्यास से पूर्व ‘तन्मात्रा साधना’ व  ‘ग्रन्थि-भेदन’ साधना को रखा गया है ।

संसार एक शीशमहल की तरह जहां हमारे व्यक्तित्व (गुण, कर्म व स्वभाव) की कलाएं (किरणें – angle of vision) reflect होकर दृश्य प्रकट करती हैं ।
तत्त्वदृष्टि से बंधन मुक्ति” @ ज्ञानेन मुक्ति । @ श्रद्धावान् लभते ज्ञानं । हम व्यक्ति अथवा वस्तु विशेष के गुण, धर्म व स्वभाव से परिचित नहीं होते; फलतः अज्ञानतावश mishandling से side affects झेलते हैं ।

कला/ शक्ति शरीर के ख़ास बिन्दु (सप्त चक्र – मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर,अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्रार चक्र) पर केन्द्रित होते हैं । यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे । प्राण के  जागरण (उर्ध्वगमन) से बात बनती है @ प्राण का जागरण महान जागरण है।
प्राणमयकोश के अनावरण में हम पंच प्राण व उपप्राण (शक्ति) की साधना करते हैं । महाप्राण के आकर्षण से प्राण – उपप्राण के संवर्धन व नियोजन की कला (विधा) प्राणमयकोश में सीखी जाती है ।

कुण्डलिनी जागरण:-
मूलाधार चक्र (स्थान – गुदा व लिंग मध्य, तत्त्व – पृथ्वी, रंग – पीला , तन्मात्रा – गन्ध, बीज मंत्र – लं, भू-लोक) । गुणों (क्षमा, गंभीरता, उत्पादन, स्थिरता, वैभव, संजीदगी, gravity, वीरता व आनन्द भाव etc.) का आकर्षण, संवर्धन, संरक्षण व नियोजन ।
स्वाधिष्ठान चक्र (स्थान – लिंग मूल, तत्त्व – जल, रंग – सफेद, तन्मात्रा – रस, बीज मंत्र – वं, भुवः लोक) । गुणों (शान्ति, सरसता, कोमलता, शीतलता व आत्मीयता  etc.) का आकर्षण, संवर्धन, संरक्षण व नियोजन ।
मणिपुर चक्र (स्थान – नाभि, तत्त्व – (त्रय) अग्नि, रंग – लाल, तन्मात्रा – रूप,  बीज मंत्र – रं, स्वः लोक) । गुणों (heat, सामर्थ्य, तेज, स्फूर्ति etc.) का आकर्षण, संवर्धन, संरक्षण व नियोजन ।
अनाहत चक्र (स्थान – हृदय, तत्त्व – वायु, रंग – हरा, तन्मात्रा – स्पर्श, बीज मंत्र – यं, महः लोक) । गुणों (गतिशीलता, प्रगतिशीलता, प्राण, पोषण परिवर्तन etc.) का आकर्षण, संवर्धन, संरक्षण व नियोजन ।
विशुद्धि चक्र (स्थान – कण्ठ, तत्त्व – आकाश, रंग – नीला, तन्मात्रा – शब्द, बीज मंत्र – हं, जनः लोक) । गुणों (विचारशीलता, बुद्धि, सूक्ष्मता, विस्तार, प्रेरणा etc.) का आकर्षण, संवर्धन व नियोजन ।
आज्ञा चक्र (स्थान – भ्रूमध्य, रंग – श्वेत, बीज मंत्र – ॐ) । ऋतंभरा प्रज्ञा जागरण ।
सहस्रार चक्र (स्थान – मस्तिष्क मध्य – reticular activating system – ब्रह्मरंध्र, रंग – स्वर्णिम, सत्य लोक, आकृति सहस्रदल कमल) । अद्वैत दर्शन ।

Demonstration of कला साधना (practical) by Meditation on Sapt Chakras – प्रसवन व प्रतिप्रसवन – cleaning & healing) ।

जिज्ञासा समाधान

ज्ञान की परतें अनन्त हैं । अनावरण अनुरूप ब्रह्म का स्वरूप परिलक्षित होता है । पात्रतानुसार सत्य तक पहुंच बनती है ।

आत्मिकी की यात्रा में समर्पण (श्रद्धा – श्रद्धावान् लभते ज्ञानं। @ ज्ञानेन मुक्ति ‌। @ श्रद्धया सत्य माप्यते ।) की भूमिका महत्वपूर्ण है । समर्पण से विलय – विसर्जन @ एकत्व @ अद्वैत दर्शन संभव बन पड़ता है ।

बीज मंत्र (लं, वं, रं, यं, हं – ॐ) आदि को ध्वनि ऊर्जा विज्ञान से संगति बिठा कर समझा जा सकता है ।
लक्ष्मी (धन वैभव सामर्थ्य शक्ति @ जिम्मेदारी व बहादुरी) का good use संभव बन पड़ता है जब गणेश (रिद्धि व सिद्धि के देव @ ज्ञान शक्ति @ ईमानदारी व समझदारी) संग हों । दीपावली के पावन पर्व को हम “आपो दीपो भव।” @ अपना प्रकाश स्वयं बनो । के परम प्रेरणा के रूप में ले सकते हैं @ आत्मा वाऽरे ज्ञातव्य। आत्मा वाऽरे श्रोतव्यः। आत्मा वाऽरे द्रष्टव्यः ।

(सूर्य षष्ठी व्रत) छठ के प्रेरणा को आत्मसात करते हुए हम इसके युगानुकुल स्वरूप को अभ्यास में लाकर सर्वानुकूल बना सकते हैं ।

हम साधना की शैली में अपनी सहजता का ध्यान रखें । हमारा लक्ष्य अथाह (infinite) peace and bliss है । वो (तत्) हमारे अन्दर बाहर (यत्र तत्र सर्वत्र) हैं जिस विधा (शैली) से सायुज्यता बन जाये वही हमारे लिए best है । साधनात्मक अभ्यास में copy & paste नहीं प्रत्युत् सृजनात्मकता (creativity/ research) है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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