Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Kathopnishad – 2

Kathopnishad – 2

YouTube link

Aatmanusandhan –  Online Global Class – 17 May 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  कठोपनिषद् (प्रथम अध्याय – द्वितीय वल्ली)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

त्रिपदा गायत्री @ आत्मसाधना के तीन चरण:-
1. उपासना (approached) – ज्ञानयोग (उत्कृष्ट चिंतन – तेजस्)
2. साधना (digested) – कर्मयोग (आदर्श चरित्र – ओजस्)
3. अराधना (realised) – भक्तियोग (शालीन व्यवहार – वर्चस)

श्रेय‘ – आत्मिक सुख @ विराट (स्व के विस्तार) का प्रत्यक्षीकरण (अखंडानंद/ निःस्वार्थ प्रेम/ आत्मीयता) @ तपोयोग ।
प्रेय‘ – माया जनित सांसारिक सुखोपभोग @ स्व का निजीकरण (विषयासक्ति @ ‘वासना + तृष्णा + अहंता’) @ भोग ।
कल्याण’ हेतु ‘भोग’ से ‘योग’ की ओर अग्रसर रहें ।

विद्या‘ (आत्म तत्त्व परक यथार्थ ज्ञान @ श्रेय मार्ग) – सा विद्या या विमुक्तये (विद्या वही है जो मुक्त करती है) @ आत्मिकी {मैं आत्मा हूँ – शरीर मेरा वाहन मात्र (आवरण) है} ।

अविद्या‘ (जड़ पदार्थ परक सांसारिक ज्ञान @ प्रेय मार्ग) – परिवर्तनशील जगत का ज्ञान विज्ञान @ भौतिकी {शरीर प्रधान (मैं शरीर हूँ) – आत्मा गौण} ।

विषयासक्त कामनाएं (वासना, तृष्णा व अहंता) @ जीव भाव बारंबार जन्म मरण के चक्र में घुमने का कारण ।

आत्म-तत्त्वज्ञान‘ (आत्मबोध + तत्त्वबोध) को ग्रहण करने वाला कोई कुशल जिज्ञासु ही सुपात्र होता है । विशेषज्ञ आचार्य द्वारा तत्त्वज्ञान से अनुप्राणित तत्त्ववेत्ता भी अति दुर्लभ होते हैं ।

तपस्वी ब्रह्मनिष्ठ गुरू का शिक्षण प्रशिक्षण प्रभावी । नचिकेता जैसे प्रपंच से अलिप्त जिज्ञासु (यथार्थ सत्य के अन्वेषक) शिष्य को प्राप्त कर यमाचार्य स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं ।

विषयासक्त होकर ‘आत्मतत्त्व’ को प्राप्त नहीं किया जा सकता । नाचिकेत अग्नि (ओजस् + तेजस् + वर्चस्) @ तीनों शरीर की ‘उपासना + साधना + अराधना’ (ज्ञानयोग + कर्मयोग + भक्तियोग’) से नित्य आत्मतत्त्व प्राप्त होते हैं ।

‘ (प्रणव) ही अक्षर ब्रह्म हैं । यही ॐ परब्रह्म अर्थात् सर्वोत्तम है । इस अक्षर को भली प्रकार जानकर जो साधक जिस अभीष्ट की कामना करते हैं, उन्हें उसकी प्राप्ति होती है ।

अणोरणीयान्महतो महीयानात्माऽस्य … – अणु से भी अणु और महान से भी महान यह आत्मा, जीव की हृदय गुफा में स्थित है । कामना रहित और शोकरहित पुरुष इन्द्रियों के प्रसाद से उस आत्म की महिमा को देखता है ॥1-II-20॥

यह ‘प्रणव’ ही आत्म साक्षात्कार का श्रेष्ठ अवलंबन है ।

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । …
सांसारिक ज्ञान सुनकर या पाठ्य पुस्तकों से पढ़कर प्राप्त किया जा सकता है । आत्मज्ञान – ‘सत्पात्र’ का स्वयं वरण करता है ।
सत्पात्र कौन ? – जिनका चिंतन – उत्कृष्ट, चरित्र – आदर्श व व्यवहार – शालीन हो ।
जीवित कौन ? – वही जीवित है जिसका मस्तिष्क – ठंडा, रक्त – गरम, हृदय – नरम व पुरूषार्थ – प्रखर हो ।
‘ओजस्वी + तेजस्वी + वर्चस्वी’ साधक आत्मज्ञान हेतु तैयार होते हैं ।

त्रय नाचिकेत अग्नि का वर्तमान स्वरूप पंचकोश साधना (पंचाग्नि विद्या) को आज के ‘यमाचार्य’ (युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी) ने वर्तमान के ‘नचिकेता’ (आत्मसाधकों) हेतु सर्वसुलभ बनाया है ।


ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment