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Kena Upanishad (केन उपनिषद्) – १

Kena Upanishad (केन उपनिषद्) – १

🌐 Online Global Class – 28 June 2020 (5:00 am to 06:30 am) – प्रज्ञाकुंज सासाराम – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh @ बाबूजी

🙏ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

📽 Please refer to the video uploaded on youtube.

📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. केन उपनिषद् – 1

📡 Broadcasting. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकुर सक्सेना जी

📖 Reader. Mrs. Kiran Chawla (USA)

🌞 Shri Lal Bihari Singh 🙏

🙏 जीवन के अंतिम उद्देश्य आत्म तत्व/ ब्रह्म तत्व साक्षात्कार हेतु हर एक गुण धर्म के व्यक्तित्व के अनुरूप ऋषियों ने 108 उपनिषदों की रचना की ताकि सभी ईश्वरीय तत्व से सायुज्यता स्थापित कर सके और आनन्दमय जीवन जी सके|

🕉 केन उपनिषद् – प्रथम खण्ड
🙏 किसकी इच्छा से प्रेरित होकर मन (mind) गिरता है। किसके द्वारा नियुक्त होकर वह श्रेष्ठ प्राण (vital air) चलता है। किसकी इच्छा से इस वाणी (speech) द्वारा बोलता है। कौन देव नेत्रों (eyes) और कानों (ears) को नियुक्त करता है॥१॥

🙏 जो श्रोत्र का भी श्रोत्र है। मन का भी मन है। वाणी का भी वाणी है। वही प्राण का भी प्राण है और चक्षु का भी चक्षु है। धीर पुरुष (wise) उसे जानकर, जीवनमुक्त होकर, इस लोक से जाकर जन्म-मृत्यु से रहित (immortal) हो जाते हैं॥२॥

🙏 न वहाँ चक्षु पहुँच सकता है। न वाणी जा सकती है। न मन ही पहुँच सकता है। न बुद्धि से जान सकते है। न औरों से सुनकर। उसे कैसे बतलाया जो ज्ञात (known) से भी परे है और अज्ञात (unknown) से भी परे (distinct) है। ऐसा ही हमने अपने पूर्व पुरुषों (ancients) से सुना है। जिन्होंने हमारे प्रति उसकी व्याख्या की थी॥३॥

🙏 जो वाणी से प्रकाशित नहीँ है, अपितु (but) जिससे वाणी प्रकाशित होती है। उसी को तुम ब्रह्म जानो। उसे नहीं, जिस वाणी से यह लोक उपासना करता है॥४॥

🙏 जिसे मन द्वारा मनन (think) नहीं किया जा सकता, अपितु (but) मन जिससे मनन करता हुआ जाना जाता है। उसी को तुम ब्रह्म जानो। उसे नहीं, जिस मन से यह लोक उपासना करता है॥५॥

🙏 जिसे चक्षु के द्वारा नहीं देखा जा सकता, अपितु (but) जिसकी महत्ता से चक्षु देखता है। उसी को तुम ब्रह्म जानो। उसे नहीं, जिस चक्षु से यह लोक उपासना करता है॥६॥

🙏 जिसे श्रोत्र के द्वारा नहीं सुना जा सकता, अपितु श्रोत्र जिसकी महत्ता से सुनता है। उसी को तुम ब्रह्म जानो। उसे नहीं, जिस श्रोत्र से यह लोक उपासना करता है॥७॥

🙏 जो प्राण के द्वारा प्राणित नहीं है, अपितु प्राण जिसकी महत्ता से प्राणित होता है। उसी को तुम ब्रह्म जानो। उसे नहीं, जिस प्राण से यह लोक उपासना करता है ॥८॥

🕉 द्वितीय खण्ड

🙏 यदि ऐसा मानते हो कि ‘मैं अच्छी तरह जानता हूँ’। तो तुम निश्चय ही ‘ब्रह्म’ का थोड़ा सा ही रूप जानते हो। इसका जो स्वरुप तुझमे है और जो देवताओं में है, वह भी थोड़ा ही है। इसलिए तेरा ऐसा माना हुआ कि ‘जानता हूँ’ निःसंदेह विचारणीय है॥१॥

🙏 न तो मैं यह मानता हूँ कि ‘जानता हूँ’ और न यह मानता हूँ कि ‘नहीं जानता’। अतः जानता हूँ। जो उसे ‘न तो नहीं जानता हूँ’ और ‘न जानता ही हूँ’ इस प्रकार जानता है, वही जानता है॥२॥

🙏 जो मानता है कि वह जानने में नहीं आता, उसका वह जाना ही हुआ है। जो मानता है कि वह जानता है, वह नहीं जानता। वह जानने वालों का अभिमान करने वाले हेतु नहीं जाना हुआ है और जानने का अभिमान नहीं करने वालों का वह जाना हुआ है॥३॥

🙏 इस प्रतिबोध को जानने वाला ही वास्तव में जानता है। इससे ही अमृतत्व को प्राप्त होता है। उस आत्म से ही शक्ति प्राप्त होती है जबकि विद्या से अमृत की प्राप्ति होती है॥४॥

🙏 इस देह के रहते हुए जान लिया तो सत्य है। इस देह के रहते हुए नही जाना पाया तो महान विनाश है। धीर पुरुष सभी भूतों में उसे जानकर, इस लोक से प्रयाण कर अमर हो जाते हैं ॥५॥

🙏 हमारे अंदर एक dominent power है जो हमे control करता है| सुषुप्ति अवस्था में भी हमारे आंतरिक अंग अवयव सुचारू रूप से कार्य करते हैं| इसका अर्थ है की एक बाजीगर की बाजीगरी के नियंत्रण में universe के सभी systems कार्यरत् हैं|

🙏 हम पाते हैं हमारे मन में उतार चढ़ाव चलते रहते हैं| यह मन कौन सी शक्ति से मनन करता रहता है?

🙏 प्रथम प्राण को उतपन्न करने वाला स्रोत कौन है अर्थात् वह कहाँ से उतपन्न हुआ? जीवन की हर एक परिस्थिति हमारे कल्याण हेतु आती है अतः हमें हर हाल मस्त रहना चाहिए| एक दुख हमे जीवन के कई महत्वपूर्ण पाठों को पढ़ा देती है| समृद्धि हमे संसाधनों के सदुपयोग हेतु आती हैैं|

🙏 आँखें देखती हैं! but आँखें क्या देखती हैं? हाड़ – मांस, गुण – अवगुण अथवा आत्मा? हमारे जीवन का दर्शन (angle of vision) क्या है?

🙏 गायत्री सभी तरह के रोगों का क्षय करती है| गायत्री पंचकोष साधना से पाँचों शरीर स्वस्थ हो जाते हैं| गायत्री महामंत्र का subject सविता है| यहाँ सविता ब्रह्मवाची शब्द है; सविता सारे सूर्यों का प्रसव करती हैं| ऋषि याज्ञवल्क्य जी गायत्री भाष्य में “सवितुः – सविता सर्वभूतानां सर्वभावाश्च सूयते। सवनात्प्रेरणाच्चैव सविता तेन चोच्यते।
अर्थात् ‘सविता’ सब भूत तथा सब भावों का उत्पादक हैं उत्पादन और प्रेरणा करने के कारण उनका नाम ‘सविता’ है।

🙏 प्राचीन काल में गुरूकुल में अनुशासन बनाये रखने हेतु छड़ी (stick) की व्यवस्था नहीं थी| शिक्षण शैली motivational सशक्त होनी चाहिए|
हम किन्हीं दोष – दुर्गुणों से ग्रस्त हों – त्रस्त हों, छूटे नहीं छूट रहा है; तो हम जीवन में अनुव्रत अर्थात् छोटे छोटे व्रतों का पालन कर सकते हैं| “उपासना – साधना – अराधना” का क्रम जीवन का कायाकल्प करती है|

🙏 इन्द्रियों, मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार आदि सब का दायरा सीमित हैं| और ब्रह्म असीमित हैं जिसकी शक्ति से यह सभी कार्यरत् हैं अतः इनकी अनुभूतियों को ही अंत ना मान लिया जाये अभी बहुत कुछ आना शेष है|

🙏 अनुभव बदलते रहते हैं| जिनसे समस्त ब्रह्मांडों का उत्पादन और जिनमें विलय व विसर्जन के बाद पुनरूत्पादन के कार्य चलते रहते हैं उस ब्रह्म को समग्र रूप से जानने का अभिमान करने वाले – ब्रह्म को नहीं जानते हैं|

🙏 नेति नेति = न इति न इति| ‘यही अन्त नहीं है’। ब्रह्म के अनंतता सूचित करता है @ ब्रह्म शब्दों के परे हैं। इस सत्य को समझने वाले ब्रह्म को जानते हैं|

🌞 Q & A with Shri Lal Bihari Singh

🙏 ब्रह्म को तप करके जानने की बात कही गयी है अर्थात् theory (योग) और practical (तप) दोनों को साथ लेकर चलने से बोधत्व की प्राप्ति होती है|

🙏 सभी क्रियायोग (उपासना – साधना – अराधना) आदि का अंतिम लक्ष्य क्या है? क्या हमे लक्ष्य की प्राप्ति हुयी? साधनों की महत्ता साध्य की उपलब्धि में है| अतः साधनों की महत्ता क्रमशः “ओजस् – तेजस् – ब्रह्मवर्चस्” की उपलब्धि में है|

🙏 ज्ञान रहित तपस्या लाभ नहीं देती हैं अर्थात् सिद्धांत स्पष्ट (concept clear) होने चाहिए अन्यथा प्रयोग सफल नही होते हैं @ ज्ञानेन मुुुुुक्तिः|
नारद – निः रदः अर्थात् जिनके सत् परामर्श को रद्द नहीं किया जा सके| नारद जो त्रिभुवन में निर्भय होकर विचरण करते हैं|
ज्ञान रहित भक्ति भी अंध श्रद्धा में परिणत हो जाती हैं|

🙏 ईशावास्य उपनिषद् से स्वाध्याय की शुरूआत की जा सकती है| आत्मपूजोपनिषद् भी बहुत प्रभावी रही है|

🙏 सुक्ष्म कर्णेन्द्रियों के विकसित होने पर आवाजें आती हैं उन्हे सहजता से लेवें| धीरे धीरे वह अनहद नाद की पूर्णता तक ले जाता है|

🙏 उपनिषदों के स्वाध्याय से आत्मा के ध्यान और अनुभूतियों में सहजता होती है और जीवनमुक्त – सहज समाधि जैसी उपलब्धि मिलती है|

🙏 ब्रह्म संदोह अर्थात् ब्रह्म की शक्ति से रोम रोम में “ओजस् – तेजस् – वर्चस” संवर्धन|

🙏 समर्पण – ईश्वर के प्रति समर्पण अर्थात् ईशानुशासनं स्वीकरोमि| ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के पसारे इस संसार में निष्काम भाव से कर्तव्यरत् रहें|

🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||

🙏Writer: Vishnu Anand 🕉

 

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