Kena Upanishad (केन उपनिषद्) – 2
🌕 PANCHKOSH SADHNA ~ Online Global Class – 05 Jul 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh @ बाबूजी
🙏ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
📽 Please refer to the video uploaded on youtube.https://youtu.be/QWWoksYcpnU
📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. केन उपनिषद् – 2
📡 Broadcasting. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकुर सक्सेना जी
📖 Reader. Mrs. Kiran Chawla (USA)
🌞 Shri Lal Bihari Singh
🙏 सभी online global participants को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। गुरुदेव का अनुशासन भरा स्नेह आशीष सभी को प्राप्त हो।
🙏 विवेक युक्त ऊर्जा को अर्द्ध नारीश्वर @ प्राण तत्व कहते हैं। इसे ही वर्तमान में वैज्ञानिक Quanta कहते हैं।
प्रकृति का कण कण एक अनुशासन में आबद्ध है जो चेतन युक्त ऊर्जा @ ज्ञान की सार्वभौमिकता का जीवंत पर्याय है।
🕉 केन उपनिषद् – तृतीय खण्ड
🙏 ब्रह्म ने ही देवताओं के लिए विजय प्राप्त की । ब्रह्म की उस विजय से देवताओं को अभिमान हो गया। वे समझने लगे कि यह हमारी ही विजय है। हमारी ही महिमा है॥१॥
🙏 यह जानकर ब्रह्म उनके सामने प्रादुर्भूत हुआ। और वे देवता उसको न जान सके कि ‘यह यक्ष कौन है’॥२॥
🙏 तब उन्होंने (देवों ने) अग्नि से कहा कि, ‘हे जातवेद! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’। अग्नि ने कहा – ‘बहुत अच्छा’ ॥३॥
🙏 अग्नि यक्ष के समीप गया । उसने अग्नि से पूछा – ‘तू कौन है’? अग्नि ने कहा – ‘मैं अग्नि हूँ, मैं ही जातवेदा हूँ’॥४॥
🙏 ऐसे तुझ अग्नि में क्या सामर्थ्य है? अग्नि ने कहा – ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे जलाकर भस्म कर सकता हूँ’ ॥५॥
🙏 तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे जला’। अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को जलाने में समर्थ न होकर वह लौट गया। वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका॥६॥
🙏तब उन्होंने ( देवताओं ने) वायु से कहा – ‘हे वायु! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’। वायु ने कहा – ‘बहुत अच्छा’॥७॥
🙏 वायु यक्ष के समीप गया। उसने वायु से पूछा – ‘तू कौन है’। वायु ने कहा – ‘मैं वायु हूँ, मैं ही मातरिश्वा हूँ’॥८॥
🙏 ‘ऐसे तुझ वायु में क्या सामर्थ्य है’? वायु ने कहा – ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे ग्रहण कर सकता हूँ’॥९॥
🙏 तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे ग्रहण कर’। अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को ग्रहण करने में समर्थ न होकर वह लौट गया। वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका। ॥१०॥
🙏 तब देवताओं ने इन्द्र से कहा – ‘हे मघवन् ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’। इन्द्र ने कहा – ‘बहुत अच्छा’। वह यक्ष के समीप गया। उसके सामने यक्ष अन्तर्ध्यान हो गया॥११॥
🙏 वह इन्द्र उसी आकाश में अतिशय शोभायुक्त स्त्री, हेमवती उमा के पास आ पहुँचा, और उनसे पूछा कि ‘यह यक्ष कौन था’॥१२॥
🕉 चतुर्थ खण्ड
🙏 उसने स्पष्ट कहा – ‘ब्रह्म है’। ‘उस ब्रह्म की ही विजय में तुम इस प्रकार महिमान्वित हुए हो’। तब से ही इन्द्र ने यह जाना कि ‘यह ब्रह्म है’॥१॥
🙏 इस प्रकार ये देव – जो कि अग्नि, वायु और इन्द्र हैं, अन्य देवों से श्रेष्ठ हुए। उन्होंने ही इस ब्रह्म का समीपस्थ स्पर्श किया। उन्होंने ही सबसे पहले जाना कि ‘यह ब्रह्म है’ ॥२॥
🙏 इसी प्रकार इन्द्र अन्य सभी देवों से अति श्रेष्ठ हुआ । उसने ही इस ब्रह्म का सबसे समीपस्थ स्पर्श किया । उसने ही सबसे पहले जाना कि ‘यह ब्रह्म है’ ॥३॥
🙏 उस ब्रह्म का यही आदेश है। जो कि विद्युत के चमकने जैसा है। नेत्रों के झपकने सा है। यही उसका अधिदैवत रूप है॥४॥
🙏 अब आध्यात्मिक रूप। वह मन ही है। जो उसकी ओर जाता है। निरन्तर स्मरण करता है। संकल्प करता है॥५॥
🙏 वह यह ब्रह्म ही वन्दनीय है। वन नाम से ही उसकी उपासना करनी चाहिए। जो भी उसे इस प्रकार जान लेता है, समस्त भूतों का वह प्रिय हो जाता है॥६॥
🙏 हे गुरु! उपनिषद का उपदेश कीजिये। इस प्रकार कहने पर तुझसे उपनिषद कह दी। यह निश्चय ही ब्रह्मविषयक उपनिषद है॥७॥
🙏 तप, दम एवं कर्म ही उसकी प्रतिष्ठा हैं। वेद उसके सम्पूर्ण अंग हैं और सत्य उसका आयतन है॥८॥
🙏 जो इस प्रकार इस उपनिषद को जान लेता है, वह पापों को नष्ट करके अनन्त और महान स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है, प्रतिष्ठित होता है॥९॥
🙏 जब संसाधनों (resources) का दुरूपयोग (misuse) होने लगता है तब संतुलन बनाए रखने हेतु निराकार ईश्वरीय सत्ता सुपात्र शरीरधारियों को अपना माध्यम बनातीं हैं जिसे हम अवतार माध्यम से समझते हैं।
🙏 जब माध्यम शरीरधारियों (अग्नि, वायु व इन्द्र आदि देवताओं) को कर्त्तापन का अभिमान हो जाता है तो वह असुरत्व @ मूढ़ता की ओर अग्रसर हो जाता है। अतः अभिमान के रूपांतरण हेतु ब्रह्म ने यक्ष का रूप धारण कर उन सभी देवताओं को ब्रह्म का साक्षात्कार किया।
🙏 रामायण में – जब जब होई धरम कै हानि, बाढ़ै असूर अधम अभिमानी – तब तब प्रभू धरि विविध शरीरा, हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।
🙏 भगवान श्री कृष्ण कहते हैं जब जब धर्म की हानि होती है तब तब वे स्वयं अवतरित होते हैं।
💡 साधक को कभी भी ईश्वरीय अनुदानों पर अभिमान नहीं करना चाहिए वरन् कृतज्ञ भाव से कर्त्तव्य शील रहना चाहिए।
🙏 उमा देवी जगन्माता @ महामाया @ योगमाया देवताओं को ब्रह्म के सर्व समर्थ वह सार्वभौमिकता का साक्षात्कार कराया।
🙏 तप practical के साधन हैं, योग बोधत्व का साधन हैं और कर्म अराधना का माध्यम हैं।
ईश्वरीय सत्ता के प्रति समर्पित हो ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के पसारे इस संसार में आत्म कल्याण एवं लोक कल्याण में लगे रहें @ “उपासना + साधना + अराधना“।
🙏 मनुष्य को पशुता से देवत्त्व के ओर ले जाने हेतु देव पर्वों व्रतों आदि की व्यवस्था बनाए गए हैं।
🙏 गुरु अनुशासन में रहना गुरू पूर्णिमा का संदेश है। आत्मानुसंधान और विश्व अनुशासन (dutiful) में लगे रहें। विद्या – अविद्या, संभूति – असंभूति दोनों को एक साथ जाने।
गुरु के विचारों को आत्मसात करना तदनुरूप आचरण करना ही गुरु दक्षिणा है।
🌞 Q & A with Shri Lal Bihari Singh
🙏 गुरु के मार्गदर्शन/ अनुशासन में निरंतर साधना से शिष्य को गुरू की अनुकम्पा प्राप्त होती हैं। निरंतर ज्ञान की साधना से निर्णय लेना आसान होता है।
🙏 प्रथम गुरु माता – पिता, फिर हमारे academic teachers … क्रमशः हमें प्रशिक्षित करने वाले हर एक व्यक्तित्व, चराचर जगत, आध्यात्मिक गुरु, आत्म सत्ता व परमात्म सत्ता सभी गुरू तत्त्व से ओतप्रोत हैं।
🙏 गुरू वो जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें। असतो मा सदगमय।। तमसो मा ज्योतिर्गमय।। मृत्योर्मामृतम् गमय।।
🙏 स्थूल शरीर का सूर्य मणिपूर चक्र, सुक्ष्म शरीर का सूर्य अनाहत चक्र और कारण शरीर का सूर्य त्रिकुटी माना जाता है।
🙏 साधना की शुरूआत में साधक को परिमार्जन हेतु परम पुरूषार्थ (आत्म समीक्षा + आत्म सुधार + आत्म विकास) की आवश्यकता होती है।
🙏 गुरूर्ब्रह्मा,गुरूर्विष्णुः,गुरूर्देवो महेश्वरः गुरूर्साक्षात् परब्रह्म्, तस्मै श्री गुरवे नमः॥
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||
🙏Writer: Vishnu Anand 🕉
No Comments