Kundalini Jagran Ki Dhyaan Dharna
PANCHKOSH SADHNA – Gupt Navratri Sadhna – Online Global Class – 15 Jul 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
SUBJECT: KUNDALINI JAGRAN KI DHYAAN DHARNA
Broadcasting: आ॰ नितिन जी
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा – http://literature.awgp.org/book/kundlini_jagran_ki_dhyan_sadhnayen/v1.44
गुरूदेव की आवाज में – https://youtu.be/aAQQ6vXrx5o
1. ध्यान की भूमिका में प्रवेश
2. विशिष्ट ध्यान प्रयोग
प्रथम चरण मंथन
द्वितीय चरण उर्ध्वगमन
तृतीय चरण वेधन
चतुर्थ चरण विस्तरण
पंचम चरण परिवर्तन
ॐ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्यर्मा मा अमृत गमय।
भाव समाधि – वासना शांत, तृष्णा शांत, अहंता शांत, उद्विगनता शांत।
सविता – प्रकाश, ज्ञान, प्रज्ञा, सविता अग्नि, ऊर्जा, ब्रह्म शक्ति, सविता ब्रह्म, सविता वर्चस्, सविता ब्रह्मवर्चस, सविता उपास्य।
कुंडलिनी प्राण विद्युत, जीवनी-शक्ति, योगाग्नि, अंतः ऊर्जा ब्रह्म ज्योति।
परिवर्तन/ रूपांतरण – आत्म-ज्योति का ब्रह्म-ज्योति में परिवर्तन, मूलाधार का सहस्रार में, क्षुद्रता का महानता में परिवर्तन, कामना का भावना में परिवर्तन, वियोग का संयोग में परिवर्तन, नर का नारायण में परिवर्तन।
मुक्त बंधन ईश्वर दर्शन, जीवनी शक्ति जागरण, प्राण विद्युत जागरण, योगाग्नि जागरण, अंतः ऊर्जा जागरण, कुंडलिनी जागरण – महान जागरण।
जिज्ञासा समाधान
मूलाधार से दो नाड़ियाँ – इड़ा व पिंगला – ऊपर की ओर उठती हैं, इनके मिलने से एक तीसरी नाड़ी सुषुम्ना बनती है। सुषुम्ना के भीतर भी एक त्रिवर्ग है। बज्रा और चित्रणी नाम की दो अत्यन्त सूक्ष्म धारायें बहती हैं। उनके योग से एक तीसरी ब्रह्म नाड़ी का प्रादुर्भाव होता है, यह सबसे सूक्ष्म प्रकाश पथ है। इन्हें शल्य क्रिया द्वारा नहीं देखा जा सकता। यह सारी विश्वरचना ऐसी सूक्ष्म हैं, जो देखी तो नहीं जा सकती पर उसका अस्तित्व प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता हैं।
षट् चक्र – अवरोध भी अनुदान भी। आसक्ति – अवरोध है। बंधन मुक्ति – अनुदान। कुण्डलिनी जागरण के विभिन्न चरणों में क्रमशः बढ़ते हुए ‘चक्रवेध – शब्द वेध – लक्ष्य वेध’ किया जा सकता है।
http://literature.awgp.org/book/bhramvarchas_ki_dhyaan_dharna/v1.9 पर ध्यान धारणा के एक एक शब्द पर विस्तृत वर्णन किया गया है। स्वाध्याय से concept स्पष्ट किया जा सकता है।
‘ॐ‘ अक्षर ब्रह्म हैं। Peace & bliss द्वारा हम यत्र तत्र सर्वत्र बोधत्व कर सकते हैं। हम बैखरी से पश्यन्ती, पश्यन्ती से परा अर्थात् सुक्ष्मातिसुक्ष्म में जायें।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
‘समर्पण – विलय – विसर्जन‘ को एकत्व @ योग के अर्थों में ले। आत्मा का परमात्मा से जुड़ने का नाम ‘योग’ है। ‘सायुज्य’ अर्थात् द्वैत का रूपांतरण अद्वैत में। श्रद्धा – विश्वास, समर्पण, भक्ति इसका प्रथम आधार है। व्यवहार में इसका अभ्यास आत्मीयता (निःस्वार्थ प्रेम) के विस्तरण से किया जा सकता है।
‘चित्त‘ @ आदत, स्वभाव, संस्कार परिष्कृत ना हों तो मन को बलात् आसक्त विषयों (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) के प्रति खींचते हैं। अतः आत्मपरिष्कार (आत्मसमीक्षा, आत्मसुधार, आत्मनिर्माण व आत्मविकास) @ गायत्री साधना द्वारा चित्त को विशुद्ध कर ऋतंभरा प्रज्ञा जागरण @ विवेक बुद्धि से लक्ष्य बोध किया जा सकता है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
No Comments