Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Kundalini Jagran Theory

Kundalini Jagran Theory

PANCHKOSH SADHNA – Gupt Navratri Sadhna – Online Global Class – 14 Jul 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

SUBJECT:  KUNDALINI JAGRAN THEORY

Broadcasting: आ॰ नितिन जी

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

कक्षा के विषय वस्तु को आत्मसात करने में वांग्मय सं॰ 15 ‘सावित्री कुण्डलिनी तंत्र‘ एवं अखण्ड ज्योति माह जनवरी 1987 ‘कुण्डलिनी जागरण विशेषांक‘ का स्वाध्याय महती है।

कुण्डलिनी‘ एक जैवविद्युत (bio-electricity) शक्ति हैं। हमारा शरीर इस जैवविद्युत एक बिजली घर (powerhouse) है। ‘तप व योग’ के समन्वित प्रयास से इस शक्ति को परिष्कृत परिमार्जित व संवर्धित किया जाता है।

प्राण का जागरण महान जागरण है। ‘प्राण’ वस्तुतः एक ऐसा आग्नेय स्फुल्लिंग है जिसे हम जड़ भी कह सकते हैं और चेतन भी। इस अर्द्धचेतन परमाणु को जानने, विकसित करने, विस्फोट करने व नियंत्रित करने आदि की विद्या का साधना का नाम – कुण्डलिनी साधना है। पंचाग्नि विद्या के परिप्रेक्ष्य में हम इसे  प्राणाग्नि (अन्नमय कोश), जीवाग्नि (प्राणमय कोश), योगाग्नि (मनोमय कोश), आत्माग्नि (विज्ञानमय कोश) व ब्रह्माग्नि (आनंदमय कोश) के रूप में समझ सकते हैं।  

कुण्डलिनी महाशक्ति – मूलाधार चक्र के अग्नि कुण्ड में निवास करती हैं। अग्नि स्वरूप है। सूप्त सर्पिणी की तरह सोई पड़ी हैं। स्वयंभू महालिंग से – शिवलिंग से लिपटी पड़ी है।
सहस्रार चक्र (ब्रह्मरंध्र) को अमृत कलश कहा गया है। उससे सोमरस टपकने का उल्लेख है। 
षट्चक्र बेधन साधना में प्राण के उर्ध्वगमन द्वारा कुण्डलिनी महाशक्ति को उर्ध्वगामी बनाया जाता है और सहस्रार के अमृत कलश के सोमरस का पान कराया जाता है।

अखण्ड ज्योति माह जनवरी 1987 कुण्डलिनी जागरण विशेषांक में दिये गये pictures का वैज्ञानिक आध्यात्मिक विश्लेषण

मेरूदंडदेवयान मार्ग है।  इसके 33 अस्थि खंड 33 देवताओं (8 वसु + 11 रूद्र + 12 आदित्य + इन्द्र + प्रजापति) का प्रतिनिधित्व करती हैं। तीन प्रमुख नाड़ियां – इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना।
33 अस्थि खंड (Vertebrae) ~ Cervical region (neck) – 7 (C1 to C7), Dorsal region (Thoracic – mid back) – 12 (T1 to T12), lumbar region (low back) – 5 (L1 to L5), Sacrum – 5 (Sacral Vertebrae), Coccyx region – 4।

आत्मोत्कर्ष की महायात्रा जिस राज मार्ग से होती हैं से मेरुदण्ड या सुषुम्ना कहते हैं उसका एक सिरा मस्तिष्क का – दूसरा काम केन्द्र का स्पर्श करता है। कुण्डलिनी साधना की समस्त गतिविधियाँ प्रायः इन्हें  परिष्कृत एवं सरल बनाने के लिए है।

जिज्ञासा समाधान

कुण्डलिनी महाशक्ति संपूर्ण शरीर में व्याप्त है। यह व्यष्टिगत कुण्डलिनी शक्ति है। समष्टिगत कुण्डलिनी शक्ति विश्व व्यापार जननी है।

उर्ध्वरेता प्राणों के उर्ध्वगमन से कामबीज का रूपांतरण ज्ञानबीज में करते हैं।

आत्मशक्ति (परा प्रकृति – भाव चेतना) को ‘गायत्री’ एवं वस्तु-शक्ति (अपरा प्रकृति – पदार्थ चेतना) को ‘सावित्री’ कहते हैं। सावित्री साधना को कुण्डलिनी जागरण कहते हैं। गायत्री व सावित्री के समन्वय से साधना की समग्र आवश्यकता पूरी होती है।

हमारे चर्म चक्षुओं (eyes) की देखने की शक्ति सीमित हैं। शब्दों की तरंगें, वायु की परमाणु, वायरस हमें आंखों से नहीं दिखाई पड़ते तो भी उनका अस्तित्व है। षट्चक्र को योगियों ने अपने योगदृष्टि से देखा है और उनका वैज्ञानिक आध्यात्मिक प्रयोग से आत्मकल्याण व लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है।

गुप्त नवरात्रि साधना में कुण्डलिनी जागरण प्रायोगिक कक्षाएं प्रज्ञाकुंज में आयोजित की जाती हैं। जिज्ञासु साधक गण सुदुर क्षेत्रों में मैत्रीवत् कक्षा के आयोजन से लाभ ले सकते हैं।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment