Kundalini Science – 3
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 15 Nov 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
Please refer to the video uploaded on youtube.
sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: कुण्डलिनी साइंस – 3 (‘योग का रहस्य और सिद्धि परिकर’ & ‘ कुण्डलिनी के 5 मुख – 5 शक्ति प्रवाह)
Broadcasting. आ॰ अंकुर सक्सेना जी
श्री लाल बिहारी बाबूजी
आत्म-निर्माणी ही विश्व का निर्माण करते हैं। मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं प्रत्युत् अपने भाग्य का निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है। ‘लोग क्या कहेंगे … एक प्रकार का मानसिक दिवालियापन है (कुछ तो लोग कहेंगे … लोगों का काम कहना)। ‘मनोमयकोश’ का immature रहने से ही विचारों के radiation/ bombarding हम पर affect डालते हैं।
प्रज्ञोपनिषद्. ‘जीवात्म परमात्म संयोगानाम योगः’ – आत्म को परमात्म के साथ जोड़ने का नाम योग है। ईश्वर – उत्कृष्ट आदर्शों के समुच्चय हैं। उत्कृष्ट और आदर्शवादिता की विभूतियाँ परमात्म सत्ता के साथ ही जुड़ी हुई है। हम श्रद्धा/ आदर्शों से जुड़ कर ही आदिम स्थिति से उपर उठकर सुसंस्कारी बनते हैं।
‘योग‘ (उपासना, साधना व अराधना) के 2 पक्ष हैं – 1. अंतरंग व 2. बहिरंग योग। ‘आसन, प्राणायाम, बंध व मुद्रा’ बहिरंग व ‘प्रत्याहार, ध्यान, धारणा व समाधि’ अंतरंग पक्ष हैं। दोनों पक्षों में अन्योनाश्रय संबंध है – एक दूसरे के पूरक हैं।
‘राम’ व ‘रावण’ दोनों वीर व विद्वान रहे। एक की विनम्रता, मर्यादित जीवन व सौजन्यता युक्त पराक्रम ने भगवान बना दिया तो दूसरे की ‘वासना, तृष्णा व अहंता’ ने असुर। योग साधना का first step – ‘आत्म-सुधार’ है। जिससे सिद्ध पुरुषों के अनुदान हमें सहज ही उपलब्ध होने लगते हैं। जिनके सहारे ‘आत्म-कल्याण’ व ‘लोक-कल्याण’ सधता है। आत्मसुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है @ ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः’।
हम role model/ प्राणवान बनें। श्रीराम, कृष्ण, पैगंबर, यीशु, गुरुदेव, संत नानक जी, महर्षि अरविन्द, महर्षि रमन, पंडित मदनमोहन मालवीय जी, शिवाजी, महाराणा प्रताप, राजा पौरूष, भगत सिंह जी, गांधी जी, स्वतंत्रता सेनानी, वैज्ञानिक आदि role model हैं।
कुण्डलिनी जागरण साधना में फलश्रुतियाँ/ रहस्यमयी विभूतियों के विवेचन को हम कौतूहल की नजर से ना देखें प्रत्युत् उस दिशा में आगे बढ़ें व प्रेरणास्रोत बनें तो ही उस प्रचण्ड पुरुषार्थ की सार्थकता है। पंचकोश में अनंत ऋद्धियां – सिद्धियां भरी परी हैं।
‘गायत्री’ महाशक्ति का प्राण पक्ष/शक्ति पक्ष – ‘कुण्डलिनी’ हैं। ‘गायत्री‘ व ‘कुण्डलिनी‘ को पृथक (different) नहीं प्रत्युत् दो धाराओं का परस्पर पूरक स्वरूप समझा जाना चाहिए।
‘जीव‘ – 5 देव सहित हैं जो प्राणवान होने पर यह ‘शिव‘ है। यह परिकर – कुंडलिनी शक्तियुक्त है। इनका आकार चमकती हुई बिजली के समान है। हमारे सूक्ष्म शरीर में ‘चेतना’ की 5 परतें यह 5 प्राण – ‘प्राण, उदान, अपान, व्यान व समान’ व इनके सहायक 5 उपप्राण – ‘देवदत्त, वृकल, कूर्म , नाग व धनंजय हैं; जिनके सम्मिश्रण से ‘व्यक्तित्व’ (personality) बनता है। इनके स्तर अर्थात् अनुपात में अंतर (कम/अधिक) के आधार पर व्यक्ति विशेष की वरिष्ठता एवं विशिष्टता प्रदीप्त होती हैं।
युगऋषि के मार्गदर्शन में बाबूजी द्वारा उपनिषद् स्वाध्याय के क्रम में क्रियायोग पर की गई शोध “महामुद्रा + महाबंध + महाबेध” से प्राणों के जागरण में सुविधा होती है। इससे अनेक मित्र साधक लाभान्वित हुए हैं।
प्रश्नोत्तरी सेशन
‘समत्व‘ भाव/ सुषुम्ना में जीने के लिए तत्त्व-ज्ञान की आवश्यकता होती है। स्वयं व सृष्टि के बारे में पूर्ण जानकारी ही ‘विज्ञान’ है। संसार के हर परिवर्तनशील सत्ता में अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता (ईश) विद्यमान है अतः कुछ भी निरर्थक नहीं है। हमें ‘सार्थकता’ का angle of vision – develop करने की जरूरत होती है। बस ‘अनित्य’ से ना चिपकें वरन् ‘नित्य’ से सायुज्यता स्थापित करें।
‘वासना, तृष्णा व अहंता‘ – ग्रंथियां हैं। गांठ बनने से उलझन होती है अतः गांठ ना बनने दें। ‘ग्रंथि-भेदन’ साधना में हम सुलझने की क्रिया अर्थात् सरल – सहज/ उपयोगी बनते हैं।
‘साधन‘ की सार्थकता ‘साध्य’ से सायुज्यता में है अतः ‘साधक’ के साधना का केन्द्र – साध्य हैं। साधन (क्रियायोग) में चिपक ना जायें की यही साधन से केवल लाभ मिलेगा। ‘साधना’ के चुनाव में अपनी सहजता, रूचि व साध्य से सामीप्य का ध्यान रखें।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
No Comments