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Kundalini Science – 4

Kundalini Science – 4

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 22 Nov 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: षट्चक्रों में समाहित चेतना का महासागर

Broadcasting. आ॰ अंकुर सक्सेना जी

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी बाबूजी

आत्मसाक्षात्कार में सरल सहज व्यक्तित्व को आसानी होती है। परमहंस अवस्था में बालक जैसी निःश्छलता रहती है।
हमारे शरीर में ऐसे अनेक स्थान हैं जहां जीवनी शक्ति (प्राण ऊर्जा) की बहुलता होती है मर्म बिंदु कहे जाते हैं। ‘वासना, तृष्णा व अहंता’ ही अध्यात्मिकी में cough कहे जाते हैं। आसक्ति/ चिपकाव परिवर्तनशील सत्ता के प्रति हो तो भटकाव/ भुलक्कड़ी होती है और अपरिवर्तनशील सत्ता के प्रति हो तो उद्धार हो जाता है।

हमारे शरीर में कुछ ऐसे प्रमुख स्थान हैं जहां अतीव प्राण शक्ति और अपार अतीन्द्रिय क्षमता का वैभव प्रसुप्ति अवस्था (sleeping mode) में दबी पड़ी है जिन्हें ‘चक्र’ अथवा plexes कहे जाते हैं।
सुषुम्ना‘ मार्ग में षट्-चक्रों की स्थिति है। सुषुम्ना को वैज्ञानिक भाषा में Electric dipole के नाम से जाना जाता है। इसके नीचे का भाग Cauda equina (having negative charge) – ‘मूलाधार’ व उपर का cerebrum (having positive charge) – ‘सहस्रार’ चक्र की स्थिति मानी जाती है।

षट्-चक्र – १. मूलाधार चक्र – मेरूदण्ड के निचले सिरे काक्सीजियल रीजन के पेरीनियम में गुदा व जननेन्द्रिय के मध्य स्थित है – बीज मंत्र ‘लं‘। २. स्वाधिष्ठान चक्र (सैक्रल रीजन @ पेड़ू, बीज मंत्र ‘वं‘), ३. मणिपुर चक्र (लंबार रीजन @ नाभि, बीज मंत्र ‘रं‘), ४. अनाहत चक्र (कार्डियक प्लेक्सस @ हृदय, बीज मंत्र ‘यं‘) , ५. विशुद्धि चक्र (फेरेन्जियल व लेरेन्जियल प्लेक्सेस @ कंठकूप, बीज मंत्र ‘हं’ व ६. आज्ञा चक्र (पीनियल व पीट्युट्री ग्रंथि मिलकर @ भ्रु मध्य, मंत्र ‘‘। सातवें ‘सहस्रार‘ की गिनती चक्र में नहीं होती इन्हें ‘सहस्रदल कमल’ भी कहते हैं। सहस्रार ही ‘कुण्डलिनी जागरण’/ षट्चक्र भेदन का अंतिम पड़ाव है। यह mid brain में इन्टरनल कैप्सूल व रेटीकूलर एक्टीवेटिंग सिस्टम में अवस्थित माना जाता है। इसके जागरण का अर्थ है सारे ‘ग्रै मैटर‘ का जागरण।

Struggle is law of life. संत, ऋषि-मुनि, महापुरुष, क्रांतिकारी, समाज सुधारक, शिक्षक, वैज्ञानिक, सैनिक, उत्पादक वर्ग, श्रमिक वर्ग सभी के उद्धार/ उर्ध्वगमन का एक ‘देवयान मार्ग’ – ‘संघर्ष’/सुषुम्ना है। सुषुम्ना के बायें ‘ईड़ा’ (negative charge) व दायें ‘पिंग्ला’ (positive charge) साथ चलते हैं। ‘संघर्ष’ @ जीवन में दोनों ऊर्जा/ आवेश/ शक्ति की जरूरत होती है और हमें इन दोनों के मध्य ‘सुषुम्ना’/ स्थित-प्रज्ञ/ अनासक्त रहना होता है। ‘भेदत्व’ तो हमारे दृष्टिकोण मात्र में होता है। चक्र जागरण/ भेदन में हमें इन चक्कर/ भेदों से ही मुक्त होना होता है @ अभेद दर्शनं ज्ञानं।

प्रश्नोत्तरी सेशन

शक्तिचालिनी‘ अर्थात् ‘काम’ व ‘ज्ञान’ दोनों का चाकिंग करके प्राण का उर्ध्व-गमन करते हैं। हर एक चक्र पर हम चाकिंग करके बंधन मुक्त हो सकते हैं।

साधक‘ अपनी मनोभूमि/ रूचि, सरलता – सहजता अनुरूप meditation कर सकते हैं।

मानसिक मंत्रोच्चारण किसी भी posture में किया जा सकता है। सहजता का ध्यान रखें।
Note: आलस्य/ प्रमाद को सहजता का नाम नहीं दिया जा सकता।

भावनाएं/शब्द स्वार्थ-परक हों तो ‘बंधन‘ और परमार्थ-परक हों तो ‘मुक्ति‘ का माध्यम @ भावे विद्यते देवा @ शब्द ब्रह्म।

विज्ञानमयकोश में ‘ग्रंथि-भेदन‘ को ही षट्-चक्र जागरण कहते हैं जिसमें दो दो चक्रो के बीच की ग्रंथि (गांठ) – रूद्र, विष्णु व ब्रह्म ग्रंथि को भेदन/ खोलना/ सुलझाना होता है।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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