Mahopnishad – 1
(Navratri Sadhana Satra) PANCHKOSH SADHNA _ Online Global Class _ 26 Sep 2022 (5:00 am to 06:30 am) _ Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: महोपनिषद् – 1
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
टीकावाचन – आ॰ मीना शर्मा जी (शिक्षिका, नई दिल्ली)
शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह
उपनिषद् – आत्मज्ञान का महाभंडार ।
आत्मसाधना की शुरुआत ‘मन’ को साधने से प्रारंभ होती है:-
आत्म-परमात्म साक्षात्कार के 3 चरण (त्रयनचिकेता अग्नि):-
1. उपासना (उपलब्धि – श्रद्धा @ उत्कृष्ट चिंतन)
2. साधना (उपलब्धि – प्रज्ञा @ आदर्श चरित्र)
3. अराधना (उपलब्धि – निष्ठा @ शालीन व्यवहार) ।
युगधर्म – वैज्ञानिक अध्यात्मवाद । गुरूदेव कहते हैं कि वैदिक आर्ष ग्रन्थों का वैज्ञानिक अध्यात्मिक प्रतिपादन युग की अनिवार्य आवश्यकता है ।
आज प्रत्यक्षदर्शी भौतिक विज्ञान को सिद्ध माना जाता है ।
आत्मा के 5 चेतनात्मक आवरण @ पंचकोश:-
1. अन्नमयकोश
2. प्राणमयकोश
3. मनोमयकोश
4. विज्ञानमयकोश
5. आनंदमयकोश
‘नकारात्मकता‘ प्राण के क्षरण (misuse) तो ‘सकारात्मकता‘ प्राण के आकर्षण, संवर्धन व विनियोग का माध्यम बनती हैं ।
‘तप‘ से दोष – दुर्गुणों की गलाई (दुष्प्रवृत्ति उन्मूलनाय) व ‘योग‘ से ओजस् तेजस् व वर्चस् की अभिवृद्धि (सत्प्रवृत्ति संवर्धनाय) व उनके ‘applications‘ वातावरण परिष्कराये आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय… ।
एक कन्या – (ऋतंभरा) प्रज्ञा बुद्धि – ज्ञान की परिष्कृत/ विशुद्ध चैतन्यता ।
14 पुरुष = 5 ज्ञानेन्द्रियां + 5 कर्मेंद्रियां + एकादश मन + द्वादश अहंकार + प्राण + आत्मा ।
पंचमहाभूत (5 तत्त्व)- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश ।
5 तन्मात्राएं – शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श ।
उपरोक्त 25 तत्त्वों से विराट पुरुष के शरीर का निर्माण हुआ; जिसमें परमात्मस्वरूप आदि पुरूष ने प्रवेश किया ।
सृष्टि संचालन हेतु रूद्र, चतुर्मुख ब्रह्मा, व्याहृति, छन्द, वेद व देवताओं की उत्पत्ति का आध्यात्मिक वैज्ञानिक विवेचन ।
नारायण (परब्रह्म) की विराट रूपता (विश्वात्मा, सर्वव्यापकता, विश्वरूप, विश्वेश्वर आदि) व उनका निवास स्थान हृदय (भाव संवेदनाएं आत्मीयता का केन्द्र – चैतन्य ज्वाला) ।
जिज्ञासा समाधान
तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति – http://literature.awgp.org/book/Tatvdrishti_Se_Bandhan_Mukti/v2.1 @ अद्वैत ।
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ।।3.28।। (भावार्थ: किन्तु हे महाबाहो ! जो ज्ञानी गुण और कर्म विभाग को तत्त्व से जानता है कि सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरतते है वो उनमें आसक्त नहीं होता ।)
Nothing is worthless in the world. Good or bad depends on its use. अतः हमें इनका सदुपयोग करना है (योग) व दुरूपयोग से बचना है (तप) ।
“अध्यात्म = अंतरंग परिष्कृत + बहिरंग सुव्यवस्थित ।”
जीवों की गति उनकी आसक्ति के अनुरूप होती है । परिवर्तनशील सत्ता से चिपकाव (आसक्ति) है तो वासना, तृष्णा व अहंता अनूरूप जीव शरीर धारण करते हैं और अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता से सायुज्यता बन गई तो अहं जगद्वा सकलं शुन्यं व्योमं समं सदा @ अद्वैत ।
अध्यात्म की प्रथम शर्त – स्वावलंबन । पितरों को श्रद्धा भागीरथ तप से दी जा सकती है ।
कालसर्प योग (काल – मृत्यु,
सर्प – तरंगें, योग – जुड़ना) – वह मनःस्थिति/परिस्थिति जिसमें हमें मृत्यु रूपी तरंगें (दोष – दुर्गुण, काम, षट विकार, षट् उर्मि आदि @ वासना, तृष्णा व अहंता) हमें डसने (जकड़ने) हेतु तत्पर हों ।
समस्याएं अनेक, समाधान एक – अध्यात्म । (त्रिपदा) गायत्री की साधना (@उपासना, साधना व अराधना’ @ ‘ज्ञानयोग + कर्मयोग + भक्तियोग) से हम यथोचित लाभ ले सकते हैं ।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।2.23।।
अवधूत स्तर के साधक के लिए कुछ भी खराब नहीं है – All is well.
विष्णु भगवान is not a person. विश्वबन्धुत्व को धारण पोषण करने वाली शक्ति धारा को विष्णु नाम से संबोधित किया गया है । शब्द, भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम हैं । शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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