Mahopnishad – 4
(Navratri Sadhana Satra) PANCHKOSH SADHNA _ Online Global Class _ 29 Sep 2022 (5:00 am to 06:30 am) _ Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: महोपनिषद्-4
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
टीकावाचन: आ॰ सुश्री संस्कृति शर्मा जी (नई दिल्ली)
शिक्षक बैंच: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
असुर – अचेतन मन में दबी दुष्प्रवृत्तियां,
दुर्गा – दुर्गति हरने वाली आत्मशक्ति (आत्मतेज, आत्मविश्वास, आत्मबल) ।
(महोपनिषद्) चतुर्थ अध्याय में:-
मोक्ष/ मुक्ति के 4 उपाय
आत्मावलोकन विधि
समाधि का स्वरूप
जीवन मुक्त स्थिति
शम
सन्तोष
आत्मविश्रांति
दृश्य जगत की परिवर्तनशीलता
आसक्ति से बन्धन
अनासक्ति से मोक्ष
मनोमय संसार
चैतन्यता (सायुज्यता) की अनुभूति ही समाधि
प्रपंच जगत की परिवर्तनशीलता
शान्त (चित्त) मनःस्थिति से ब्रह्म सायुज्यता
ब्रह्म ज्ञान की महिमा
वासना के परिष्करण से मोक्ष की प्राप्ति
बन्ध-मोक्ष का मूल संकल्प
अनात्माभिभान का त्याग…..
……. इत्यादि विषयों का विवेचन है ।
(आज की कक्षा में) मंत्र संख्या 1 – 69 तक के सार तत्त्व को समझेंगे ।
मैं (मेरा) एवं तू (तेरा) का भाव (आसक्ति) दृश्यमान जगत (संसार) को यथार्थ (स्थायी/ अपरिवर्तनशील/ सत्) मानने से उत्पन्न होता है @ बन्धन । अगर संसार की नश्वरता/ परिवर्तनशीलता को समझा जाए (मनोमयकोश परिष्कृत) तो वैराग्य (अनासक्त भाव) उत्पन्न होता है ।
संसार में ईश्वर (अपरिवर्तनशील सत्ता) ही सत् हैं । उनसे (ब्रह्म) तद्रूपता/ सायुज्यता बिठा ली जाए तो मोक्ष/ मुक्ति की स्थिति ।
तत्त्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति – http://literature.awgp.org/book/Tatvdrishti_Se_Bandhan_Mukti/v2.1
(शांत चित्त) ‘मन’ को शांत रखने के 4 उपाय (मैत्री करुणा मुदितोपेक्षणां सुखदुःख पुण्यापुण्य विषयाणां भावनात्पश्चित प्रसादनम्।) :-
1. मैत्री (सुखी जनों संग)
2. करूणा (दुःखी जनों संग)
3. मुदिता (पुण्यात्मा संग)
4. उपेक्षा (दुष्टात्मा संग)
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/July/v2.17
शांत चित्त/ स्थितप्रज्ञ/ साक्षी भाव व्यक्तित्व सायुज्यता (समर्पण + विलयन + विसर्जन) हेतु तत्पर रहते हैं ।
तीन आकाश:-
1. भौतिक आकाश (दृश्यमान)
2. चित्ताकाश (अंतःकरण – कामना भावना युक्त)
3. चिदाकाश (सुक्ष्मातिसुक्ष्म – शुन्य @ सहज समाधि @ अहं जगद्वा सकलं शुन्यं व्योमं समं सदा) ।
शांत चित्त (वासना-शांत + तृष्णा-शांत + अहंता-शांत + उद्विग्नता-शांत) _ भाव समाधि _ समर्पण-विलयन-विसर्जन _ एकत्व @ अद्वैत ।
जिज्ञासा समाधान
शिक्षण में प्रेरणा का प्रसार किया जाता है । इसमें थोपने की आवश्यकता नहीं है । (आत्म) साधना में copy paste नहीं है । सार्थक व प्रभावी उपदेश वह है जो वाणी से ही नहीं प्रत्युत् स्व आचरण से भी प्रस्तुत किए जाएं । आत्म सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है ।
कामनाविहीन (अनासक्त) आत्मा – अकर्ता और सन्निधि (चिपकाव/ आसक्ति) मात्र से ही आत्मा – कर्ता बन जाता है । आसक्ति से बन्धन तो अनासक्ति से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है @ मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥)
त्रिदेव व अन्य देवी देवता की नामावली एक ही (ब्रह्म) शक्ति की विभिन्न शक्ति धाराओं को समझने समझाने हेतु है ।
शक्ति एक – शक्ति धाराएं अनेक । एक ही व्यक्तित्व विभिन्न अवस्थाओं या भुमिकाओं में पुत्र/पुत्री, भाई/ बहन, पति/पत्नी, पिता/माता, दादा/ दादी, किसान/व्यापारी/सैनिक/शिक्षक आदि नामों से पुकारा जा सकता है ।
ईश्वर सर्वव्यापी है । मान्यताओं से रागद्वेषात्मक स्थिति उत्पन्न होती है । तत्त्व दृष्टिकोण से संसार में तत्त्वों due respect देते हुए साक्षी भाव में (आत्मस्थित) विचरण किया जा सकता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
No Comments