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Mahopnishad – 5

Mahopnishad – 5

महोपनिषद्-5

(Navratri Sadhana Satra) PANCHKOSH SADHNA _ Online Global Class _ 30 Sep 2022 (5:00 am to 06:30 am) _  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: महोपनिषद्-5

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

टीकावाचन: आ॰ सुश्री संस्कृति शर्मा जी (नई दिल्ली)

शिक्षक बैंच: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

गायत्री की 2 उच्चस्तरीय साधनाएं:-
1. पंचकोश साधना
2. कुण्डलिनी जागरण

आत्मा के 5 आवरण (पंचकोश):-
1. अन्नमयकोश
2. प्राणमयकोश
3. मनोमयकोश
4. विज्ञानमयकोश
5. आनंदमयकोश
जिनमें अनंत ऋद्धियां सिद्धियां भरी पूरी हैं । पंचकोश अनावरण (बेधने) उपरांत आत्मप्रकाश तक हमारी पहुंच बन जाती है ।
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा । दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा ॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा । तब भव मूल भेद भ्रम नासा ॥1॥

(मनोमय) संसार एक दर्पण (शीशमहल) की भांति है जिसमें व्यक्ति अपने दृष्टिकोण से (अपने विचारों के अनुरूप) स्व प्रतिबिंब देखता (प्रतिक्रिया पाता) है । संसार एक छाया ही तो है ।

शांत चित्त व्यक्तित्व आत्मसाक्षात्कार कर सकते हैं । बन्धन – आसक्ति (लोभ + मोह + अहंकार) एवं मोक्ष – अनासक्त/ निष्काम @ निःस्वार्थ प्रेम ।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोःबन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥ (मन ही सभी मनुष्यों के बन्धन एवं मोक्ष की प्रमुख कारण है । विषयों में आसक्त मन बन्धन का और कामना-संकल्प से रहित मन ही मोक्ष का कारण कहा गया है ॥)

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलंअभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।6.35।। (श्री भगवान बोले- हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास एवं वैराग्य से वश में होता है ॥)

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः । विषय विकारों से रहित मन ही मन का पूर्ण रूपेण निरोध करने में समर्थ हो सकता है ।

(कठोपनिषद्) यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनिज्ञानमात्मानि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मानि ।। (प्रज्ञावान् व्यक्ति के लिए उचित है कि वह सर्वप्रथम वाक् आदि इन्द्रियों को मन में लीन करें, मन को ज्ञान स्वरूप बुद्धि में निरूद्ध करे, बुद्धि को महान् तत्त्व में विलीन करे और उस आत्मा को परमपुरुष परमात्मा में नियोजित करें ।।)

शांत चित्त (वासना-शांत + तृष्णा-शांत + अहंता-शांत + उद्विग्नता-शांत) @ भाव समाधि (समर्पण + विलयन + विसर्जन) @ एकत्व (भक्त भगवान – एक) @ अद्वैत

निःस्वार्थ प्रेम @ आत्मीयता की भूमिका आत्मनिष्ठ होने में महत्वपूर्ण है । आत्मसाधक चिकित्सक (doctor) का दृष्टिकोण रखते हैं; रोग (disease) अंदर हो (अंतरंग) अथवा बाहर हो (बहिरंग) वो treatment (अंतरंग परिष्कृत +बहिरंग सुव्यवस्थित) का माध्यम बनते हैं ।

जिज्ञासा समाधान

शुन्यलय (निर्बीज) समाधि हेतु:-
स्थिर शरीर
मन शांत @ शांत चित्त [साक्षी भाव से आने जाने वाले विचारों के प्रति शुन्यता (वासना-शांत + तृष्णा-शांत + अहंता-शांत + उद्विग्नता-शांत)]
भाव समाधि (समर्पण+विलयन+विसर्जन)
एकत्व (अद्वैत)

बौद्ध धर्म के 3 मूल मंत्र:-
1. धम्मं शरणं गच्छामि । (now नैतिक क्रांति)
2. बुद्धं शरणं गच्छामि । (now बौद्धिक क्रांति)
3. संघ शरणं गच्छामि । (now सामाजिक क्रांति)
भगवान बुद्ध के उत्तरार्ध (गुरूदेव) प्रज्ञावतार वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने तीनों मूल मंत्र को आगे बढ़ाते हुए नैतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति व सामाजिक क्रांति का शंखनाद किया ।

शास्त्रोक्त तथ्य हमारे मनोवृत्ति अनुरूप मान्यताएं, ग्रन्थियों (सतो, रजो व तमो ग्रंथि) @ भेद दृष्टिकोण का भी कारण बन सकती हैं अर्थात अद्वैत पथ (मोक्ष) का बाधक बन सकती है । अतः उस स्थिति में मान्यताएं ही भ्रान्ति (भ्रम) बन जाती हैं ।

आत्मानुसंधान परक बुद्धि निश्चियात्मक बुद्धि कही‌ जा सकती हैं ।

कर्ताभाव से (आसक्ति वश) किए गए ‘अकर्म’, ‘बन्धन‘ तो अकर्ताभाव से (ईश्वरीय कार्य का माध्यम @ निःस्वार्थ प्रेम @ अनासक्त/ निष्काम) किए गए ‘कर्म’, ‘मोक्ष-कारी’ होते हैं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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