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Mahopnishad – 9

Mahopnishad – 9

महोपनिषद्-9

(Navratri Sadhana Satra) PANCHKOSH SADHNA _ Online Global Class _ 4 October 2022 (5:00 am to 06:30 am) _  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: महोपनिषद्-9

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

टीकावाचन: आ॰ रूपा जी (गायत्री महिला मंडल अध्यक्षा, सासाराम, बिहार)

शिक्षक बैंच: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

आज की कक्षा में नवरात्रि संग महोपनिषद् की पूर्णाहुति (मंत्र संख्या 44-86)

(विषयों से) आसक्ति – बन्धन‌
अनासक्ति (वासना-शांत/ शुद्ध + तृष्णा-शांत/ शुद्ध + अहंता-शांत/ शुद्ध + उद्विग्नता-शांत/ समत्व/ सम्यक @ आत्मीयता @ निः स्वार्थ प्रेम) – मोक्ष ।

(समत्वं योग उच्यते) सहज समत्व बुद्धि द्वारा विषयासक्ति से निवृत्ति होती है ।

चार प्रकार के निश्चय (अहंकार भाव) :-
1. (शरीर भाव – मैं शरीर हूं @ आसक्ति) “पैर से सिर तक मेरी संरचना मेरे मातापिता के संयोग से हुई है।” – बन्धनकारी ।
2. (वैराग्य – मैं आत्मा/ विषय रहित चित्त हूँ @ समर्पण) बन्धन में दुःखों का अवलोकन कर “मैं सभी तरह के जागतिक – प्रपंचों – विकारों से से परे बाल के अग्रभाग से भी अतिसूक्ष्म आत्मा हूँ।” – मोक्ष प्रदात्री ।
3. (आत्म-विस्तार @ विलयन) “मैं संपूर्ण जगत् के पदार्थों की आत्मा हूँ, सर्वयूपी एवं क्षय रहित हूँ।” – मुक्ति का विशेष कारण
4. (अद्वैत @ विसर्जन) “मैं या जगत् सभी कुछ आकाश की भांति शुन्य है।” – मोक्षदायिनी ।
प्रथम निश्चय बन्धनकारी तृष्णा एवं शेष तीनों निश्चय स्वच्छ, शुद्ध तृष्णा से समन्वित  होते हैं एवं मोक्षदायिनी हैं ।

लोकाचरण, तत्त्वबोध से (with due respect) हो (बहिरंग परिष्कृत) एवं आत्मावलोकन, आत्मबोध (अंतरंग परिष्कृत @ निः स्वार्थ प्रेम) से हो । ब्रह्मनिष्ठ/ जीवन मुक्त/ विदेहमुक्ति के लक्षण:-
1. शत्रु एवं मित्र को सम्यक् दृष्टि से देखता है (बिन्दु साधना)
2. इच्छा एवं अनिच्छा से मुक्त
3. विषाद मुक्त
4. विषयों की आकांक्षा से रहित
5. मृदुभाषी
6. शालीन/ विनम्र
7. समस्त प्राणियों के भाव जानने में सक्षम
8. योगस्थः कुरू कर्माणि :-
(क) बाह्य वृत्ति से बनावटी क्रोध का अभिनय करते हुए एवं हृदय से क्रोधरहित
(ख) लोकाचरण में कर्ता एवं आत्मभावेण – अकर्ता
(ग) शांत/ विषय रहित चित्त के धारक ।

शरीर भाव (बन्धनकारी निश्चय/ अहंकार) में प्राण (निश्चय/ अहंकार/मान्यता) आत्मा के  5 आवरण/ पंचकोश  (अन्नमयकोश, प्राणमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश व आनंदमयकोश) में जहां कहीं भी फँसा रहेगा तदनुसार व्यक्तित्व (चिंतन + चरित्र + व्यवहार) का धारक होगा । शरीर भाव से परे आत्मभाव (अहं जगद्वा सकलं शुन्यं व्योमं समं सदा) में प्रतिष्ठित हेतु पंचकोश जागरण/ अनावरण आवश्यक है

जिज्ञासा समाधान

(चरैवेति चरैवेति) लक्ष्य प्राप्ति क्रम में देहावसान (विश्राम) उपरांत (मान्यतानुसार) अगले योनि में फिर वहीं से अगली यात्रा शुरू होती है ।

आत्मा‘ नहीं मरती है । ‘शरीर‘ (वाहन/ रथ) जन्म मरण से युक्त है ।

तैंतीस कोटि देवता क्या हैं ? – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1947/June/v2.8

ईश्वर की सर्वव्यापकता की अनुभूति हेतु बिन्दु साधना प्रभावी हैं ।

मानव शरीर में अद्भुत विशेषताएं (चक्र उपचक्र पंचकोश – अनंत ऋद्धियां सिद्धियां भरी पूरी) हैं अतः मानव जन्म को व्यर्थ ना जाने दिया जाए @ बड़े भाग्य से मनुज तन पांवाँ

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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