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Maitrayanupanishad-3,

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मैत्रायण्युपनिषद्-3

PANCHKOSH SADHNA –  Online Global Class – 30 Jan 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: मैत्रायण्युपनिषद् – 3 (पंचम प्रपाठक)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

भावार्थ वाचन: आ॰ मीना शर्मा जी (नई दिल्ली)

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

जैसे जैसे पंचकोश परिष्कृत होते जाते हैं वैसे वैसे ‘स्वाध्याय’ (अध्ययन + चिंतन – मनन – मंथन  + निदिध्यासन) गहनता में प्रवेश करते हैं ।

वह परमात्मा दो प्रकार की आत्माओं अर्थात् ‘गायत्री’ व ‘सावित्री’ (स्वरूपों) को ग्रहण करता है ।

‘ॐ’ की तीन व्याहृतियां (त्रिपदा गायत्री) :-
1. भूः – तत्सवितुर्वरेण्यं (सविता का वरण) – उपासना/ approached @ ज्ञानयोग
2. भुवः – भर्गो देवस्य धीमहि (भर्ग शक्ति का ध्यान धारणा) – साधना/ digested @ कर्मयोग
3. स्वः – धियो यो नः प्रचोदयात् (सन्मार्ग पर चलें @ प्रेरणा) – अराधना/ realised @ भक्तियोग ।

गायत्री हृदयम् ( गायत्री उपनिषद्) – http://literature.awgp.org/book/gayatri_se_brahm_sakshatkaar/v1.1

भर्ग शक्ति :-
1. – लोकों का प्रकाशित करने वाला,
2. – समस्त प्राणियों का रंजन करने वाला,
3. – प्राणियों – प्रजाओं के गमनागमन का आधार स्वरूप

रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।  आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ।।2.64।। भावार्थ: आत्मसंयमी (विधेयात्मा) पुरुष राग-द्वेष से रहित अपने वश में की हुई (आत्मवश्यै) इन्द्रियों द्वारा विषयों को भोगता हुआ प्रसन्नता (प्रसाद) प्राप्त करता है।।

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

ईश्वरीय चेतना ही गतिशील प्रतीत हो तो वायु, रसमय – जल, तेजोमय – अग्नि, स्थिर – पृथ्वी, सर्वमय – आकाश …। ॐ ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् । तेन त्येक्तेन भुञजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ।।

परमात्म शक्ति ‘सविता’ सारे सूर्यों का प्रसव करती है । सविता सर्वभूतानां सर्वभावश्चसूयते ।

जिज्ञासा समाधान

गायत्री त्रिपदा हैं । अतः theory, practical & application से बात बनती है । ‘श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा’ तीनों का समन्वय पूर्णता में सहायक है ।
प्राणायाम‘ (क्रियायोग) के दौरान सहजता का ध्यान रखें । विचारों के प्रति सजग रहें । जबरदस्ती (दमनात्मक कार्रवाई) का योग में स्थान नहीं है । ‘संयम’ (इन्द्रिय संयम, समय संयम, विचार संयम व अर्थ संयम) से बात बनती है ।

वृद्धजनों के पास अनमोल अनुभवों (प्रेरणा) रूपी संपदा है, जिसके प्रसारण का माध्यम बन अपनी भूमिका सुनिश्चित की जा सकती है ।
सोऽहम भाव में जीने से त्रिताप शांत होते हैं । सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा । दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा ॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा ॥1॥
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च । मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ।।8.7।। भावार्थ: इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसंदेह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे।।

इच्छा पूर्ति (सुख – शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श को भोगने की चाह) हेतु विभिन्न योनियों में गमनागमन । इच्छाओं का अंत (योगस्थः कुरू कर्माणि …) निष्काम निःस्वार्थ प्रेम – मोक्ष । अखंडानंद की अनुभूति (unconditional love – अद्वैत) @ बोधत्व उपरांत ही ‘मोक्ष’ संभव बन पड़ता है ।

हम सुधरेंगे – युग सुधरेगा, हम बदलेंगे – युग बदलेगा । आत्मसुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है ।
‘संत, सुधारक व शहीद’ – ये चुनाव स्वयं का है कि हम किस भूमिका में रहें । उपासना व साधना की पूर्णता अराधना में परिलक्षित होती है @ theory – practical – application.

ईश्वर का एक नाम – नियामक भी है । संसार का संविधान – कर्मफल का सुनिश्चित सिद्धान्त @ गहणाकर्मणोगति ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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